મધ્યકાલીન ગુજરાતી શબ્દકોશ/એક નૂતન શિખરનું સફળ આરોહણ

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एक नूतन शिखरनुं सफळ आरोहण

मित्र जयंत कोठारी एक पीढ अने खडतल पर्वतारोहक छे. तेमनी अत्यारनी कृश काया अने कांईक डगमग चाल जोईने मारुं आवुं विधान वांचतां ‘तमारी मति तो ठेकाणे छे ने ?’ एवो प्रश्न केटलाक जरूर करे. पण जयंतभाईए ‘गुजराती साहित्यकोश (मध्यकालीन)’ अने ‘जैन गूर्जर कविओ’नुं नवसंस्करण एवां बे उन्नत शिखरो सर कर्या पछी हवे आ त्रीजुं शिखर पण सर कर्युं छे नानीमोटी टूंकोनुं तेमनुं आरोहण तो ते साथे चालु ज होय छे ते जोतां मारा विधाननी सार्थकता अवश्य प्रतीत थशे. मने याद छे ते प्रमाणे एक वार अमारी वच्चे जूनी गुजरातीनो शब्दकोश तैयार करवो घणो जरूरी छे एवी वात थयेली. पण सातसोएक वरसना गाळानी हजारो कृतिओमांथी शब्दसंचय करवानुं भगीरथ काम तो जो आपणी पासे जूनी गुजरातीना जाणकारोनुं तेमज कोशविज्ञानना जाणकारोनुं एक जूथ होय, अने कोई मातबर संस्था ए योजना हाथ धरे तो ज पार पडी शके ए देखीतुं हतुं. सद्‌गत विद्वान डॉ. भोगीलाल सांडेसरा द्वारा वडोदरा युनिवर्सिटी तरफथी जे यशस्वी प्राचीन गूर्जर ग्रंथमाळा संपादित-प्रकाशित करवामां आवी हती, तेनो एक हेतु, पछीथी, ते ग्रंथमाळामां प्रकाशित थयेली कृतिओना महत्त्वना शब्दोनु संकलन करीने संक्षिप्त प्राचीन गुजराती कोश तैयार करवानो पण हतो एवो मारो ख्याल छे. ते पछी हुं ज्यारे गुजरात युनिवर्सिटीना भाषाभवन साथे संकळायेलो हतो त्यारे में पण ए दिशामां एक चाळो सद्‌गत उमाशंकरभाईनी प्रेरणाथी कर्यो हतो, अने वीशपचीश जूनी गुजराती कृतिओमांथी नोंधपात्र शब्दोनो संचय, प्रयोगवाक्योनां उद्धरणो साथे तैयार करवानुं आरंभ्युं हतुं. पण विविध कारणे तेमांथी कशुं नीपजी न शक्युं. जयंतभाईनी विद्याप्रीति जेटली गाढ, तेटली ज तेमनी दृष्टि पण व्यवहारु. तेमणे अमारी वातचीत दरमियान कह्युं के जूनी गुजरातीनी अनेक प्रकाशित कृतिओमां अंते महत्त्वना शब्दोनी जे ससंदर्भ, सार्थ सूचिओ आपेली होय छे ते सूचिओने संकलित करवानुं काम उपयोगी अने व्यवहारु छे. थोडाक सहायकोनी मददथी ते धार्या समयमां अवश्य पार पाडी शकाय. एटलुं ज नहीं, ए कामनो पोते शुभारंभ करी दीधो होवानुं पण तेमणे मने जणाव्युं ! आ तो थोडांक वरस पहेलांनी वात. अनेक विद्याकार्यो वच्चे तेमनुं आ काम पण चालतुं रह्युं, डॉ. चंद्राए प्राकृत जैन विद्याविकास फंड द्वारा जयंतभाईनुं ए काम पुरस्कार्युं, अने साहित्यसंशोधन अने पांडित्य प्रत्ये सतत सक्रिय आदर सेवता अने तेना प्रोत्साहन माटे दत्तचित्त मुनिश्री शीलचंद्रविजयगणिना अनन्य सद्‌भावने परिणामे हवे ए कोश अध्येताओना करकमळमां पण आवे छे. जयंतभाईए मात्र शब्दसूचिओनुं संकलन ज नथी कर्युं. एम करे तो जयंतभाई शाना ? तेमणे ज्यांज्यां अर्थ वगेरे बाबत शंकास्पद जणाई त्यांत्यां चोकसाई अने शुद्धि करी छे, अने ते माटे अनेक कोशो उथलाव्या छे, अनेक मूळ कृतिओ के संलग्न कृतिओने तपासीने यथाशक्य प्रामाण्य साधवानी मथामण करी छे. आ कोशथी मूळ कृतिओने समजवामां सहाय मळशे, ते उपरांत घणी अर्थघटननी गूंचो पण ऊकलशे, अने तुलनात्मक सामग्री गुजराती शब्दोना इतिहास माटे पण सहायभूत बनशे. स्वास्थ्य अत्यंत खखडी गयुं हतुं, कार्यशक्ति लुप्तप्राय थवानां डरामणां एंधाण वरतातां हतां, ते बधा सामे टक्कर झीलीने दृढ संकल्पबळे आवा कोशनुं परिश्रमसाध्य काम पार पाडवा माटे ‘धन्यवाद’ शब्द तो घणो मोळो लागे. पण शब्दप्रयोग हीरो बने के कथीर तेनो आधार तो प्रयोजकनी भावना पर ज होय छे. जयंतभाईए जे नानो छोड उछेर्यो छे तेमांथी आगळ जतां वृक्ष बने एवी आशा अने श्रद्धा आपणे केम न राखीए ? १ मार्च १९९५
हरिवल्लभ भायाणी