નારીસંપદાઃ વિવેચન/રાસસાહિત્યનું સ્વરૂપ અને વિકાસ: Difference between revisions

From Ekatra Wiki
Jump to navigation Jump to search
(Created page with "{{SetTitle}} <big><big>'''૫'''</big></big> <center><big><big>'''रास-साहित्यनुं स्वरूप अने विकास'''</big><br> भारती वैद्य </big></center> {{Poem2Open}} '''संस्कृत साहित्यमां रास''' रासप्रकार अपभ्रंशनो वारसो- संस्कृत साहित्यमां रासना उल्लेख : हरि...")
 
No edit summary
 
Line 14: Line 14:


प्राचीन गुजराती भाषा अने साहित्य क्यारथी सिद्ध थयां गणवां अे विषे निर्णय कर्या पछी अने रास-साहित्यना अभ्यासना क्षेत्रमां अन्य विद्वानोओ करेला कार्यनी समीक्षा कर्या पछी हवे आ रास- साहित्यना स्वरूप विषे निर्णय बांधवा माटे "भरतेश्वर बाहुबलि घोर" अने "भरतेश्वर बाहुबलि रास"थी शरू करी त्यार पछीना समयमां मळी आवती रास-कृतिओनो अभ्यास करवानुं प्राप्त थाय छे. आ रास-कृतिओना आधारे प्राचीन गुजराती रासनां स्वरूप छंद, शैली, विषय वमेरे बधी ज दृष्टिअे समग्ररूपे तेनुं अध्ययन करवानुं रहे छे.
प्राचीन गुजराती भाषा अने साहित्य क्यारथी सिद्ध थयां गणवां अे विषे निर्णय कर्या पछी अने रास-साहित्यना अभ्यासना क्षेत्रमां अन्य विद्वानोओ करेला कार्यनी समीक्षा कर्या पछी हवे आ रास- साहित्यना स्वरूप विषे निर्णय बांधवा माटे "भरतेश्वर बाहुबलि घोर" अने "भरतेश्वर बाहुबलि रास"थी शरू करी त्यार पछीना समयमां मळी आवती रास-कृतिओनो अभ्यास करवानुं प्राप्त थाय छे. आ रास-कृतिओना आधारे प्राचीन गुजराती रासनां स्वरूप छंद, शैली, विषय वमेरे बधी ज दृष्टिअे समग्ररूपे तेनुं अध्ययन करवानुं रहे छे.
रास- प्रकार : अपभ्रंशनो वारसो
'''रास- प्रकार : अपभ्रंशनो वारसो'''
रास-साहित्य अे समग्र प्राचीन गुजराती साहित्यनो अेक प्रकार छे. प्राचीन गुजराती भाषा आपणे जोयुं तेम अपभ्रंशमांथी तेनी असर हेठळ विकसी छे.૧ अपभ्रंश तरफथी प्राचीन गुजरातीने मळेला वारसामां साहित्यनो वारसो पण छे. अने आ रास-प्रकार पण अपभ्रंशना वारसा समो छे. उपलब्ध माहिती परथी जणाय छे के अपभ्रंशमां रास-साहित्य सारी रीते विकसेलुं हतुं. अेटले प्राचीन गुजरातीमां रास-साहित्यनो अभ्यास शरू करतां पहेलां तेनी माता अेवी अपभ्रंश भाषामां ए साहित्यप्रकार केवा स्वरूपे हतो अे जोवुं आवश्यक छे.
रास-साहित्य अे समग्र प्राचीन गुजराती साहित्यनो अेक प्रकार छे. प्राचीन गुजराती भाषा आपणे जोयुं तेम अपभ्रंशमांथी तेनी असर हेठळ विकसी छे.૧ अपभ्रंश तरफथी प्राचीन गुजरातीने मळेला वारसामां साहित्यनो वारसो पण छे. अने आ रास-प्रकार पण अपभ्रंशना वारसा समो छे. उपलब्ध माहिती परथी जणाय छे के अपभ्रंशमां रास-साहित्य सारी रीते विकसेलुं हतुं. अेटले प्राचीन गुजरातीमां रास-साहित्यनो अभ्यास शरू करतां पहेलां तेनी माता अेवी अपभ्रंश भाषामां ए साहित्यप्रकार केवा स्वरूपे हतो अे जोवुं आवश्यक छे.
पण ते पहेलां य अपभ्रंश भाषामां अगाउना समयमां “रास" नामनो के तेने मळतो के तेना मूळ रूपनो कोई प्रकार प्रचारमां हतो के केम अे जोवुं जोईअे. प्राचीन गुजराती पूर्वे अपभ्रंश साहित्य उपरांत संस्कृत साहित्यमां पण “रास" के "रासक” नामक नृत्तप्रधान प्रकार के रूपकप्रकार जाणीतो हतो अने अहीं आगळ उपर केटलीक प्राचीन गुजराती रास-कृतिनो अभ्यास कर्यो छे अे परथी अेक वस्तु फलित थाय छे के आ रास गेय हता, एटलुं ज नहीं रास रमाता-नचाता हता,૧<ref>૧ प्रकरण पहेलुं : प्राचीन गुजराती भाषा अने साहित्यनो उद्भव<br>  
पण ते पहेलां य अपभ्रंश भाषामां अगाउना समयमां “रास" नामनो के तेने मळतो के तेना मूळ रूपनो कोई प्रकार प्रचारमां हतो के केम अे जोवुं जोईअे. प्राचीन गुजराती पूर्वे अपभ्रंश साहित्य उपरांत संस्कृत साहित्यमां पण “रास" के "रासक” नामक नृत्तप्रधान प्रकार के रूपकप्रकार जाणीतो हतो अने अहीं आगळ उपर केटलीक प्राचीन गुजराती रास-कृतिनो अभ्यास कर्यो छे अे परथी अेक वस्तु फलित थाय छे के आ रास गेय हता, एटलुं ज नहीं रास रमाता-नचाता हता,૧<ref>૧ प्रकरण पहेलुं : प्राचीन गुजराती भाषा अने साहित्यनो उद्भव<br>  
Line 20: Line 20:
   प्रकरण छठुं : केटलीक प्रतिनिधिरूप रासकृतिओनो अभ्यास</ref> अेटले के, नृत्यना साथ तरीके गवाता हता. तो ओ दृष्टिअे प्राचीन गुजराती रासोने संस्कृतना रास के रासक साथे कशी संबंध हतो खरो अे पण जोवुं जरूरी बने छे.  
   प्रकरण छठुं : केटलीक प्रतिनिधिरूप रासकृतिओनो अभ्यास</ref> अेटले के, नृत्यना साथ तरीके गवाता हता. तो ओ दृष्टिअे प्राचीन गुजराती रासोने संस्कृतना रास के रासक साथे कशी संबंध हतो खरो अे पण जोवुं जरूरी बने छे.  


संस्कृत साहित्यमां रासना उल्लेख
'''संस्कृत साहित्यमां रासना उल्लेख'''
संस्कृत साहित्यमां पुराणो, संगीतशास्त्रना तेम ज नाट्यशास्त्रना ग्रंथोमां आ रास के रासकना जुदा जुदा प्रकारना उल्लेखो मळे छे. आमांनो सहुथी पहेलवहेलो "रास" शब्द बीजात्रीजा शतकमां૨<ref>૨ पुराणविवेचन - दुर्गाशंकर शास्त्री - पृष्ठ १०५.</ref> रचायेला मनाता “हरिवंश”मां वपरायेलो मळे छे. अने त्यार पछी तो विष्णुपुराण, ब्रह्मपुराण, भागवत वगेरेमां रासनां पुष्कळ वर्णनो मळे छे. आ बधे स्थळे "रास" शब्द कृष्ण-गोपीनी क्रीडा, यादववीरोनी तेम ज अप्सराओनी क्रीडाना अर्थमां वपरायेलो छे.
संस्कृत साहित्यमां पुराणो, संगीतशास्त्रना तेम ज नाट्यशास्त्रना ग्रंथोमां आ रास के रासकना जुदा जुदा प्रकारना उल्लेखो मळे छे. आमांनो सहुथी पहेलवहेलो "रास" शब्द बीजात्रीजा शतकमां૨<ref>૨ पुराणविवेचन - दुर्गाशंकर शास्त्री - पृष्ठ १०५.</ref> रचायेला मनाता “हरिवंश”मां वपरायेलो मळे छे. अने त्यार पछी तो विष्णुपुराण, ब्रह्मपुराण, भागवत वगेरेमां रासनां पुष्कळ वर्णनो मळे छे. आ बधे स्थळे "रास" शब्द कृष्ण-गोपीनी क्रीडा, यादववीरोनी तेम ज अप्सराओनी क्रीडाना अर्थमां वपरायेलो छे.


Line 27: Line 27:
तास्तु पंक्तिकृतास्सर्वा रमयन्ति मनोरमम् गायन्तयः कृष्णचरितं द्वन्द्वशा गोपकन्यकाः।૧<ref>૧ हरिवंश विष्णुपर्व - २०मो अध्याय- २५मो श्लोक</ref>  
तास्तु पंक्तिकृतास्सर्वा रमयन्ति मनोरमम् गायन्तयः कृष्णचरितं द्वन्द्वशा गोपकन्यकाः।૧<ref>૧ हरिवंश विष्णुपर्व - २०मो अध्याय- २५मो श्लोक</ref>  
"ए सर्वे गोपकन्याओ मंडळाकारमां बे बेनी जोडीमां कृष्णनुं मनोहर चरित गाती गाती रमे छे."
"ए सर्वे गोपकन्याओ मंडळाकारमां बे बेनी जोडीमां कृष्णनुं मनोहर चरित गाती गाती रमे छे."
"हरिवंश"ना संपादक नीलकण्ठ गोविंदनी टीका प्रमाणे आ श्लोकमांना “पंक्तिकृता"नो अर्थ 'मण्डलाकारं पंक्तिरूपेण स्थिता।’૨<ref>૨ हरिवंश-श्लोक २५नी टीका</ref> एवो लेतां ते मुजब एकली गोपीओ - गोपकन्याओना आ नृत्य साथे कृष्णना चरित्रनुं गीत गवातुं हतुं. अने बे बेनी जोडीमां मंडळाकारमां फरीने आ क्रीडा थती.
"हरिवंश"ना संपादक नीलकण्ठ गोविंदनी टीका प्रमाणे आ श्लोकमांना “पंक्तिकृता"नो अर्थ 'मण्डलाकारं पंक्तिरूपेण स्थिता।’૨<ref>૨ हरिवंश-श्लोक २५नी टीका</ref> एवो लेतां ते मुजब एकली गोपीओ - गोपकन्याओना आ नृत्य साथे कृष्णना चरित्रनुं गीत गवातुं हतुं. अने बे बेनी जोडीमां मंडळाकारमां फरीने आ क्रीडा थती.
पाछऴथी आवतां रासवर्णनो जोतां "हरिवंश"नी आ "हल्लीशक्रीडा” पण रासनृत्य जेवी ज होय एम लागे छे. पाछळना उल्लेखोमां पण मंडळाकारे, कृष्णबळरामनां चरित्रनुं संकीर्तन वर्णन करतां गीतो साथे थतुं नर्तन ते रासनृत्य अेम कहेवामां आव्युं छे. पण तेमां वधारामां गोपीओ साथै कृष्ण रहेता ज अथवा स्त्रीओ साथे एक पुरुष होय ते रासनुं आवश्यक अंग मनातुं तेम "हरिवंश"ना आ वर्णनमां नथी मनायुं. ते परथी कही शकाय के एकली गोपकन्याओना नृत्यनो पण एक प्रकार प्रचलित हतो खरो.
पाछऴथी आवतां रासवर्णनो जोतां "हरिवंश"नी आ "हल्लीशक्रीडा” पण रासनृत्य जेवी ज होय एम लागे छे. पाछळना उल्लेखोमां पण मंडळाकारे, कृष्णबळरामनां चरित्रनुं संकीर्तन वर्णन करतां गीतो साथे थतुं नर्तन ते रासनृत्य अेम कहेवामां आव्युं छे. पण तेमां वधारामां गोपीओ साथै कृष्ण रहेता ज अथवा स्त्रीओ साथे एक पुरुष होय ते रासनुं आवश्यक अंग मनातुं तेम "हरिवंश"ना आ वर्णनमां नथी मनायुं. ते परथी कही शकाय के एकली गोपकन्याओना नृत्यनो पण एक प्रकार प्रचलित हतो खरो.


<ref>"हरिवंश"मांनो बीजो नर्तनप्रकार</ref>
'''"हरिवंश"मांनो बीजो नर्तनप्रकार'''


"हरिवंश"मां बीजा पण अेक नर्तनप्रकारनो उल्लेख मळी आवे छे. आ उल्लेख बीजा बधा उल्लेख करतां जुदा नृत्यप्रकारनी विगतो आपे छे. कृष्ण, बळराम अने अन्य यादववीरोनुं समूहमां तेमनी भार्याओ साथेनी क्रीडानुं वर्णन अने अप्सराओना नृत्यनुं वर्णन "हरिवंश"मां नीचे प्रमाणे आपवामां आव्युं छे :-
"हरिवंश"मां बीजा पण अेक नर्तनप्रकारनो उल्लेख मळी आवे छे. आ उल्लेख बीजा बधा उल्लेख करतां जुदा नृत्यप्रकारनी विगतो आपे छे. कृष्ण, बळराम अने अन्य यादववीरोनुं समूहमां तेमनी भार्याओ साथेनी क्रीडानुं वर्णन अने अप्सराओना नृत्यनुं वर्णन "हरिवंश"मां नीचे प्रमाणे आपवामां आव्युं छे :-
Line 43: Line 43:
द्रष्टुमुद्रा रेवतिमाजगाम वेलालयं स्वर्गसमानमृद्धवया ॥ ४ ॥  
द्रष्टुमुद्रा रेवतिमाजगाम वेलालयं स्वर्गसमानमृद्धवया ॥ ४ ॥  
तां रेवतीं चोप्यथ वाऽपि रामं सर्वांनमस्कृत्यं वरांगयष्टयः  
तां रेवतीं चोप्यथ वाऽपि रामं सर्वांनमस्कृत्यं वरांगयष्टयः  
वाद्यानुरूपं ननृतुः सुगात्र्यः समन्तंतोअन्या जगिरे च सम्यक् ॥ ५ ॥ चक्रस्तथैवाभिनयेन लब्धं यथावदेषां यथावदेषां प्रियमर्थयुक्तम् ।  
वाद्यानुरूपं ननृतुः सुगात्र्यः समन्तंतोअन्या जगिरे च सम्यक् ॥ ५ ॥  
चक्रस्तथैवाभिनयेन लब्धं यथावदेषां यथावदेषां प्रियमर्थयुक्तम् ।  
हृद्यानुकूलं च बलस्य तस्य तथाज्ञया रैवतराजपुत्र्याः ॥ ६ ।।  
हृद्यानुकूलं च बलस्य तस्य तथाज्ञया रैवतराजपुत्र्याः ॥ ६ ।।  
चकृर्हन्त्यश्च तथैव रासं तद्वेशभाषाकृतिवेषयुक्ताः ।  
चकृर्हन्त्यश्च तथैव रासं तद्वेशभाषाकृतिवेषयुक्ताः ।  
Line 61: Line 62:
ततः सुभद्राहरणे जयं च युद्धे च बालाहकजम्बुमाले ।  
ततः सुभद्राहरणे जयं च युद्धे च बालाहकजम्बुमाले ।  
रत्नप्रवेशं च युधार्जितैर्यत्समादृतं शक्रसमक्षमासीत् ॥ १४ ॥  
रत्नप्रवेशं च युधार्जितैर्यत्समादृतं शक्रसमक्षमासीत् ॥ १४ ॥  
एतानि चान्यानि च चारुरूपा जगुः स्त्रियः प्रतिकराणि राजन् । संकर्षणाद्योक्षजहर्षाणान चित्राणि चानेककथाश्रयाणि ।। १५ ।। कादम्बरीपानमदोत्कटस्तु बल: पृथुश्री स चुकूद रामः ।  
एतानि चान्यानि च चारुरूपा जगुः स्त्रियः प्रतिकराणि राजन् ।  
संकर्षणाद्योक्षजहर्षाणान चित्राणि चानेककथाश्रयाणि ।। १५ ।।  
कादम्बरीपानमदोत्कटस्तु बल: पृथुश्री स चुकूद रामः ।  
सहस्ततालं मधुरं समं च स भार्यया रैवेतराजपुत्रया ॥ १६ ॥  
सहस्ततालं मधुरं समं च स भार्यया रैवेतराजपुत्रया ॥ १६ ॥  
तं कूर्दमानं मधुसूदनश्च दृष्टवा महात्मा च मुदान्वितोऽभूत ।  
तं कूर्दमानं मधुसूदनश्च दृष्टवा महात्मा च मुदान्वितोऽभूत ।  
Line 84: Line 87:
(७) मंगल वस्तुओथी सुसज्ज थयेलां अंगोवाळी अे सुंदर अप्सराओअे ते देशोनी भाषा, आकृति अने वेशथी युक्त थई, हसतां हसतां हाथथी ताल वगाडतां लीलायुक्त रास कर्यो.
(७) मंगल वस्तुओथी सुसज्ज थयेलां अंगोवाळी अे सुंदर अप्सराओअे ते देशोनी भाषा, आकृति अने वेशथी युक्त थई, हसतां हसतां हाथथी ताल वगाडतां लीलायुक्त रास कर्यो.
(८) तेओ संकर्षण बळरामने आनंद आपे अवां तेमनां कृत्योनां मंगळ वर्णनो तेम ज कंस अने प्रलम्बना वधनो रम्य प्रसंग तथा ते ज प्रमाणे रंगभूमिमां चाणूरनो संहार ए सर्वनुं संकीर्तन करवा लागी.
(८) तेओ संकर्षण बळरामने आनंद आपे अवां तेमनां कृत्योनां मंगळ वर्णनो तेम ज कंस अने प्रलम्बना वधनो रम्य प्रसंग तथा ते ज प्रमाणे रंगभूमिमां चाणूरनो संहार ए सर्वनुं संकीर्तन करवा लागी.
(९) जनार्दनना "दामोदर" तरीकेना यशनी कथा; अरिष्ठ अने धेनुक असुरनो वध; तेम ज गोकुळमां निवास, शकुनिनो वध...
(९) जनार्दनना "दामोदर" तरीकेना यशनी कथा; अरिष्ठ अने धेनुक असुरनो वध; तेम ज गोकुळमां निवास, शकुनिनो वध...
(१०) यमल अने अर्जुन वृक्षोनो मूळ सहित भंग, यथाकाले नानां बच्चां साथे वरुओनी करेली उत्पत्ति, यमुनामां दुरात्मा नागपति कालिय नागनुं कृष्णे करेलुं दमन,...
(१०) यमल अने अर्जुन वृक्षोनो मूळ सहित भंग, यथाकाले नानां बच्चां साथे वरुओनी करेली उत्पत्ति, यमुनामां दुरात्मा नागपति कालिय नागनुं कृष्णे करेलुं दमन,...
(११) कमलो अने पद्मोनुं शंख नामना सरोवरमांथी मधुसूदने करेलुं उद्धरण, गामोना रक्षणने माटे कृष्णे गोवर्धन केवी रीते धारण कये ते प्रसंग,...
(११) कमलो अने पद्मोनुं शंख नामना सरोवरमांथी मधुसूदने करेलुं उद्धरण, गामोना रक्षणने माटे कृष्णे गोवर्धन केवी रीते धारण कये ते प्रसंग,...
Line 136: Line 139:
ब्रह्मपुराण अने विष्णुपुराण
ब्रह्मपुराण अने विष्णुपुराण
ब्रह्मपुराण अने विष्णुमहापुराणमां रासना प्रकारनो आ प्रमाणे उल्लेख मळे छे :-  
ब्रह्मपुराण अने विष्णुमहापुराणमां रासना प्रकारनो आ प्रमाणे उल्लेख मळे छे :-  
______________________


गोपीपरिवृत्तो रात्रिं शरच्चन्द्रमनोरमाम् ।  
गोपीपरिवृत्तो रात्रिं शरच्चन्द्रमनोरमाम् ।  
Line 163: Line 164:
“ते मधुसूदन गोपीओ साथ रास रम्या, जेना विना अेक क्षण पण करोड वर्ष जेवी बनी. रति जेमने प्रिय छे अेवी अने पति, पिता, भाईओ बडे वारवामां आवेली ते गोप-स्त्रीओ साथे कृष्ण रात्रे आनंद करे छे."
“ते मधुसूदन गोपीओ साथ रास रम्या, जेना विना अेक क्षण पण करोड वर्ष जेवी बनी. रति जेमने प्रिय छे अेवी अने पति, पिता, भाईओ बडे वारवामां आवेली ते गोप-स्त्रीओ साथे कृष्ण रात्रे आनंद करे छे."


आ वर्णन जोतां बधुमां जणाय छे के कृष्ण-गोपीना रास रात्रे रमाता. शरदनी चांदनी रात्रे रासनो प्रारंभ करवा उत्सुक अेवा कृष्णे अे चांदनी रात माणी अेवो ब्रह्मपुराण अने विष्णुमहापुराणनो उल्लेख आपणे अगाउ जोयो छे.१ “भागवत" तरफथी पण आनुं समर्थन थाय छे.
आ वर्णन जोतां बधुमां जणाय छे के कृष्ण-गोपीना रास रात्रे रमाता. शरदनी चांदनी रात्रे रासनो प्रारंभ करवा उत्सुक अेवा कृष्णे अे चांदनी रात माणी अेवो ब्रह्मपुराण अने विष्णुमहापुराणनो उल्लेख आपणे अगाउ जोयो छे.१ <ref>१ पृष्ठ ३६-३७</ref>“भागवत" तरफथी पण आनुं समर्थन थाय छे.
भगवानपि ता रात्री शरदोत्फुल्लमल्लिकाः ।  
भगवानपि ता रात्री शरदोत्फुल्लमल्लिकाः ।  
वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रितः ॥२
वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रितः ॥२<ref>२ भागवत - दशमस्कन्ध- २६मो अध्याय - श्लोक १</ref>
शरदऋतुने लईने जेमां मल्लिकाओ खीली हती ते रात्रिओ जोई भगवाने पण योगमायानो आश्रय लई रमवाने मन कर्यु.
शरदऋतुने लईने जेमां मल्लिकाओ खीली हती ते रात्रिओ जोई भगवाने पण योगमायानो आश्रय लई रमवाने मन कर्यु.
भागवत
भागवत
Line 173: Line 174:
रासोत्सवः संप्रवृत्तो गोपीमण्डलमण्डितः ।  
रासोत्सवः संप्रवृत्तो गोपीमण्डलमण्डितः ।  
योगेश्वरेण कृष्णेन तासां मध्ये द्वयोर्द्वयोः ॥  
योगेश्वरेण कृष्णेन तासां मध्ये द्वयोर्द्वयोः ॥  
प्रविष्टेन गृहितानां कण्ठे स्वनिकटं स्त्रियः ॥३
प्रविष्टेन गृहितानां कण्ठे स्वनिकटं स्त्रियः ॥३<ref>३ भागवत - दशमस्कंध - ३३मो अध्याय - श्लोक २, ३, ४</ref>
त्यां पछी पोताने अनुसरनारी, प्रसन्न अने परस्पर भरावेला बाहुओवाळी ते स्त्रीरत्न- गोपीओ साथे भगवाने रासक्रीडा शरू करी. गोपीओमां बब्बेनी वच्चे योगेश्वर कृष्णे दाखल थई स्त्रीओने कण्ठथी ग्रहण करी पासे लीधी.
त्यां पछी पोताने अनुसरनारी, प्रसन्न अने परस्पर भरावेला बाहुओवाळी ते स्त्रीरत्न- गोपीओ साथे भगवाने रासक्रीडा शरू करी. गोपीओमां बब्बेनी वच्चे योगेश्वर कृष्णे दाखल थई स्त्रीओने कण्ठथी ग्रहण करी पासे लीधी.
_______________________
१ पृष्ठ ३६-३७
२ भागवत - दशमस्कन्ध- २६मो अध्याय - श्लोक १
३ भागवत - दशमस्कंध - ३३मो अध्याय - श्लोक २, ३, ४
पादन्यासैर्भुजविधुतिभिः सस्मितैविलासैर्भज्यन्मध्येश्चलकुचपटैः कुण्डलैमंण्डलोलै: ।
पादन्यासैर्भुजविधुतिभिः सस्मितैविलासैर्भज्यन्मध्येश्चलकुचपटैः कुण्डलैमंण्डलोलै: ।
स्विद्यन्मुख्य: कवररशनाग्रन्थयः कृष्णबध्वो गायन्त्वस्तं तडिते इव ता मेघचक्रे विरेजुः ॥ २
स्विद्यन्मुख्य: कवररशनाग्रन्थयः कृष्णबध्वो गायन्त्वस्तं तडिते इव ता मेघचक्रे विरेजुः ॥ २<ref>२ भागवत - दशमस्कंध - ३३मो अध्याय ८ श्लोक</ref>
श्री कृष्णप्रिय गोपिकाओ पण छटाथी पग मूकवा, हाथ चलाववा, मंद हास्य साथे भ्रूकुटिओना विलासो, लचकती केड, स्तन परनां खसी जतां वस्त्रो अने गाल पर डोलतां कुंडळोथी शोभती हती. तेमनां मुख पर बहु परसेवो वळी रह्यो हतो. अंबोडाना तथा कंदोराना बंध छूटी पड्या हता, अने श्री कृष्णनां गीत गाती तेओ मेघमंडलमां वीजळीओ शोभे तेम शोभती हती.
श्री कृष्णप्रिय गोपिकाओ पण छटाथी पग मूकवा, हाथ चलाववा, मंद हास्य साथे भ्रूकुटिओना विलासो, लचकती केड, स्तन परनां खसी जतां वस्त्रो अने गाल पर डोलतां कुंडळोथी शोभती हती. तेमनां मुख पर बहु परसेवो वळी रह्यो हतो. अंबोडाना तथा कंदोराना बंध छूटी पड्या हता, अने श्री कृष्णनां गीत गाती तेओ मेघमंडलमां वीजळीओ शोभे तेम शोभती हती.
उच्चैर्वगुर्नत्यमाना रक्तकण्ठयो रतिप्रियाः ।  
उच्चैर्वगुर्नत्यमाना रक्तकण्ठयो रतिप्रियाः ।  
कृष्णाभिमर्शमुदिता यद्गीतेनेदमावृत्तम् ।। १
कृष्णाभिमर्शमुदिता यद्गीतेनेदमावृत्तम् ।। १<ref>१ भागवत - दशमप्रकंध - ३३मो अध्याय ८ श्लोक</ref>
वळी नाचती, जातजातना रागोथी रंजित कंठवाळी, रति पर प्रीतिवाळी, अने श्री कृष्णना स्पर्शथी प्रसन्न थयेली गोपीओ उच्च स्वरे गाती हती, जेथी तेओना गीतथी आ जगत भराई गयुं हतुं.
वळी नाचती, जातजातना रागोथी रंजित कंठवाळी, रति पर प्रीतिवाळी, अने श्री कृष्णना स्पर्शथी प्रसन्न थयेली गोपीओ उच्च स्वरे गाती हती, जेथी तेओना गीतथी आ जगत भराई गयुं हतुं.
नृत्यती गायती काचित्कूजन्नूपुरमेखला ।  
नृत्यती गायती काचित्कूजन्नूपुरमेखला ।  
पार्श्वस्थाच्युतहस्ताम्बू श्रान्तावात्स्तनयोः शिवम् ॥  
पार्श्वस्थाच्युतहस्ताम्बू श्रान्तावात्स्तनयोः शिवम् ॥  
गोप्या लब्ध्वाच्युतं कान्तं श्रिय एकान्तवल्लभम् ।  
गोप्या लब्ध्वाच्युतं कान्तं श्रिय एकान्तवल्लभम् ।  
गृहीतकण्ठयस्तदार्भ्यां गायन्त्यस्तं विजतल्हिरे ॥ ३
गृहीतकण्ठयस्तदार्भ्यां गायन्त्यस्तं विजतल्हिरे ॥ ३<ref>३ भागवत - दशमस्कंध - ३३मो अध्याय - श्लोक १४-१५</ref>
____________________
२ भागवत - दशमस्कंध - ३३मो अध्याय ८ श्लोक
१ भागवत - दशमप्रकंध - ३३मो अध्याय ८ श्लोक
३ भागवत - दशमस्कंध - ३३मो अध्याय - श्लोक १४-१५
 
कोई गोपी नाचती, गाती अने झमकतां झांझरो तथा कंदोराने धारण करती थाकी गई त्यारे पासे उभेला श्री कृष्णना कल्याणकारी हस्तकमलने स्तन पर मूकवा लागी. अे रीते जेओना कंठमां भगवाने हाथ नाख्या हता ओवी ते गोपीओ केवल अेक लक्ष्मीना ज पति कृष्णने पति तरीके पामीने तेमनां गीत गाती रासक्रीडा करवा लागी.  
कोई गोपी नाचती, गाती अने झमकतां झांझरो तथा कंदोराने धारण करती थाकी गई त्यारे पासे उभेला श्री कृष्णना कल्याणकारी हस्तकमलने स्तन पर मूकवा लागी. अे रीते जेओना कंठमां भगवाने हाथ नाख्या हता ओवी ते गोपीओ केवल अेक लक्ष्मीना ज पति कृष्णने पति तरीके पामीने तेमनां गीत गाती रासक्रीडा करवा लागी.  


“हरिवंश"ना वर्णनने "भागवत"नुं समर्थन  
'''“हरिवंश"ना वर्णनने "भागवत"नुं समर्थन'''
आवां अनेक वर्णनो “भागवत"मां मळे छे. तदनुसार अेक पुरुष अने अेक स्त्री अेवी रचनाना मंडळाकारमां आजे थता रास जेम अेक गोपी अेक कृष्ण अेवी रचनाथी रास रमाता, तेम बीजी बाजु, मेघमंडलमां वीजळी शोभे तेम गोपीओ शोभती हती अेवी उपमाथी अेक कृष्ण अने अनेक गोपीओना रास रमाता अेम जणाय छे. आ रास साथे श्री कृष्णने लगतां गीत गवातां अेम पण “भागवत”नां वर्णन कहे छे. रास साथेनां गीत कृष्ण के बलरामना पराक्रमनां वर्णननां हतां अेवा “हरिवंश"ना वर्णनने आम "भागवत"नुं सथर्थन मळे छे. “हरिवंश" रासने ललित नृत्यनो प्रकार कहे छे तेम “भागवत"मां पण हाथवगनुं सस्मित छटायुक्त हलनचलन रासमां थतुं अेम कहेवामां आवे छे। कृष्ण रासमंडळमां दाखल थई गोपीओने कंठेथी ग्रहण करता अेना वर्णन परथी जणाय छे के अे पण रासनो ज भाग हशे. आना समर्थनमां नीचे प्रमाणेनो उल्लेख जोई शकाय :-
आवां अनेक वर्णनो “भागवत"मां मळे छे. तदनुसार अेक पुरुष अने अेक स्त्री अेवी रचनाना मंडळाकारमां आजे थता रास जेम अेक गोपी अेक कृष्ण अेवी रचनाथी रास रमाता, तेम बीजी बाजु, मेघमंडलमां वीजळी शोभे तेम गोपीओ शोभती हती अेवी उपमाथी अेक कृष्ण अने अनेक गोपीओना रास रमाता अेम जणाय छे. आ रास साथे श्री कृष्णने लगतां गीत गवातां अेम पण “भागवत”नां वर्णन कहे छे. रास साथेनां गीत कृष्ण के बलरामना पराक्रमनां वर्णननां हतां अेवा “हरिवंश"ना वर्णनने आम "भागवत"नुं सथर्थन मळे छे. “हरिवंश" रासने ललित नृत्यनो प्रकार कहे छे तेम “भागवत"मां पण हाथवगनुं सस्मित छटायुक्त हलनचलन रासमां थतुं अेम कहेवामां आवे छे। कृष्ण रासमंडळमां दाखल थई गोपीओने कंठेथी ग्रहण करता अेना वर्णन परथी जणाय छे के अे पण रासनो ज भाग हशे. आना समर्थनमां नीचे प्रमाणेनो उल्लेख जोई शकाय :-
नायं श्रियोर्अङ्ग उचितान्तरतें प्रसादः
नायं श्रियोर्अङ्ग उचितान्तरतें प्रसादः
स्वर्योषिता नलिनगन्धरुचां कुतोडन्याः
स्वर्योषिता नलिनगन्धरुचां कुतोडन्याः
रासोत्सवेडस्य भुजदण्डग्रहितकण्ठलवाशिषां य उद्गाद्व्रजवल्लभीनाम् ॥ १  
रासोत्सवेडस्य भुजदण्डग्रहितकण्ठलवाशिषां य उद्गाद्व्रजवल्लभीनाम् ॥ १ <ref>१ भागवत - दशमस्कंध - ४७मो अध्याय - ६० मो श्लोक</ref>
रासक्रीडाना उत्सवमां श्रीकृष्णनी भुजाअे ग्रहण करेला कंठवाळी अने तेथी ज सर्व मनोरथ पामी चुकेली आ व्रजनी गोपीओ उपर भगवाननी कृपा थई छे तेवी कृपा निरंतर अत्यंत प्रेम धरावती लक्ष्मी पर के कमळ जेवी सुगंधी तथा क्रांतिवाळी देवांगनाओं पर पण नथी, तो बीजी स्त्रीओ आवी कृपापात्र शी रीते थाय ?
रासक्रीडाना उत्सवमां श्रीकृष्णनी भुजाअे ग्रहण करेला कंठवाळी अने तेथी ज सर्व मनोरथ पामी चुकेली आ व्रजनी गोपीओ उपर भगवाननी कृपा थई छे तेवी कृपा निरंतर अत्यंत प्रेम धरावती लक्ष्मी पर के कमळ जेवी सुगंधी तथा क्रांतिवाळी देवांगनाओं पर पण नथी, तो बीजी स्त्रीओ आवी कृपापात्र शी रीते थाय ?
________________________
१ भागवत - दशमस्कंध - ४७मो अध्याय - ६० मो श्लोक


“रासगोष्ठी"नो अर्थ  
'''“रासगोष्ठी"नो अर्थ'''
“विष्णुपुराण"नी जेम "भागवत"मां पण “रासगोष्ठी” शब्द घणो वपरायेलो मळे छे.
“विष्णुपुराण"नी जेम "भागवत"मां पण “रासगोष्ठी” शब्द घणो वपरायेलो मळे छे.
कर्णोत्पलालकविटंक कपोलधर्मवक्रश्रियावलयनूपुरघोषवाद्यैः  
कर्णोत्पलालकविटंक कपोलधर्मवक्रश्रियावलयनूपुरघोषवाद्यैः  
गौप्पः समं भगवता ननृतुः स्वकेशस्तस्त्रजो भ्रमरगायक रासगोष्ठयाम् ॥ १
गौप्पः समं भगवता ननृतुः स्वकेशस्तस्त्रजो भ्रमरगायक रासगोष्ठयाम् ॥ १<ref>१ भागवत - दशमस्कंध - ३३मो अध्याय - १६मो श्लोक</ref>
भमराओ रूपी गवैयावाळी ते रास-सभामां गोपीओ भगवान साथे नाचती हती त्यारे तेमना मुख पर कानमा पहेरेलां कमळोथी, केश वडे शोभता गालोथी अने परसेवानां बिन्दुओथी शोभा थई हती. तेमनां कडा, झांझर, अने घूघरीओ वाद्य रूपे थयां हतां. अने तेमना वाळमांथी पुष्पनी माळा सरकी रही हती.  
भमराओ रूपी गवैयावाळी ते रास-सभामां गोपीओ भगवान साथे नाचती हती त्यारे तेमना मुख पर कानमा पहेरेलां कमळोथी, केश वडे शोभता गालोथी अने परसेवानां बिन्दुओथी शोभा थई हती. तेमनां कडा, झांझर, अने घूघरीओ वाद्य रूपे थयां हतां. अने तेमना वाळमांथी पुष्पनी माळा सरकी रही हती.  
यस्यानुरागललितास्मितवल्गुमन्त्रलीलावलोक परिरम्मेण रासगोष्ठयाम् ।  
यस्यानुरागललितास्मितवल्गुमन्त्रलीलावलोक परिरम्मेण रासगोष्ठयाम् ।  
नीताः स्म नः क्षणमिव क्षणदा विना तं गोप्यः कथं न्वतितरेम तमोदुरन्तम् ॥२
नीताः स्म नः क्षणमिव क्षणदा विना तं गोप्यः कथं न्वतितरेम तमोदुरन्तम् ॥२<ref>२ भागवत - दशमस्कंध - ३६मो अध्याय - २९मो श्लोक</ref>
जेनुं स्नेहयुक्त सुंदर हास्य, मनोहर गुप्त वातो, विलासपूर्वक जोवुं तथा बालिंगन - आ बधुं जेमां हतुं अवी रास-सभामां आपणे अनेक रात अेक क्षणनी जेम गाळी छे. तेना विना आपणे आ लांबा विरहदुःखने ( अबाराने) शी रीते तरीशुं ?
जेनुं स्नेहयुक्त सुंदर हास्य, मनोहर गुप्त वातो, विलासपूर्वक जोवुं तथा बालिंगन - आ बधुं जेमां हतुं अवी रास-सभामां आपणे अनेक रात अेक क्षणनी जेम गाळी छे. तेना विना आपणे आ लांबा विरहदुःखने ( अबाराने) शी रीते तरीशुं ?
ताः किं निशाः स्मरति यासु तदा प्रियामिर्वृन्दावने कुमुदकुन्दशशांकरम्ये ।
ताः किं निशाः स्मरति यासु तदा प्रियामिर्वृन्दावने कुमुदकुन्दशशांकरम्ये ।
रेमे कव्णच्चरणनूपुररासगोष्ठ्यामस्माभिरीडितमनोज्ञकथः कदाचित् । ३
रेमे कव्णच्चरणनूपुररासगोष्ठ्यामस्माभिरीडितमनोज्ञकथः कदाचित् । ३<ref>३ भागवत - ४७मो अध्याय - ४३मो श्लोक</ref>
______________
१ भागवत - दशमस्कंध - ३३मो अध्याय - १६मो श्लोक
२ भागवत - दशमस्कंध - ३६मो अध्याय - २९मो श्लोक
३ भागवत - ४७मो अध्याय - ४३मो श्लोक
 
 
 
 


कुमुद, मोगरा, अने चंद्रथी सुंदर बनेला अेवा वृन्दावनमां पगनां झांझरोनां झणकारवाळी रासमंडळीमां जेमनी सुंदर कथाओ गवाती ते (श्रीकृष्ण) ते वेळा तेमनी प्रिया अेवी अमारी साथे जे रात्रिओमां रमता हता ते क्यारेय याद करे छे ?
कुमुद, मोगरा, अने चंद्रथी सुंदर बनेला अेवा वृन्दावनमां पगनां झांझरोनां झणकारवाळी रासमंडळीमां जेमनी सुंदर कथाओ गवाती ते (श्रीकृष्ण) ते वेळा तेमनी प्रिया अेवी अमारी साथे जे रात्रिओमां रमता हता ते क्यारेय याद करे छे ?


या वै श्रियाऽर्चितमजादिभिराप्तकामैर्योगेश्वर्रेरपि यदार्त्मान रासगोष्ठयाम् ।
या वै श्रियाऽर्चितमजादिभिराप्तकामैर्योगेश्वर्रेरपि यदार्त्मान रासगोष्ठयाम् ।
कृष्णस्य तद्भगवतश्चरणारविन्दं न्यस्तं स्तनेषु विजहुः परिरम्य तापम् ॥ १  
कृष्णस्य तद्भगवतश्चरणारविन्दं न्यस्तं स्तनेषु विजहुः परिरम्य तापम् ॥ १<ref>१ भागवत - ४७मो अध्याय - ६२मो श्लोक</ref>
जे अे लक्ष्मीजीअे पूजेलुं अने पूर्ण कामनावाळा ब्रह्मा वगेरे योगेश्वरोअे पण मनमां चिंतवेलुं श्रीकृष्णनुं चरणकमळ, रासमंडळीमां स्तनो पर मूकी, तेने भेटी (हृदयनो) ताप दूर कर्यो.
जे अे लक्ष्मीजीअे पूजेलुं अने पूर्ण कामनावाळा ब्रह्मा वगेरे योगेश्वरोअे पण मनमां चिंतवेलुं श्रीकृष्णनुं चरणकमळ, रासमंडळीमां स्तनो पर मूकी, तेने भेटी (हृदयनो) ताप दूर कर्यो.
आम "रासगोष्ठी"ना अनेक उल्लेखो मळे छे. पण तेनो चोक्कसपणे कयो अर्थ घटाववो अे नक्की समजातुं नथी. "भागवत"ना ज उल्लेखो जोईअे तो "रासगोष्ठी" अेटले रास माटे अेकत्र थयेल नर्तकवृन्द अने रीतसरनुं रास-नृत्य अेम बन्ने अर्थ थाय छे. "भमराओरूपी गवैयावाळी ते राससभामां... २" “रासमंडळीमां जेमनी सुंदर कथा गवाती३” अेवा उल्लेखो उपरथी "रासगोष्ठी" अेटले रीतसरनुं नृत्य अेवो अर्थ समजाय छे. ज्यारे "जेनुं स्नेहयुक्त हास्य, मनोहर गुप्त वातो"४ अेमां जमा थयेल नर्तकवृन्द अवो अर्थ समजाय छे.
आम "रासगोष्ठी"ना अनेक उल्लेखो मळे छे. पण तेनो चोक्कसपणे कयो अर्थ घटाववो अे नक्की समजातुं नथी. "भागवत"ना ज उल्लेखो जोईअे तो "रासगोष्ठी" अेटले रास माटे अेकत्र थयेल नर्तकवृन्द अने रीतसरनुं रास-नृत्य अेम बन्ने अर्थ थाय छे. "भमराओरूपी गवैयावाळी ते राससभामां... २<ref>२ पृ. ५३ (१)</ref>" “रासमंडळीमां जेमनी सुंदर कथा गवाती३<ref>३ पृ. ४३ (३)</ref>” अेवा उल्लेखो उपरथी "रासगोष्ठी" अेटले रीतसरनुं नृत्य अेवो अर्थ समजाय छे. ज्यारे "जेनुं स्नेहयुक्त हास्य, मनोहर गुप्त वातो"४<ref>४ पृ. ४३ (२)</ref> अेमां जमा थयेल नर्तकवृन्द अवो अर्थ समजाय छे.
छेल्लो उल्लेख रासमंडळीमां श्रीकृष्णनुं चरणकमळ स्तन पर मूकी गोपीओ हृदयनो ताप दूर करती अेवो छे. रासमां कृष्ण गोपीओने कंठेथी ग्रहण करता अेवो उल्लेख आगळ अनेक वार मळ्यो छे. पण अहीं उल्लेखायेल प्रकार रासनो भाग हतो वो उल्लेख नथी मळतो.
छेल्लो उल्लेख रासमंडळीमां श्रीकृष्णनुं चरणकमळ स्तन पर मूकी गोपीओ हृदयनो ताप दूर करती अेवो छे. रासमां कृष्ण गोपीओने कंठेथी ग्रहण करता अेवो उल्लेख आगळ अनेक वार मळ्यो छे. पण अहीं उल्लेखायेल प्रकार रासनो भाग हतो वो उल्लेख नथी मळतो.


_________________________
"पार्श्वस्थाच्युतहरतावजं श्रान्ताधत्स्तनयोःशिवम्"<ref>१ पृ. ४१ (२)</ref> अेवो जे उल्लेख छे तेमां पण गोपीओ थाकती त्यारे पासे ऊभेला कृष्णना कल्याणकारी हस्तकमलने स्तन पर मूकवा लागी ओम कह्युं छे. “पासे ऊभेला कृष्ण” अेवा शब्दप्रयोग परथी लागे छे के रासक्रीडामां तेनो समावेश नहीं थतो होय. ते ज प्रमाणे "भागवत"ना पण आपणे जोयेला छेल्ला उल्लेखमां “रासगोष्टी" अेटले रास माटे जमा थयेल नर्तकवृन्द अेवो अर्थ लेवो जोईअे.
भागवत - ४७मो अध्याय - ६२मो श्लोक
२ पृ. ५३ ()
पृ. ४३ (३)
४ पृ. ४३ (२)
 
"पार्श्वस्थाच्युतहरतावजं श्रान्ताधत्स्तनयोःशिवम्"१ अेवो जे उल्लेख छे तेमां पण गोपीओ थाकती त्यारे पासे ऊभेला कृष्णना कल्याणकारी हस्तकमलने स्तन पर मूकवा लागी ओम कह्युं छे. “पासे ऊभेला कृष्ण” अेवा शब्दप्रयोग परथी लागे छे के रासक्रीडामां तेनो समावेश नहीं थतो होय. ते ज प्रमाणे "भागवत"ना पण आपणे जोयेला छेल्ला उल्लेखमां “रासगोष्टी" अेटले रास माटे जमा थयेल नर्तकवृन्द अेवो अर्थ लेवो जोईअे.
आम “रासगोष्ठी” शब्द नर्तकवृन्द अने नृत्यप्रकार अेवा बन्ने अर्थमां वपरायो छे, अेम कही शकाय. नर्तकवृन्द अेटले के, रास माटे विशिष्ट रीते गोठवाईने ऊभेला रासकारो, तेमनो विशिष्ट बन्ध अेवो अर्थ करवो जोईअे.
आम “रासगोष्ठी” शब्द नर्तकवृन्द अने नृत्यप्रकार अेवा बन्ने अर्थमां वपरायो छे, अेम कही शकाय. नर्तकवृन्द अेटले के, रास माटे विशिष्ट रीते गोठवाईने ऊभेला रासकारो, तेमनो विशिष्ट बन्ध अेवो अर्थ करवो जोईअे.


हेमचन्द्रनुं छंदोनुशासन
'''हेमचन्द्रनुं छंदोनुशासन'''
“छंदोनुशासन"मां हेमचन्द्र “रास” छंदनी व्याख्या आप्या बाद उदाहरणमां नीचे प्रमाणेनुं पद्य आपे छे :-  
“छंदोनुशासन"मां हेमचन्द्र “रास” छंदनी व्याख्या आप्या बाद उदाहरणमां नीचे प्रमाणेनुं पद्य आपे छे :-  
सुणिवि वसंति पुरपोंढपुरंधिहं रासु,  
सुणिवि वसंति पुरपोंढपुरंधिहं रासु,  
सुमरिवि लडह हूओ तकखणि पाहिउ निरासु२
सुमरिवि लडह हूओ तकखणि पाहिउ निरासु२<ref>२ छंदोनुशासन - पृ. ३५ - ५० पद्य १५मुं</ref>
अेम वसंत ऋतुमां रास रमाता ऐम कहे छे. पुराणोमां शरदनी चांदनी रात्रे रास रमाता अेवा उल्लेख मळे छे तेना अनुसंधानमां आ उल्लेख नोंधपात्र छे.
अेम वसंत ऋतुमां रास रमाता ऐम कहे छे. पुराणोमां शरदनी चांदनी रात्रे रास रमाता अेवा उल्लेख मळे छे तेना अनुसंधानमां आ उल्लेख नोंधपात्र छे.
_____________
१ पृ. ४१ (२)
२ छंदोनुशासन - पृ. ३५ - ५० पद्य १५मुं


 
'''हल्लीसक अने रासक'''
हल्लीसक अने रासक
“हरिवंश"मां जेम “हल्लीसक" ने "रासक" लगभग अेकसरखा नृत्यप्रकार हता अेम अनुमान तारवी शकाय अेवां वर्णनो मळे छे तेम बीजा पण अेवा ज केटलाक उल्लेख नाट्यशास्त्रना ग्रंथोमांथी मळी आवे छे. आ संबंधमां १२मा सेकामां थई गयेला रामचन्द्र-गुणचंद्रनी "नाट्यदर्पण"मांनी व्याख्या अने अे ज सैकाना शारदातनयनी "भावप्रकाशन"मांनी व्याख्या सरखावी जोवा जेवी छे.  
“हरिवंश"मां जेम “हल्लीसक" ने "रासक" लगभग अेकसरखा नृत्यप्रकार हता अेम अनुमान तारवी शकाय अेवां वर्णनो मळे छे तेम बीजा पण अेवा ज केटलाक उल्लेख नाट्यशास्त्रना ग्रंथोमांथी मळी आवे छे. आ संबंधमां १२मा सेकामां थई गयेला रामचन्द्र-गुणचंद्रनी "नाट्यदर्पण"मांनी व्याख्या अने अे ज सैकाना शारदातनयनी "भावप्रकाशन"मांनी व्याख्या सरखावी जोवा जेवी छे.  
 
'''
नाट्यदर्पण
नाट्यदर्पण'''
“नाट्यदर्पण"मां हल्लीसकनी व्याख्या आ प्रमाणे छे :- ( यन्मण्डलेन )
“नाट्यदर्पण"मां हल्लीसकनी व्याख्या आ प्रमाणे छे :- ( यन्मण्डलेन )
यन्मण्डलेन१ नृतं स्त्रीणां हल्लीसकं तु तत्प्राहुः ।  
यन्मण्डलेन१<ref>१ ऊरू, जंघा अने पादनुं संचालन ते चारी, बीजी व्याख्या प्रमाणे ऊरू, जंघा, पाद अने कटिनुं चालन ते चारी. आ चारीसंचालन डाबा अथवा जमणा कोई पण अेक पादथी थाय छे. अेवा बे पादथी थता चलनने करण कहे छे. करणसमूह ते खंड अने त्रण अथवा चार खंडनो संयोग ते मंडल, (रास अने गरबा-४७मुं पृष्ठ )</ref>  नृतं स्त्रीणां हल्लीसकं तु तत्प्राहुः ।  
तत्रैको नेता स्याद्गोपस्त्रीणामिव मुरारिः ॥२
तत्रैको नेता स्याद्गोपस्त्रीणामिव मुरारिः ॥२<ref>२ नाट्यदर्पण - भाग १-६ श्लोक-२१४मुं पृष्ठ.</ref>
स्त्रीओ वडे ऊरू, जंघा अने बन्ने पादना चलन वडे नर्तन करवामां आवे छे ते हल्लीसक कहेवाय छे. गोपस्त्रीओमां ज़ेम कृष्ण तेम तेमां अेक नेता होय छे.
स्त्रीओ वडे ऊरू, जंघा अने बन्ने पादना चलन वडे नर्तन करवामां आवे छे ते हल्लीसक कहेवाय छे. गोपस्त्रीओमां ज़ेम कृष्ण तेम तेमां अेक नेता होय छे.
ज्यारे शारदातनयनी रासकनी व्याख्या आ प्रमाणेनी छे :-  
ज्यारे शारदातनयनी रासकनी व्याख्या आ प्रमाणेनी छे :-  
मण्डलेनतु यन्नृतं यद्रासकमिति स्मृतम् ।  
मण्डलेनतु यन्नृतं यद्रासकमिति स्मृतम् ।  
एककस्तस्य नेता स्याद्गोपस्त्रीणां यथा हरि ॥३
एककस्तस्य नेता स्याद्गोपस्त्रीणां यथा हरि ॥३<ref>३ भावप्रकाशनम् - ११-१२ पंक्ति - २६६मुं पृष्ठ.</ref>
ऊरू, जंघा अने बन्ने पादना चलन वडे नर्तन थाय ते रासक कहेवाय छे. गोपीओमां हरि तेम तेमां अेक नेता होय छे.
ऊरू, जंघा अने बन्ने पादना चलन वडे नर्तन थाय ते रासक कहेवाय छे. गोपीओमां हरि तेम तेमां अेक नेता होय छे.
_______________________
 
१ ऊरू, जंघा अने पादनुं संचालन ते चारी, बीजी व्याख्या प्रमाणे ऊरू, जंघा, पाद अने कटिनुं चालन ते चारी. आ चारीसंचालन डाबा अथवा जमणा कोई पण अेक पादथी थाय छे. अेवा बे पादथी थता चलनने करण कहे छे. करणसमूह ते खंड अने त्रण अथवा चार खंडनो संयोग ते मंडल, (रास अने गरबा-४७मुं पृष्ठ )
२ नाट्यदर्पण - भाग १-६ श्लोक-२१४मुं पृष्ठ.
३ भावप्रकाशनम् - ११-१२ पंक्ति - २६६मुं पृष्ठ.
आम हल्लीसक अने रासकनी आ बने व्याख्याओ बंने प्रकारनां लक्षण तद्दन अेकसरखां आपे छे. अेटले १२मा सैकामां रास अने हल्लीसक वच्चेनो भेद लगभग नहिवत् बन्यो हशे अेवुं अनुमान करी शकाय. आ पहेलां ११मा सैकामां थई गयेल भोजदेव तेना "सरस्वतीकण्ठाभरम्"मां कहे छे के :-
आम हल्लीसक अने रासकनी आ बने व्याख्याओ बंने प्रकारनां लक्षण तद्दन अेकसरखां आपे छे. अेटले १२मा सैकामां रास अने हल्लीसक वच्चेनो भेद लगभग नहिवत् बन्यो हशे अेवुं अनुमान करी शकाय. आ पहेलां ११मा सैकामां थई गयेल भोजदेव तेना "सरस्वतीकण्ठाभरम्"मां कहे छे के :-
तदिदं हल्लीसकमेव तालबंधविशेषयुक्तं रास अेवेत्युच्यते ॥१
तदिदं हल्लीसकमेव तालबंधविशेषयुक्तं रास अेवेत्युच्यते ॥१<ref>१ सरस्वतीकण्ठाभरणम् - १५६मा श्लोक पछीनी टीका- पृष्ठ २६३</ref>
विशेष तालबंधयुक्त हल्लीसक ते रासक अेम भोजदेवनुं कहेवुं छे. भोजदेवे हल्लीसकनी व्याख्यामां कह्युं छे के :-
विशेष तालबंधयुक्त हल्लीसक ते रासक अेम भोजदेवनुं कहेवुं छे. भोजदेवे हल्लीसकनी व्याख्यामां कह्युं छे के :-
मण्डलेन तु यत्स्त्रीणां नृत्यं हल्लीसकं तु तत् ।  
मण्डलेन तु यत्स्त्रीणां नृत्यं हल्लीसकं तु तत् ।  
तत्र नेता भवेदेको गोपस्त्रीणां हरियथा ॥२
तत्र नेता भवेदेको गोपस्त्रीणां हरियथा ॥२<ref>२ सरस्वतीकण्ठाभरणम् श्लोक १५६ पृष्ठ २६३</ref>
 
ऊरू, जंघा अने बंने पादना चलन वडे स्त्रीओ द्वारा नर्तन थाय ते हल्लीसक - गोपस्त्रीओमां जेम हरि तेम तेमां अेक नेता होय.
ऊरू, जंघा अने बंने पादना चलन वडे स्त्रीओ द्वारा नर्तन थाय ते हल्लीसक - गोपस्त्रीओमां जेम हरि तेम तेमां अेक नेता होय.
आम ११मा सैकाना भोजदेव अने १२मा सैकाना रामचंद्र - गुणचंद्रनी हल्लीसकनी व्याख्याओमां अने १२मा सैकाना शारदातनयनी रासकनी व्याख्यामां बने नृत्यप्रकारनां लक्षण तद्दन सरखां आपवामां आव्यां छे. भोजदेव हल्लीसकनी सरखामणीमां रास विशेष तालबंधयुक्त प्रकार हतो अेम कहे छे. अेटले तेना समयमां हल्लीसक तथा रासक वच्चे आटलो तालनो फेर हतो, अे सिवाय बंने प्रकार वच्चे खास फरक न हतो अेम लागे छे. पण त्यार पछी शारदातनय अने रामचंद्र - गुणचंद्रनी अनुक्रमे रासक अने हल्लीसकनी व्याख्या तद्दन सरखी ज छे. अेटले भोजदेवना समयमां बंने प्रकार वच्चेनो जे थोडो भेद हतो ते तेमना समयमां तद्दन घसाई गयो हशे अने बंने सरखा ज प्रकारनां नृत्यो तरीके स्वीकारातां हशे ओम जणाय छे.  
आम ११मा सैकाना भोजदेव अने १२मा सैकाना रामचंद्र - गुणचंद्रनी हल्लीसकनी व्याख्याओमां अने १२मा सैकाना शारदातनयनी रासकनी व्याख्यामां बने नृत्यप्रकारनां लक्षण तद्दन सरखां आपवामां आव्यां छे. भोजदेव हल्लीसकनी सरखामणीमां रास विशेष तालबंधयुक्त प्रकार हतो अेम कहे छे. अेटले तेना समयमां हल्लीसक तथा रासक वच्चे आटलो तालनो फेर हतो, अे सिवाय बंने प्रकार वच्चे खास फरक न हतो अेम लागे छे. पण त्यार पछी शारदातनय अने रामचंद्र - गुणचंद्रनी अनुक्रमे रासक अने हल्लीसकनी व्याख्या तद्दन सरखी ज छे. अेटले भोजदेवना समयमां बंने प्रकार वच्चेनो जे थोडो भेद हतो ते तेमना समयमां तद्दन घसाई गयो हशे अने बंने सरखा ज प्रकारनां नृत्यो तरीके स्वीकारातां हशे ओम जणाय छे.  
______________________
१ सरस्वतीकण्ठाभरणम् - १५६मा श्लोक पछीनी टीका- पृष्ठ २६३
२ सरस्वतीकण्ठाभरणम् श्लोक १५६ पृष्ठ २६३


अभिधानचितामणिकोश अने काव्यानुशासन
अभिधानचितामणिकोश अने काव्यानुशासन
हेमचंद्र “अभिधानचिंतामणिकोश"मां "मण्डलेन तु यन्नृतं स्त्रीणां हल्लीसकं हि तत्"१ अेम कहे छे. ज्यारे "काव्यानुशासन"मां कहे छे के :-
हेमचंद्र “अभिधानचिंतामणिकोश"मां "मण्डलेन तु यन्नृतं स्त्रीणां हल्लीसकं हि तत्"१<ref>१ अभिधानचितामणिकोश - देवकाण्ड - २८१मो श्लोक - पृष्ठ ४०</ref>  अेम कहे छे. ज्यारे "काव्यानुशासन"मां कहे छे के :-
मण्डलेन तु यन्नृतं हल्लीसकमिति स्मृतं ।  
मण्डलेन तु यन्नृतं हल्लीसकमिति स्मृतं ।  
एकस्तत्र तु नेता स्याद्गोपस्त्रीणां यथा हरिः ॥  
एकस्तत्र तु नेता स्याद्गोपस्त्रीणां यथा हरिः ॥  
अनेक नर्तकीयोज्यं चित्रताललयान्वितम् ।  
अनेक नर्तकीयोज्यं चित्रताललयान्वितम् ।  
आचतुः षष्टियुगलाद्रासकं मसृणोद्धतम् ||२
आचतुः षष्टियुगलाद्रासकं मसृणोद्धतम् ||२<ref>२ काव्यानुशासन - हेमचंद्र - ८मो अध्याय- पृष्ठ ४४६</ref>
ऊरू, जंघा अने बंने पादना चलन वडे जे नर्तन करवामां आवे ते हल्लीसक कहेवाय छे. गोप-स्त्रीओमां हरि तेम तेमां अेक नेता होय छे.
ऊरू, जंघा अने बंने पादना चलन वडे जे नर्तन करवामां आवे ते हल्लीसक कहेवाय छे. गोप-स्त्रीओमां हरि तेम तेमां अेक नेता होय छे.
अनेक नर्तकीओ वडे, ६४ सुधीनां युगलोथी योजातुं अनेक ताल अने लययुक्त कोमळ तथा उद्धत नृत्य ते रासक.  
अनेक नर्तकीओ वडे, ६४ सुधीनां युगलोथी योजातुं अनेक ताल अने लययुक्त कोमळ तथा उद्धत नृत्य ते रासक.  
________________________
१ अभिधानचितामणिकोश - देवकाण्ड - २८१मो श्लोक - पृष्ठ ४०
२ काव्यानुशासन - हेमचंद्र - ८मो अध्याय- पृष्ठ ४४६


 
'''पुराणो अने हेमचन्द्र'''
पुराणो अने हेमचन्द्र
आम आ बंने प्रकारनां नृत्य ऊरू, जंघा अने बने पगना चलन वडे करवामां आवे छे, अनेक स्त्रीओ अने अेक पुरुष तेमां भाग ले छे. अेटला मुद्दा बाबत शारदातनय, भोजदेव, रामचंद्र, गुणचंद्र अने हेमचंद्र सहमत छे. हेमचंद्रनी रासकनी व्याख्या मुजब रासकमां अनेक ताल अने लय होय छे तथा ते नृत्य कोमळ तथा उध्धत बंने प्रकारनुं होय छे. पुराणोना उल्लेखमां रासकने ललित नृत्यनो प्रकार ज गणवामां आव्यो छे अे आपणे आगळ जोयुं छे. हेमचंद्रनी व्याख्या मुजब रासकमां ६४ सुधीनां युगलोमां गोपी भाग लई शके छे. पुराणनां वर्णनो अनुसार गोपीओ साथे कृष्ण भाग लेता होय अेवा रासनृत्य उपरांत अेकली गोपीओ रास रमती अेवो पण रासनृत्य प्रकार हतो. तेम हेमचंद्र हल्लीसकनी जेम रासकमां पुरुष भाग ले अे आवश्यक गणता नथी.   
आम आ बंने प्रकारनां नृत्य ऊरू, जंघा अने बने पगना चलन वडे करवामां आवे छे, अनेक स्त्रीओ अने अेक पुरुष तेमां भाग ले छे. अेटला मुद्दा बाबत शारदातनय, भोजदेव, रामचंद्र, गुणचंद्र अने हेमचंद्र सहमत छे. हेमचंद्रनी रासकनी व्याख्या मुजब रासकमां अनेक ताल अने लय होय छे तथा ते नृत्य कोमळ तथा उध्धत बंने प्रकारनुं होय छे. पुराणोना उल्लेखमां रासकने ललित नृत्यनो प्रकार ज गणवामां आव्यो छे अे आपणे आगळ जोयुं छे. हेमचंद्रनी व्याख्या मुजब रासकमां ६४ सुधीनां युगलोमां गोपी भाग लई शके छे. पुराणनां वर्णनो अनुसार गोपीओ साथे कृष्ण भाग लेता होय अेवा रासनृत्य उपरांत अेकली गोपीओ रास रमती अेवो पण रासनृत्य प्रकार हतो. तेम हेमचंद्र हल्लीसकनी जेम रासकमां पुरुष भाग ले अे आवश्यक गणता नथी.   


रासक विषे शारदातनय
'''रासक विषे शारदातनय'''
शारदातनय रासकनी जुदी जुदी व्याख्याओ आपे छे. अनेक नर्तकीओ वडे योजायेल ६४ सुधीनां युगलोथी रमातुं कोमळ - उद्धत प्रकारनुं अने अनेक ताल - लयथी युक्त अने ऊरू, जंधा तथा बंने पादना चलन वडे थतुं नर्तन ते रासक कहेवाय छे, ओवी हेमचन्द्र१ जेवी व्याख्या शारदातनय पण आपे छे. तेमां पण गोपीओना जेम हरि तेम अेक नेता होय छे.
शारदातनय रासकनी जुदी जुदी व्याख्याओ आपे छे. अनेक नर्तकीओ वडे योजायेल ६४ सुधीनां युगलोथी रमातुं कोमळ - उद्धत प्रकारनुं अने अनेक ताल - लयथी युक्त अने ऊरू, जंधा तथा बंने पादना चलन वडे थतुं नर्तन ते रासक कहेवाय छे, ओवी हेमचन्द्र१<ref>१ पृ. ४६</ref> जेवी व्याख्या शारदातनय पण आपे छे. तेमां पण गोपीओना जेम हरि तेम अेक नेता होय छे.
मण्डलेन तु यन्नृतं तद्रासकमिति स्मृतम् ।  
मण्डलेन तु यन्नृतं तद्रासकमिति स्मृतम् ।  
क्षेत्रकस्तस्य नेता स्याद्गोपस्त्रीणां यथा हरिः ॥  
क्षेत्रकस्तस्य नेता स्याद्गोपस्त्रीणां यथा हरिः ॥  
अनेक नर्तकीयोज्यं चित्रताललयान्वितं ।
अनेक नर्तकीयोज्यं चित्रताललयान्वितं ।
आचतुरष्ठीयुगलाद्रासकं मसृणोद्धतम् ॥ २
आचतुरष्ठीयुगलाद्रासकं मसृणोद्धतम् ॥ २<ref>२ भावप्रकाशनम् - ६मो अधिकार - २६६- ११ थी १४ पंक्ति</ref>
अहीं शारदातनय पण रासकने कोमल अने उद्धत बंने प्रकारनुं नृत्य गणावे छे. पण आ पहेलांना उल्लेखोमां रासकने ललित नृत्य गणाववामां आव्युं छे. तेमां पराक्रमगाथा, वीररसनां गीतो गवातां अेम “हरिवंश" कहे छे. पण अ साथेनुं नृत्य “उद्धत" प्रकारनुं पण होई शकतुं अेवो उल्लेख नथी. आम, शारदातनयना समय सुधीमां “उद्धत" प्रकारनो पण रासनृत्यमां उमेरो थयो होवो जोईअे. युगल अेटले स्त्री-परुष के अेकली नर्तकीओनी बब्बेनी जोडी ते क्यांय स्पष्ट नथी.  
अहीं शारदातनय पण रासकने कोमल अने उद्धत बंने प्रकारनुं नृत्य गणावे छे. पण आ पहेलांना उल्लेखोमां रासकने ललित नृत्य गणाववामां आव्युं छे. तेमां पराक्रमगाथा, वीररसनां गीतो गवातां अेम “हरिवंश" कहे छे. पण अ साथेनुं नृत्य “उद्धत" प्रकारनुं पण होई शकतुं अेवो उल्लेख नथी. आम, शारदातनयना समय सुधीमां “उद्धत" प्रकारनो पण रासनृत्यमां उमेरो थयो होवो जोईअे. युगल अेटले स्त्री-परुष के अेकली नर्तकीओनी बब्बेनी जोडी ते क्यांय स्पष्ट नथी.  
_______________________
१ पृ. ४६
२ भावप्रकाशनम् - ६मो अधिकार - २६६- ११ थी १४ पंक्ति


शारदातनय रासनी बीजी बे व्याख्या पण आपे छे :
शारदातनय रासनी बीजी बे व्याख्या पण आपे छे :
Line 310: Line 270:
पिण्डीशृङ्खलिकाविशेषविहितो युक्तो लताभेद्यकैः ।।
पिण्डीशृङ्खलिकाविशेषविहितो युक्तो लताभेद्यकैः ।।
चित्रातांद्यविचित्रितैर्लययुतो भेदद्वयालंकृतः ।  
चित्रातांद्यविचित्रितैर्लययुतो भेदद्वयालंकृतः ।  
चारीखण्डसुमण्डलैरनुगतः सोऽयं मतो रासकः ॥૧
चारीखण्डसुमण्डलैरनुगतः सोऽयं मतो रासकः ॥૧<ref>૧ भावप्रकाशनम् - ९मो अधिकार, पृ. २६५ - १० थी १४ पंक्ति</ref>
क्षीरसमुद्रमाथी अमृत मेळवी ते पीने देवोअे लता - भेद्यक जेवा नृतप्रकारो तेम ज पिंडी - शृंखलिकाथी युक्त अने जुदां जुदां वाद्य तथा लय - अेवा बे भेदथी अलंकृत, चारी खंड तथा मंडल जेमां आवतां होय अेवुं ( नृत्य ) कर्युं ते रासक कहेवाय.
क्षीरसमुद्रमाथी अमृत मेळवी ते पीने देवोअे लता - भेद्यक जेवा नृतप्रकारो तेम ज पिंडी - शृंखलिकाथी युक्त अने जुदां जुदां वाद्य तथा लय - अेवा बे भेदथी अलंकृत, चारी खंड तथा मंडल जेमां आवतां होय अेवुं ( नृत्य ) कर्युं ते रासक कहेवाय.
आम आ व्याख्या रासनृत्यने वाद्यनो साथ रहेतो, ते नृत्य लय-बद्ध हतुं, तेमां भाग लेनाराना जुदा जुदा प्रकारना हलनचलनने अवकाश हतो अेवा रासना बीजा उल्लेखोमां आवश्यक गणवामां आवेलां अंगोनुं समर्थन करे छे.  
आम आ व्याख्या रासनृत्यने वाद्यनो साथ रहेतो, ते नृत्य लय-बद्ध हतुं, तेमां भाग लेनाराना जुदा जुदा प्रकारना हलनचलनने अवकाश हतो अेवा रासना बीजा उल्लेखोमां आवश्यक गणवामां आवेलां अंगोनुं समर्थन करे छे.  
Line 316: Line 276:
शारदातनयनी त्रीजी व्याख्या आ प्रमाणे छे :
शारदातनयनी त्रीजी व्याख्या आ प्रमाणे छे :
षोडश द्वादशाष्टौ वा यस्मिन् नृत्यन्ति नायिका:  
षोडश द्वादशाष्टौ वा यस्मिन् नृत्यन्ति नायिका:  
पिण्डी बन्धादिविन्यासे रासकं तदुदाहृतम् ॥ १
पिण्डी बन्धादिविन्यासे रासकं तदुदाहृतम् ॥ १<ref>१ भावप्रकाशनम् - ९मो अधिकार- पृ. २६३-२६४-१-२ पंक्ति</ref>
१६, १२, के ८ नायिकाओ पिण्डीबंध आदि विन्यासथी नृत्य करे ते रासक कहेवामां आवे छे देवी व्याख्या शारदातनेय आपे छे. रामचंद्र गुणचंद्र पण आ ज व्याख्या आपे छे. २ आ उपरांत शारदातनय रासक अेक उपरूपक छे अेम गणावती व्याख्या पण आपे छे. पण आ व्याख्या आपणे पाछळथी जोईशुं. ३
१६, १२, के ८ नायिकाओ पिण्डीबंध आदि विन्यासथी नृत्य करे ते रासक कहेवामां आवे छे देवी व्याख्या शारदातनेय आपे छे. रामचंद्र गुणचंद्र पण आ ज व्याख्या आपे छे. २
_________________________________
<ref>२ नाट्यदर्पण - श्लोक ९- पृ. २१४-१५</ref> आ उपरांत शारदातनय रासक अेक उपरूपक छे अेम गणावती व्याख्या पण आपे छे. पण आ व्याख्या आपणे पाछळथी जोईशुं. ३<ref>३ पृ. ६५-६६</ref>
૧ भावप्रकाशनम् - ९मो अधिकार, पृ. २६५ - १० थी १४ पंक्ति
१ भावप्रकाशनम् - ९मो अधिकार- पृ. २६३-२६४-१-२ पंक्ति
२ नाट्यदर्पण - श्लोक ९- पृ. २१४-१५
३ पृ. ६५-६६


बेमभूपाल
'''बेमभूपाल'''
शारदातनय अने रामचंद्र अने गुणचंद्रनी आ छेवटनी रासकनी व्याख्या जेवी ज व्याख्या वेमभूपाल (इ.स. १४००)४ आपे छे.  
शारदातनय अने रामचंद्र अने गुणचंद्रनी आ छेवटनी रासकनी व्याख्या जेवी ज व्याख्या वेमभूपाल (इ.स. १४००)४<ref>४ भरतकोष-पृ. २० ( प्रस्तावना )</ref> आपे छे.  
पिण्डयादिवन्वलीलाभि: षोडश द्वादशाष्ट वा ।  
पिण्डयादिवन्वलीलाभि: षोडश द्वादशाष्ट वा ।  
यत्र नृत्यन्ति नर्तक्यः तद्रासकमुदाहृतम् ॥५
यत्र नृत्यन्ति नर्तक्यः तद्रासकमुदाहृतम् ॥५<ref>५. भरतकोष - पृ. ५५२</ref>
पिण्डीबंध वगेरे क्रीडाथी १६, १२ के ८ नर्तकीओ नृत्य करे ते रासक कहेवाय छे. रासमां भाग लेनार नर्तकीओनी संख्या विषे आ बधी व्याख्याओ अेकमत छे. हेमचंद्रनी जेम शारदातनय, रामचंद्र - गुणचंद्र अने बेमभूपालनी आ व्याख्यामां नर्तकीओनी साथे पुरुष नर्तक होवो जरूरी गणावायुं नथी. "हरिवंश"मां पण अेकली गोपीओना नर्तननुं वर्णन आवे छे अे आपणे आगळ जोयुं.
पिण्डीबंध वगेरे क्रीडाथी १६, १२ के ८ नर्तकीओ नृत्य करे ते रासक कहेवाय छे. रासमां भाग लेनार नर्तकीओनी संख्या विषे आ बधी व्याख्याओ अेकमत छे. हेमचंद्रनी जेम शारदातनय, रामचंद्र - गुणचंद्र अने बेमभूपालनी आ व्याख्यामां नर्तकीओनी साथे पुरुष नर्तक होवो जरूरी गणावायुं नथी. "हरिवंश"मां पण अेकली गोपीओना नर्तननुं वर्णन आवे छे अे आपणे आगळ जोयुं.
आगळ हेमचंद्र૧ अने शारदातनय२ अेक व्याख्यामां “आचतुः षष्टीयुगलाद्” अेम ६४ सुधीनां युगलोथी रासक रमाय ओम कहे छे. ज्यारे अहीं १६, १२ के ८ अेम कही वधुमां वधु १६ अने ओछामां ओछी ८ नर्तकी रासमां भाग लई शके अेम भाग लेनारनी संख्यानी चोक्कस मर्यादा बांधी छे.
आगळ हेमचंद्र૧<ref>૧ पृ. ४६  २ पृ. ५०</ref> अने शारदातनय२ अेक व्याख्यामां “आचतुः षष्टीयुगलाद्” अेम ६४ सुधीनां युगलोथी रासक रमाय ओम कहे छे. ज्यारे अहीं १६, १२ के ८ अेम कही वधुमां वधु १६ अने ओछामां ओछी ८ नर्तकी रासमां भाग लई शके अेम भाग लेनारनी संख्यानी चोक्कस मर्यादा बांधी छे.
____________________
 
४ भरतकोष-पृ. २० ( प्रस्तावना )
'''हर्षचरित अने शंकर'''
५. भरतकोष - पृ. ५५२
૧ पृ. ४६  २ पृ. ५०
हर्षचरित अने शंकर
        
        
"हर्षचरित"मां "रासरसरत्नासारब्धनर्तनारंभारभटी नटाः" अेवुं वर्णन आवे छे ते समजावतां तेना टीकाकार शंकर रासनी व्याख्या आपे छे.
"हर्षचरित"मां "रासरसरत्नासारब्धनर्तनारंभारभटी नटाः" अेवुं वर्णन आवे छे ते समजावतां तेना टीकाकार शंकर रासनी व्याख्या आपे छे.


अष्टौ षोडशद्वात्रिशद्यत्र नृत्यन्ति नायिका: ।  
अष्टौ षोडशद्वात्रिशद्यत्र नृत्यन्ति नायिका: ।  
पिण्डीबंधानुसारेण यन्नृतं रासकं स्मृतम् ॥ ३
पिण्डीबंधानुसारेण यन्नृतं रासकं स्मृतम् ॥ ३<ref>३ हर्षचरित - Fuhrerनी आवृत्तिनुं ७८मुं पृष्ठ</ref>
८, १६ के ३२ नायिकाओ पिंडीबंध प्रमाणे नृत्य करे ते रासक कहेवाय. आम शंकरना मते वधुमां वधु ३२ नर्तकीओ रासमां भाग लई शके. 'अस्येव तु हल्लीशकाया विशेषा:' अेम रासनुं आ लक्षण आप्या बाद शंकर कहे छे.  
८, १६ के ३२ नायिकाओ पिंडीबंध प्रमाणे नृत्य करे ते रासक कहेवाय. आम शंकरना मते वधुमां वधु ३२ नर्तकीओ रासमां भाग लई शके. 'अस्येव तु हल्लीशकाया विशेषा:' अेम रासनुं आ लक्षण आप्या बाद शंकर कहे छे.  
__________________
३ हर्षचरित - Fuhrerनी आवृत्तिनुं ७८मुं पृष्ठ


दांडियारासने मळतो क्रीडाप्रकार
दांडियारासने मळतो क्रीडाप्रकार
Line 366: Line 316:
जोईणीवलअणच्चणकेलिं तालणेउरखा विरखन्ति  
जोईणीवलअणच्चणकेलिं तालणेउरखा विरखन्ति  
कोदुहल्लजंगमवेसा वेणुवादणपरा अवराओ  
कोदुहल्लजंगमवेसा वेणुवादणपरा अवराओ  
कालवेसवसभामिअलोआ ओसरन्ति पणमन्ति हसन्ति १
कालवेसवसभामिअलोआ ओसरन्ति पणमन्ति हसन्ति १<ref>१ कर्पूरमंजरी - ४थो अंक - १थी १७ श्लोकसंख्या</ref>


(अनुवाद)  
(अनुवाद)  
Line 372: Line 322:
जुओ नृत्यने अंते आछां पातळां वस्त्राभरणमां अने मौक्तिकनां उत्तम आभूषणो धारण करीने आ कुमारिकाओ अेकबीजा उपर पाणीनी छोळो उडाडे छे, अने आ पाणीनी सेरोने-फुवारामां ऊडती जळधाराओने रत्नजडित पात्रोमा तेओ झीली ले छे. हाथपगना वैविध्यभर्या हावभावथी अने आकर्षक ढबथी आ बत्रीसे नृत्यांगनाओ अेक वर्तुलाकारमां घूमी रही छे. अने तेमां तेओ संगीतने ताले ताले अनेक वार फुदडीओ फरे छे. पटांगणमां ध्वजनृत्य देखाय छे. खभा अने मस्तक तेम ज हाथ अने मस्तकने पण समांतरे राखी इतर नृत्यांगनाओ बब्बे बब्बेनी हारमां पण अकबीजानी सामसामे हारबंध ऊभी रहीने स्पष्ट सुरेख नृत्यदर्शन करावे छे. अने अे रीते चल्लीनृत्यनो ताल पखवाजना ताल अने लयने आधारे रजू करे छे. अने बीजी नृत्यांगनाओ रत्नजडित जळपात्रोने बाजु मूकी दईने जळधारामांथी हाथ वडे ज पाणी उडाडे छे. जे मात्र जळधारा ज होवा छतांये पुष्पधन्वाना बाण जेवी मित्रोने सोंसरवी नीकळी जाय छे. वळी अहीं आज जेमने अंगे अंगे काळा घोर काजळनो लेप कर्यो छे तेमज जेमणे त्रिविध धनुष्य धारण कर्या छे अने जेओ मयूरपिच्छोथी सुशोभित छे अेवी आ चंचळ ललनाओ जंगली पर्वतारोहकनी जेम हरे फरे छे (अेटले) तेओ आ रीते प्रेक्षकोने मनोरंजन पूरुं पाडे छे. अने केटलीक तो वळी हाथमां मनुष्यना मांसनु अर्ध्य राखी अने अनेकविध भयंकर चिचियारीओ ने
जुओ नृत्यने अंते आछां पातळां वस्त्राभरणमां अने मौक्तिकनां उत्तम आभूषणो धारण करीने आ कुमारिकाओ अेकबीजा उपर पाणीनी छोळो उडाडे छे, अने आ पाणीनी सेरोने-फुवारामां ऊडती जळधाराओने रत्नजडित पात्रोमा तेओ झीली ले छे. हाथपगना वैविध्यभर्या हावभावथी अने आकर्षक ढबथी आ बत्रीसे नृत्यांगनाओ अेक वर्तुलाकारमां घूमी रही छे. अने तेमां तेओ संगीतने ताले ताले अनेक वार फुदडीओ फरे छे. पटांगणमां ध्वजनृत्य देखाय छे. खभा अने मस्तक तेम ज हाथ अने मस्तकने पण समांतरे राखी इतर नृत्यांगनाओ बब्बे बब्बेनी हारमां पण अकबीजानी सामसामे हारबंध ऊभी रहीने स्पष्ट सुरेख नृत्यदर्शन करावे छे. अने अे रीते चल्लीनृत्यनो ताल पखवाजना ताल अने लयने आधारे रजू करे छे. अने बीजी नृत्यांगनाओ रत्नजडित जळपात्रोने बाजु मूकी दईने जळधारामांथी हाथ वडे ज पाणी उडाडे छे. जे मात्र जळधारा ज होवा छतांये पुष्पधन्वाना बाण जेवी मित्रोने सोंसरवी नीकळी जाय छे. वळी अहीं आज जेमने अंगे अंगे काळा घोर काजळनो लेप कर्यो छे तेमज जेमणे त्रिविध धनुष्य धारण कर्या छे अने जेओ मयूरपिच्छोथी सुशोभित छे अेवी आ चंचळ ललनाओ जंगली पर्वतारोहकनी जेम हरे फरे छे (अेटले) तेओ आ रीते प्रेक्षकोने मनोरंजन पूरुं पाडे छे. अने केटलीक तो वळी हाथमां मनुष्यना मांसनु अर्ध्य राखी अने अनेकविध भयंकर चिचियारीओ ने
निःश्वासो नाखती तेम ज ध्रूजती निशाचरी डाकिणीओनो स्वांग सजीने श्मशानभूमिनां दृश्यो रजू करे छे. ज्यारे मृदंगना थापाना धुजारी वछुटावता अवाज करतां अने बीजी ज पळे तंबुरना शांत अने रोचक अवाज साथे पण पोतानी हस्तलतिकाने वाराफरती फेरवती अेक मृगनयनीअे तो चल्लीनृत्यनो आरंभ कर्यो. बीजी ललनाओ सौष्ठवभर्युं तालबद्ध नृत्य करी रही छे. तेमना पगनां घूंघरूनो निनाद कंठ्यसंगीतना लय अने ताल साथै मेळ लेतां झांझरना रणकार साथै सुमेळ साधे छे. अकचित्ते बंसीवादन करती इतर नृत्यांगनाओ जेमनां वस्त्रो आतुरता (चपळता) अंगे फफडे छे अने जेओ पोताना श्याम वस्त्रपरिधानथी लोकोने हसावे छे तेओ व्यासपीठ परथी पाछळ हठती सस्मित नमन करे छे.
निःश्वासो नाखती तेम ज ध्रूजती निशाचरी डाकिणीओनो स्वांग सजीने श्मशानभूमिनां दृश्यो रजू करे छे. ज्यारे मृदंगना थापाना धुजारी वछुटावता अवाज करतां अने बीजी ज पळे तंबुरना शांत अने रोचक अवाज साथे पण पोतानी हस्तलतिकाने वाराफरती फेरवती अेक मृगनयनीअे तो चल्लीनृत्यनो आरंभ कर्यो. बीजी ललनाओ सौष्ठवभर्युं तालबद्ध नृत्य करी रही छे. तेमना पगनां घूंघरूनो निनाद कंठ्यसंगीतना लय अने ताल साथै मेळ लेतां झांझरना रणकार साथै सुमेळ साधे छे. अकचित्ते बंसीवादन करती इतर नृत्यांगनाओ जेमनां वस्त्रो आतुरता (चपळता) अंगे फफडे छे अने जेओ पोताना श्याम वस्त्रपरिधानथी लोकोने हसावे छे तेओ व्यासपीठ परथी पाछळ हठती सस्मित नमन करे छे.
__________________
१ कर्पूरमंजरी - ४थो अंक - १थी १७ श्लोकसंख्या


रासना त्रण भेद
 
'''रासना त्रण भेद'''
शारदातनय ज रासनी जुदी जुदी व्याख्याओ आपवा सामे तेना त्रण भेद देखाडे छे :-
शारदातनय ज रासनी जुदी जुदी व्याख्याओ आपवा सामे तेना त्रण भेद देखाडे छे :-
लता रासकनाम स्यात्तत्रेयां रासकं भवेत् ।  
लता रासकनाम स्यात्तत्रेयां रासकं भवेत् ।  
दण्डरासकमेकन्तु तथा मण्डलरासकम् ॥ १
दण्डरासकमेकन्तु तथा मण्डलरासकम् ॥ १<ref>१ भावप्रकाशनम् - १०मो अधिकार पृ. २६७-७ थी ८ पंक्ति</ref>
आम तेना मते लतारास, दण्डरास अने मंडळरास अेवा त्रण प्रकारना रास छे. दण्डरासक के दांडियारासनो आ पहेलवहेलो उल्लेख छे.
आम तेना मते लतारास, दण्डरास अने मंडळरास अेवा त्रण प्रकारना रास छे. दण्डरासक के दांडियारासनो आ पहेलवहेलो उल्लेख छे.
_______________________
१ भावप्रकाशनम् - १०मो अधिकार पृ. २६७-७ थी ८ पंक्ति


कुंभकर्ण
'''कुंभकर्ण'''
त्यार पछी १५मा संकाना "संगीतमीमांसा"कार कुंभकर्ण पासेथी दंडरासकनी घणी विगतो आपणने मळे छे. दंडरासकमां उपयोगमां लेवाता दांडियानुं माप कुंभकर्ण आपे छे अने ८, १६, ३२ के ६४ सुंदरीओ आ नर्तन राजा समक्ष करे अेम कहे छे.
त्यार पछी १५मा संकाना "संगीतमीमांसा"कार कुंभकर्ण पासेथी दंडरासकनी घणी विगतो आपणने मळे छे. दंडरासकमां उपयोगमां लेवाता दांडियानुं माप कुंभकर्ण आपे छे अने ८, १६, ३२ के ६४ सुंदरीओ आ नर्तन राजा समक्ष करे अेम कहे छे.
यत्र राज्ञः पुरो नार्यः स त्रिस्त्रोऽष्ठाथ षोडश ।  
यत्र राज्ञः पुरो नार्यः स त्रिस्त्रोऽष्ठाथ षोडश ।  
Line 394: Line 341:
सशब्दं घातमेर्दैश्च युग्मी भूय वियुज्य च ॥  
सशब्दं घातमेर्दैश्च युग्मी भूय वियुज्य च ॥  
अग्रतः पृष्ठतो वापि पार्श्वसंगतयापि च ।
अग्रतः पृष्ठतो वापि पार्श्वसंगतयापि च ।
घातभैदान्वितन्यन्त्यश्चारीभमरिकादिभिः ॥  
घातभैदान्वितन्यन्त्यश्चारीभमरिकादिभिः ॥  
चित्रैस्तस्योपसत्येव मुहुर्मण्डलसंस्थया ।  
चित्रैस्तस्योपसत्येव मुहुर्मण्डलसंस्थया ।  
लयतालानुगं यत्र प्रनृत्यन्ति वरांगनाः ॥  
लयतालानुगं यत्र प्रनृत्यन्ति वरांगनाः ॥  
तदुक्तं नृततत्वज्ञैर्दण्डरासकनर्तनम् ॥१  
तदुक्तं नृततत्वज्ञैर्दण्डरासकनर्तनम् ॥१ <ref>१ भरतकोष - पृ. ८५०</ref>
_______________
१ भरतकोष - पृ. ८५०


जेमां राजा समक्ष ८, १६, ३२ के ६४ सुंदरी स्त्रीओ करकमळमां सारी रीते गोळ, सुंवाळा सुवर्ण वगेरेना वनावेला; लंबाईमां अेक हाथ, स्थूळतामां अंगूठाना प्रमाणना दांडिया राखीने तथा देशानुसार दंडचामर, मलमलयुक्त दंड के छूरिकादंड ग्रहण करीने ४ के ५ खडगप्रहार जेवा घाथी सशब्द बीजा प्रकारना घाथी पण जोडबंध थईने अने छूटा पडीने आगळ, पाछळ के पडखे संगीत साथे चारी, भ्रमरी वगेरे साथे घातभेद रचती, पगना विविध प्रकारना चलनथी "मंडल" रचीने वारंवार लय तथा तालयुक्त नर्तन करे छे, तेने नृत्यविशारदो दंडरासक नर्तन कहे छे.
जेमां राजा समक्ष ८, १६, ३२ के ६४ सुंदरी स्त्रीओ करकमळमां सारी रीते गोळ, सुंवाळा सुवर्ण वगेरेना वनावेला; लंबाईमां अेक हाथ, स्थूळतामां अंगूठाना प्रमाणना दांडिया राखीने तथा देशानुसार दंडचामर, मलमलयुक्त दंड के छूरिकादंड ग्रहण करीने ४ के ५ खडगप्रहार जेवा घाथी सशब्द बीजा प्रकारना घाथी पण जोडबंध थईने अने छूटा पडीने आगळ, पाछळ के पडखे संगीत साथे चारी, भ्रमरी वगेरे साथे घातभेद रचती, पगना विविध प्रकारना चलनथी "मंडल" रचीने वारंवार लय तथा तालयुक्त नर्तन करे छे, तेने नृत्यविशारदो दंडरासक नर्तन कहे छे.
Line 414: Line 359:
कुंभनुं आ वर्णन आपणा अत्यारना दांडिया रासने घणुं मळतुं आवे छे. अत्यारनी जेम तेमां वखतोवखत अभिनयमां फेरफार करवामां आवता अेम पण जाणी शकाय छे.
कुंभनुं आ वर्णन आपणा अत्यारना दांडिया रासने घणुं मळतुं आवे छे. अत्यारनी जेम तेमां वखतोवखत अभिनयमां फेरफार करवामां आवता अेम पण जाणी शकाय छे.


पुण्डरिक विठ्ठल
'''पुण्डरिक विठ्ठल'''
कुंभ पछी १६मा सैकाना अंत सुधीमां थई गयेला पुण्डरिक विठ्ठल पण दंडरासकनुं वर्णन आपे छे. "नृत्यनिर्णय" नामना तेमना अप्रकट ग्रंथमां तेमणे दंडरास अने रासनृत्यनी आ प्रमाणेनी व्याख्या आपी छे :
कुंभ पछी १६मा सैकाना अंत सुधीमां थई गयेला पुण्डरिक विठ्ठल पण दंडरासकनुं वर्णन आपे छे. "नृत्यनिर्णय" नामना तेमना अप्रकट ग्रंथमां तेमणे दंडरास अने रासनृत्यनी आ प्रमाणेनी व्याख्या आपी छे :
असकृन्मंडलीभूय गीतताललयानुगम् ।  
असकृन्मंडलीभूय गीतताललयानुगम् ।  
तदोदितं बुधैर्दण्ड - रासं जनमनोहरम् ॥  
तदोदितं बुधैर्दण्ड - रासं जनमनोहरम् ॥  
दण्डेर्विना कृतं नृत्यं रासनृत्यं तदेवहि ॥ ૧  
दण्डेर्विना कृतं नृत्यं रासनृत्यं तदेवहि ॥ ૧<ref>૧ (क) लास्यनृत्यनी बे सोरठी परंपरा श्री मंजुलाल र. मजमुदार, नवचेतन-दिवाळी अंक - १९५३ नवेम्बर पृष्ठ १६५-१६६<br>
(ख) रास अने गरबा- रामनारायण पाठक अने गोवर्धन पांचाल पृष्ठ ५४</ref>
लोकोने आनन्द आपे तेवुं वारंवार मंडळाकारमां गोठवाई गीत-ताल-लयथी युक्त नृत्य तेने विद्वानो दण्डरास कहे छे. दण्ड विनानुं आवुं नृत्य ते रास-नृत्य. कुंभकर्ण तेना वर्णनमां दंडरास साथ पार्श्वसंगीत रहेतुं अेम कहे छे तेथी आगळ वधी आ रास साथे गीत गवातुं अेम अहीं स्पष्ट जाणवा मळे छे.
लोकोने आनन्द आपे तेवुं वारंवार मंडळाकारमां गोठवाई गीत-ताल-लयथी युक्त नृत्य तेने विद्वानो दण्डरास कहे छे. दण्ड विनानुं आवुं नृत्य ते रास-नृत्य. कुंभकर्ण तेना वर्णनमां दंडरास साथ पार्श्वसंगीत रहेतुं अेम कहे छे तेथी आगळ वधी आ रास साथे गीत गवातुं अेम अहीं स्पष्ट जाणवा मळे छे.


Line 424: Line 370:
"राससर्वस्व"मां मळतुं रासनुं वर्णन आ बधाथी जरा जुदा प्रकारनुं छे:-
"राससर्वस्व"मां मळतुं रासनुं वर्णन आ बधाथी जरा जुदा प्रकारनुं छे:-
स्त्रीभिश्च पुरुषैश्चैव धृतहस्तैः क्रमस्थितैः ।  
स्त्रीभिश्च पुरुषैश्चैव धृतहस्तैः क्रमस्थितैः ।  
मंडले क्रियते नृत्यं स रासः प्रोच्यते बुधैः ||१
मंडले क्रियते नृत्यं स रासः प्रोच्यते बुधैः ||१<ref>१ हिंदी नाटक : उद्भव और विकास - डॉ. दशरथ ओझा पु. ७३</ref>
क्रममां अने हाथ पकडीने ऊभेलां स्त्री अने पुरूषो वडे मंडलाकारमां नृत्य करवामां आवे तेने विद्वानो रास कहे छे.  
क्रममां अने हाथ पकडीने ऊभेलां स्त्री अने पुरूषो वडे मंडलाकारमां नृत्य करवामां आवे तेने विद्वानो रास कहे छे.  


बिल्वमंगल
बिल्वमंगल
आ वर्णन बारमा-तेरमा सैकामां थई गयेला मनाता परमहंस परिव्राजकाचार्य बिल्वमंगल स्वामीअे "रासाष्टक"मां करेला वर्णनने मळतुं आवे छे अेम श्री मंजुलाल मजमुदार कहे छे. २
आ वर्णन बारमा-तेरमा सैकामां थई गयेला मनाता परमहंस परिव्राजकाचार्य बिल्वमंगल स्वामीअे "रासाष्टक"मां करेला वर्णनने मळतुं आवे छे अेम श्री मंजुलाल मजमुदार कहे छे. २<ref>२ लास्यनृत्यनी बे सोरठी परंपरा-श्री मंजुलाल र. मजुमदार, नवचेतन दीपोत्सवी अंक - नवेंबर १६५३ पृ. १६६</ref>


_____________________________________
૧ (क) लास्यनृत्यनी बे सोरठी परंपरा श्री मंजुलाल र. मजमुदार, नवचेतन-दिवाळी अंक - १९५३ नवेम्बर पृष्ठ १६५-१६६
(ख) रास अने गरबा- रामनारायण पाठक अने गोवर्धन पांचाल पृष्ठ ५४
१ हिंदी नाटक : उद्भव और विकास - डॉ. दशरथ ओझा पु. ७३
२ लास्यनृत्यनी बे सोरठी परंपरा-श्री मंजुलाल र. मजुमदार, नवचेतन दीपोत्सवी अंक - नवेंबर १६५३ पृ. १६६
अंगनामंगनामन्तरे माधवो ।  
अंगनामंगनामन्तरे माधवो ।  
माधवं माधवं चान्तरेणांगना ।  
माधवं माधवं चान्तरेणांगना ।  
Line 440: Line 381:
संजगी वेणुना देवकीनन्दनः ।  
संजगी वेणुना देवकीनन्दनः ।  
स्त्रीओनी वच्चे माधव अने माधवनी बच्चे स्त्री अेम रचायेल मंडळाकारमां वच्चे रहेला देवकीनन्दन कृष्णे वेणु वगाडी. आ बंने लतारासनां वर्णनो छे.
स्त्रीओनी वच्चे माधव अने माधवनी बच्चे स्त्री अेम रचायेल मंडळाकारमां वच्चे रहेला देवकीनन्दन कृष्णे वेणु वगाडी. आ बंने लतारासनां वर्णनो छे.
शारदातनय रासकना लतारास, दंडरास अने मंडलरास अेवा त्रण भेद बतावे छे तेम “भरतकोष"मां वेशभूपालना मते रासकना रासक, नाट्यरासक अने चर्चरी अेवा त्रण भेद बताववामां आव्या छे.१
शारदातनय रासकना लतारास, दंडरास अने मंडलरास अेवा त्रण भेद बतावे छे तेम “भरतकोष"मां वेशभूपालना मते रासकना रासक, नाट्यरासक अने चर्चरी अेवा त्रण भेद बताववामां आव्या छे.१<ref>१ भरतकोष - पृष्ठ ५५२ :</ref>
आ बधा उल्लेखो परथी जणाय छे के प्राचीन गुजरातीना साहित्यमां राससाहित्य रचातुं थयुं ते पहेलां अनेक वर्षो अगाउथी "रास” नामनो अेक प्रकार प्राकृत, संस्कृत, पौराणिक वगेरे साहित्यमां जाणीतो हतो. परंतु ते साहित्यप्रकार तरीके नहीं - अक नृत्यप्रकार तरीके. अमुक संख्यामां स्त्रीओ अेकली अथवा स्त्रीओ अने पुरुषो साथे मळीने मंडळाकारे गोठवाई अने शरीरनां अंगोना हलनचलन वडे ताळी लई अथवा दांडियाना घात साथे ताल अने लय प्रमाणे जे नृत्य करे ते रास, अने आ रासने घणुंखरुं गायन अने वादननो साथ रहेतो अेम आ बधां वर्णनो परथी जणाय छे.  
आ बधा उल्लेखो परथी जणाय छे के प्राचीन गुजरातीना साहित्यमां राससाहित्य रचातुं थयुं ते पहेलां अनेक वर्षो अगाउथी "रास” नामनो अेक प्रकार प्राकृत, संस्कृत, पौराणिक वगेरे साहित्यमां जाणीतो हतो. परंतु ते साहित्यप्रकार तरीके नहीं - अक नृत्यप्रकार तरीके. अमुक संख्यामां स्त्रीओ अेकली अथवा स्त्रीओ अने पुरुषो साथे मळीने मंडळाकारे गोठवाई अने शरीरनां अंगोना हलनचलन वडे ताळी लई अथवा दांडियाना घात साथे ताल अने लय प्रमाणे जे नृत्य करे ते रास, अने आ रासने घणुंखरुं गायन अने वादननो साथ रहेतो अेम आ बधां वर्णनो परथी जणाय छे.  
____________________
१ भरतकोष - पृष्ठ ५५२ :
रासकस्य प्रभेदास्तु रासकं नाट्यरासकं । चर्चरीति त्रयः प्रोक्ताः...
रासकस्य प्रभेदास्तु रासकं नाट्यरासकं । चर्चरीति त्रयः प्रोक्ताः...


रास : एक उपरूपक
'''रास : एक उपरूपक'''
पण संस्कृत ग्रन्थोमांना रासना आ प्रकारना उल्लेखो साथे बीजा उल्लेखो पण मळी आवे छे जे रासने उपरूपक तरीके ओळखावे छे.
पण संस्कृत ग्रन्थोमांना रासना आ प्रकारना उल्लेखो साथे बीजा उल्लेखो पण मळी आवे छे जे रासने उपरूपक तरीके ओळखावे छे.


अग्निपुराण
'''अग्निपुराण'''
अग्निपुराणना ३३८मा अध्यायमां आ प्रकारनो उल्लेख आवे छे. जो के, विद्वानोना मते आ पुराण पाछळनी रचना छे. तेमां "ध्वन्यालोक"मांनां अवतरणो छे. अने भोजना शृङ्गाररसना निरूपण साथे आ पुराणनुं मळतापणुं छे अेम विद्वानो कहे छे. आम "अग्निपुराण"ना आ उल्लेखने केटलुं वजन आपवुं ते जोवानुं रहे. "अग्निपुराण"नो आ उल्लेख नीचे प्रमाणे छे :-
अग्निपुराणना ३३८मा अध्यायमां आ प्रकारनो उल्लेख आवे छे. जो के, विद्वानोना मते आ पुराण पाछळनी रचना छे. तेमां "ध्वन्यालोक"मांनां अवतरणो छे. अने भोजना शृङ्गाररसना निरूपण साथे आ पुराणनुं मळतापणुं छे अेम विद्वानो कहे छे. आम "अग्निपुराण"ना आ उल्लेखने केटलुं वजन आपवुं ते जोवानुं रहे. "अग्निपुराण"नो आ उल्लेख नीचे प्रमाणे छे :-
अथ नाटकनिरूपणम् ।। अग्निरुवाच ॥ नाटकसप्रकरणं डिम इहामृगोऽपि वा । ज्ञेयः समवकारश्च भवेत्प्रहसनं तथा । व्यायोग भाणवीक्षयंकत्रोटकान्यथनाटिका ॥ सदुकं शिल्पकःकर्णा अेको दुर्मल्लिका तथा ।।
अथ नाटकनिरूपणम् ।। अग्निरुवाच ॥ नाटकसप्रकरणं डिम इहामृगोऽपि वा । ज्ञेयः समवकारश्च भवेत्प्रहसनं तथा । व्यायोग भाणवीक्षयंकत्रोटकान्यथनाटिका ॥ सदुकं शिल्पकःकर्णा अेको दुर्मल्लिका तथा ।।
प्रस्थानं भाणिका भाणीगोष्टी हल्लीशकानि च ॥  
प्रस्थानं भाणिका भाणीगोष्टी हल्लीशकानि च ॥  
काव्यं श्रीदितं नाट्यरासकं रासकं तथा ।  
काव्यं श्रीदितं नाट्यरासकं रासकं तथा ।  
उल्लाप्यकं प्रेअणंच सप्ताविंशतिरेव तत् ॥१
उल्लाप्यकं प्रेअणंच सप्ताविंशतिरेव तत् ॥१<ref>१ अग्निपुराण - ३३८मो अध्याय- १, २, ३, ४ श्लोक - पृष्ठ ४२२</ref>
धनिक
'''धनिक'''
"आम अग्निपुराण नाटकनिरूपणमां आ २७ प्रकार गणावे छे. धनंजयना “दशरूपकम्” परनी धनिकनी टीका "दशरूपकावलोक"मां सहु पहेलो उपरूपकनो उल्लेख मळे छे. तेमां तेणे सात उपरूपक आप्यां छे. धनिके तेनी पहेलांना कोई ग्रंथकारनुं अवतरण आप्युं छे :
"आम अग्निपुराण नाटकनिरूपणमां आ २७ प्रकार गणावे छे. धनंजयना “दशरूपकम्” परनी धनिकनी टीका "दशरूपकावलोक"मां सहु पहेलो उपरूपकनो उल्लेख मळे छे. तेमां तेणे सात उपरूपक आप्यां छे. धनिके तेनी पहेलांना कोई ग्रंथकारनुं अवतरण आप्युं छे :
डोम्बी श्रीगदितं भाणो  
डोम्बी श्रीगदितं भाणो  
भाणी प्रस्थानशसका: ।
भाणी प्रस्थानशसका: ।
काव्यं च सप्तनृत्यस्य
काव्यं च सप्तनृत्यस्य
भेदाः स्युस्तेऽपि भाणवत् ॥ २
भेदाः स्युस्तेऽपि भाणवत् ॥ २<ref>२ दशरूपकम् (नाट्यशास्त्रम् ) धनंजय- प्रथम प्रकाशना ८मा श्लोकनी टीका.  
____________________
रा. सा. ५</ref>
१ अग्निपुराण - ३३८मो अध्याय- १, २, ३, ४ श्लोक - पृष्ठ ४२२
२ दशरूपकम् (नाट्यशास्त्रम् ) धनंजय- प्रथम प्रकाशना ८मा श्लोकनी टीका.  
रा. सा. ५


 
'''हेमचन्द्र अने वाग्भट'''
हेमचन्द्र अने वाग्भट
उपरूपकोनो उद्देश अनुकूळ अभिनय द्वारा अमुक भाव जगाववानो होय छे तेथी तेमने नृत्य तरीके ओळखाववामां आवे छे. आम धनिक पहेलांनो उपरूपकोनो आ उल्लेख छे अने आपणने मळतो ते पहेलवहेलो उल्लेख छे. "अभिनवभारती"मां अभिनवगुप्त ९ प्रकार गणावे छे. पण अेकेने उपरूपक तरीके ओळखावतो नथी. ते पछी "शृङ्गारप्रकाश"मां भोजदेव १४ उपरूपक गणावे छे. हेमचन्द्र अने वाग्भट बन्ने रासकने अनुक्रमे रागकाव्य अने गेयरूपक तरीके ओळखावे छे. काव्यना श्राव्य अने प्रेक्ष्य अवा बे प्रकार जणावी, तेमांथी पाछा प्रेक्ष्य काव्यना पाठ्य अने गेय अेवा बे भेद दर्शावीने हेमचन्द्र गेय प्रेक्ष्य काव्यना ११ प्रकार गणावे छे.
उपरूपकोनो उद्देश अनुकूळ अभिनय द्वारा अमुक भाव जगाववानो होय छे तेथी तेमने नृत्य तरीके ओळखाववामां आवे छे. आम धनिक पहेलांनो उपरूपकोनो आ उल्लेख छे अने आपणने मळतो ते पहेलवहेलो उल्लेख छे. "अभिनवभारती"मां अभिनवगुप्त ९ प्रकार गणावे छे. पण अेकेने उपरूपक तरीके ओळखावतो नथी. ते पछी "शृङ्गारप्रकाश"मां भोजदेव १४ उपरूपक गणावे छे. हेमचन्द्र अने वाग्भट बन्ने रासकने अनुक्रमे रागकाव्य अने गेयरूपक तरीके ओळखावे छे. काव्यना श्राव्य अने प्रेक्ष्य अवा बे प्रकार जणावी, तेमांथी पाछा प्रेक्ष्य काव्यना पाठ्य अने गेय अेवा बे भेद दर्शावीने हेमचन्द्र गेय प्रेक्ष्य काव्यना ११ प्रकार गणावे छे.
गेय डोमिक्का भाग प्रस्थान शिंगक भाणिका प्रेरण रामाक्रीडहल्लीसक रासक गोष्ठी श्रीगदित रागकाव्यादि ||  
गेय डोमिक्का भाग प्रस्थान शिंगक भाणिका प्रेरण रामाक्रीडहल्लीसक रासक गोष्ठी श्रीगदित रागकाव्यादि ||  
पदार्थाभिनय स्वभावानि डोम्बिकादीनि गेयानि रूपकाणि चिरंतनैरुक्तानि ॥१
पदार्थाभिनय स्वभावानि डोम्बिकादीनि गेयानि रूपकाणि चिरंतनैरुक्तानि ॥१<ref>१ काव्यानुशासन - हेमचन्द्र - आठमो अध्याय १६६मुं सूत्र श्लोक ४ पृष्ठ ४४५</ref>
अेम कही हेमचन्द्र “काव्यानुशासन"मां आ ११ प्रकारो गेय छे, रागकाव्यो छे अने अभिनेय छे ओम कहे छे. ज्यारे वाग्भट आ ज प्रकारोने गेयरूपक कहे छे.
अेम कही हेमचन्द्र “काव्यानुशासन"मां आ ११ प्रकारो गेय छे, रागकाव्यो छे अने अभिनेय छे ओम कहे छे. ज्यारे वाग्भट आ ज प्रकारोने गेयरूपक कहे छे.
वाग्भट “काव्यानुशासन"मां आ प्रकारो आ प्रमाणे गणावे छे.  
वाग्भट “काव्यानुशासन"मां आ प्रकारो आ प्रमाणे गणावे छे.  
डोम्बिका भाण प्रस्थान माणिका प्रेरण शिंगकु रामाक्रीड हल्लीसक श्रीगदित | रासक गोष्टी प्रभृतीनि गेयानि - पदार्थाभिनय स्वभावानि डोम्बिकादिनि गेयानि रूपकाणि चिरंतनैरुक्तानि ॥ २
डोम्बिका भाण प्रस्थान माणिका प्रेरण शिंगकु रामाक्रीड हल्लीसक श्रीगदित | रासक गोष्टी प्रभृतीनि गेयानि - पदार्थाभिनय स्वभावानि डोम्बिकादिनि गेयानि रूपकाणि चिरंतनैरुक्तानि ॥ २<ref>२ काव्यानुशासन- वाग्भट - पहेलो अध्याय- पृष्ठ १८</ref>
_______________________
१ काव्यानुशासन - हेमचन्द्र - आठमो अध्याय १६६मुं सूत्र श्लोक ४ पृष्ठ ४४५
२ काव्यानुशासन- वाग्भट - पहेलो अध्याय- पृष्ठ १८


आम आ प्रकारोनी गेयता अने अभिनेयता विषे हेमचन्द्र अने वाग्भट सहमत छे. १४मा सैकानो विश्वनाथ पण
आम आ प्रकारोनी गेयता अने अभिनेयता विषे हेमचन्द्र अने वाग्भट सहमत छे. १४मा सैकानो विश्वनाथ पण
नाटिका त्रोटकं गोष्टीसटट्कं नाट्यरासकं । प्रस्थानोल्लाप्यकाव्यानि प्रेक्षणं रासकं तथा ।। संलापकं श्रीगदितं शिल्पकंच विलासिका । दुर्म्मल्लिका प्रकरणी हल्लीशो भाणिकेति च ॥ अष्टादश प्राहुरणकाणिमनीषिणः । विना विशेषं सर्व्वेषां लक्ष्य नाटकवन्मतं ।। २ अेम अढार रूपक गणावे छे.
नाटिका त्रोटकं गोष्टीसटट्कं नाट्यरासकं । प्रस्थानोल्लाप्यकाव्यानि प्रेक्षणं रासकं तथा ।। संलापकं श्रीगदितं शिल्पकंच विलासिका । दुर्म्मल्लिका प्रकरणी हल्लीशो भाणिकेति च ॥ अष्टादश प्राहुरणकाणिमनीषिणः । विना विशेषं सर्व्वेषां लक्ष्य नाटकवन्मतं ।। २<ref>२ साहित्यदर्पण - छठ्ठो परिच्छेद ४, ५ अने ६ श्लोक - पृष्ठ २५८</ref> अेम अढार रूपक गणावे छे.
शारदातनय
शारदातनय
"नाट्यदर्पण"मां १४ उपरूपक गणाववामां आव्यां छे. आम रूपकोनी संख्या बाबत भिन्नता छे. रूपकोने लगती वधु विगत तो शारदातनय शुभंकर अने विश्वनाथ आपे छे. शारदातनय रासक नामना रूपकनी व्याख्या आ प्रमाणे आपे छे :-
"नाट्यदर्पण"मां १४ उपरूपक गणाववामां आव्यां छे. आम रूपकोनी संख्या बाबत भिन्नता छे. रूपकोने लगती वधु विगत तो शारदातनय शुभंकर अने विश्वनाथ आपे छे. शारदातनय रासक नामना रूपकनी व्याख्या आ प्रमाणे आपे छे :-
Line 489: Line 422:
उदात्तभावविन्यासभूषितं सोत्तरोत्तरम् ॥  
उदात्तभावविन्यासभूषितं सोत्तरोत्तरम् ॥  
एवं लक्षणमुदिष्टं रासकस्यात्र कैश्चन ।  
एवं लक्षणमुदिष्टं रासकस्यात्र कैश्चन ।  
इति नानामतेनोक्ता नृत्यभेदाः प्रदर्शिताः ॥ १
इति नानामतेनोक्ता नृत्यभेदाः प्रदर्शिताः ॥ १<ref>
१ भावप्रकाशनम् - ९मो अधिकार- पृष्ठ २६९-१३ थी २० पंक्ति</ref>
रासकनी आ व्याख्या तेने संपूर्ण उपरूपकनुं स्वरूप आपे छे. आ उपरूपक अेक अंकनुं होवुं जोईअे, तेमां सूत्रधार न होय, सरस नान्दी, पांच पात्रो, त्रण संधि, जुदी जुदी भाषाओ, कैशिकी तथा भारती वृत्ति, वीथी, अंग, मुख्य नायक, विख्यात नायिका, उदात्त भाव तेमां जोईअे.
रासकनी आ व्याख्या तेने संपूर्ण उपरूपकनुं स्वरूप आपे छे. आ उपरूपक अेक अंकनुं होवुं जोईअे, तेमां सूत्रधार न होय, सरस नान्दी, पांच पात्रो, त्रण संधि, जुदी जुदी भाषाओ, कैशिकी तथा भारती वृत्ति, वीथी, अंग, मुख्य नायक, विख्यात नायिका, उदात्त भाव तेमां जोईअे.
______________________
२ साहित्यदर्पण - छठ्ठो परिच्छेद ४, ५ अने ६ श्लोक - पृष्ठ २५८
१ भावप्रकाशनम् - ९मो अधिकार- पृष्ठ २६९-१३ थी २० पंक्ति


विश्वनाथ
 
 
'''विश्वनाथ'''
विश्वनाथ पण "साहित्यदर्पण"मां आ ज प्रमाणेनी व्याख्या आपे छे.
विश्वनाथ पण "साहित्यदर्पण"मां आ ज प्रमाणेनी व्याख्या आपे छे.
रासकं पंचपात्रं स्यान्मुखनिर्व्वहणान्वितं ।  
रासकं पंचपात्रं स्यान्मुखनिर्व्वहणान्वितं ।  
Line 502: Line 435:
श्लिष्टनान्दीयुतं ख्यातनायिकं मुख्यनायकं । (मूर्ख)  
श्लिष्टनान्दीयुतं ख्यातनायिकं मुख्यनायकं । (मूर्ख)  
उदात्तभावविन्याससंश्रितं चोत्तरोत्तरं ।  
उदात्तभावविन्याससंश्रितं चोत्तरोत्तरं ।  
इह प्रतिमुखं सन्धिमपि केचित्प्रचक्षते ॥ २
इह प्रतिमुखं सन्धिमपि केचित्प्रचक्षते ॥ २<ref>२ साहित्यदर्पण – छठ्ठो परिच्छेद- २८८, २८६ अने २९० श्लोक- पृष्ठ ३४८</ref>
शारदातनय "त्रिसन्धिकम्" अेटलुं ज कहे छे. तेने बदले विश्वनाथ अे अथवा त्रण संधि होय अेम कहे छे. अने साथे संधिनां नाम पण आपे छे.
शारदातनय "त्रिसन्धिकम्" अेटलुं ज कहे छे. तेने बदले विश्वनाथ अे अथवा त्रण संधि होय अेम कहे छे. अने साथे संधिनां नाम पण आपे छे.
________________________
२ साहित्यदर्पण – छठ्ठो परिच्छेद- २८८, २८६ अने २९० श्लोक- पृष्ठ ३४८


शुभङ्कर
'''शुभङ्कर'''
आ साथे “संगीतदामोदरजी” तथा "हस्तमुक्तावलि"ना कर्ता शुभङ्करनी व्याख्या पण जोवा जेवी छे :-
आ साथे “संगीतदामोदरजी” तथा "हस्तमुक्तावलि"ना कर्ता शुभङ्करनी व्याख्या पण जोवा जेवी छे :-
सूत्रधारविहीनं तु स्यादेकांक तु रासकम् ।  
सूत्रधारविहीनं तु स्यादेकांक तु रासकम् ।  
Line 526: Line 457:
एक विश्रामसहितं यथा स्यात्केलिरैवतम् ।  
एक विश्रामसहितं यथा स्यात्केलिरैवतम् ।  
ललितादक्षिणाः ख्याता नायकाः पंचषाऽपि ॥
ललितादक्षिणाः ख्याता नायकाः पंचषाऽपि ॥
विप्रक्षत्रवणिक्पुत्रास्सचिवायत्तसिद्धयः ।  
विप्रक्षत्रवणिक्पुत्रास्सचिवायत्तसिद्धयः ।  
द्वयंके मुरवावमर्शे स्त एकांके गर्मनिर्गमः ॥१
द्वयंके मुरवावमर्शे स्त एकांके गर्मनिर्गमः ॥१<ref>१ भावप्रकाशनम् - ९मो अधिकार - २६६ - ६७ पृष्ठ - १थी ७ पंक्ति</ref>
हल्लीसकमां आ व्याख्या प्रमाणे ७, ८, ९ के १० नायिका, अेक बे अंक, कैशिकी वृत्ति, विमर्श अने मुखसंधि, विप्र, शत्र, अमात्य के वणिक एवा ललित, दक्षिण के ख्यात पांच के छ नायक जोईअे. बे अंक होय त्यारे मुख अने अवमर्श अने एक अंक होय त्यारे गर्मनिर्गम जोईअे. आ उपरांत, यति, खंड, ताल, लय, अने विश्राम सहितनुं गेय लास्य तेमां जोईअे.
हल्लीसकमां आ व्याख्या प्रमाणे ७, ८, ९ के १० नायिका, अेक बे अंक, कैशिकी वृत्ति, विमर्श अने मुखसंधि, विप्र, शत्र, अमात्य के वणिक एवा ललित, दक्षिण के ख्यात पांच के छ नायक जोईअे. बे अंक होय त्यारे मुख अने अवमर्श अने एक अंक होय त्यारे गर्मनिर्गम जोईअे. आ उपरांत, यति, खंड, ताल, लय, अने विश्राम सहितनुं गेय लास्य तेमां जोईअे.


 
'''विश्वनाथ'''
विश्वनाथ


ज्यारे विश्वनाथनी व्याख्या आ प्रमाणे छे :-  
ज्यारे विश्वनाथनी व्याख्या आ प्रमाणे छे :-  
हल्लीश एवं एकांकः सप्ताष्टादश वा स्त्रियः ।  
हल्लीश एवं एकांकः सप्ताष्टादश वा स्त्रियः ।  
वागुदात्तैकपुरुषः कैशिकीवृत्तसंकुलः ॥  
वागुदात्तैकपुरुषः कैशिकीवृत्तसंकुलः ॥  
मुखान्तिमौ तथा सन्धी बहुताललयस्थितिः । २
मुखान्तिमौ तथा सन्धी बहुताललयस्थितिः । २<ref>२ साहित्यदर्पण - छठ्ठो परिच्छेद- ३०७ श्लोक - पृष्ठ ३५१</ref>
______________________
१ भावप्रकाशनम् - ९मो अधिकार - २६६ - ६७ पृष्ठ - १थी ७ पंक्ति
२ साहित्यदर्पण - छठ्ठो परिच्छेद- ३०७ श्लोक - पृष्ठ ३५१


आम बन्नेनी व्याख्या प्रमाणे हल्लीसकमां ताल, लय, पण जरूरी छे.  
आम बन्नेनी व्याख्या प्रमाणे हल्लीसकमां ताल, लय, पण जरूरी छे.  
आम १२मा सैकानो शारदातनय जेम एक बाजु रासकना नृत्यप्रकारना स्वरूपनी माहिती आपती व्याख्या आपे छे तेम बीजी बाजु तेने संपूर्ण उपरूपकनुं स्वरूप आपती व्याख्या पण आपे छे. जो के, तेमां पण रासकने नृत्यभेद तरीके ओळखावे छे. पण त्यार पछी १४मा सैकामां आवतो विश्वनाथ तेना "साहित्यदर्पण"मां रासकने उपरूपक तरीके ओळखावती ज व्याख्या आपे छे. आ जोतां कही शकाय के शारदातनयना समय पहेलां रासके उपरूपकनुं स्वरूप प्राप्त करवा मांड्युं हशे अने विश्वनाथना समय सुघीमां तेनुं उपरूपक तरीकेनुं स्वरूप संपूर्णपणे सिद्ध थई गयुं हशे.
आम १२मा सैकानो शारदातनय जेम एक बाजु रासकना नृत्यप्रकारना स्वरूपनी माहिती आपती व्याख्या आपे छे तेम बीजी बाजु तेने संपूर्ण उपरूपकनुं स्वरूप आपती व्याख्या पण आपे छे. जो के, तेमां पण रासकने नृत्यभेद तरीके ओळखावे छे. पण त्यार पछी १४मा सैकामां आवतो विश्वनाथ तेना "साहित्यदर्पण"मां रासकने उपरूपक तरीके ओळखावती ज व्याख्या आपे छे. आ जोतां कही शकाय के शारदातनयना समय पहेलां रासके उपरूपकनुं स्वरूप प्राप्त करवा मांड्युं हशे अने विश्वनाथना समय सुघीमां तेनुं उपरूपक तरीकेनुं स्वरूप संपूर्णपणे सिद्ध थई गयुं हशे.


डोलरराय मांकड
'''डोलरराय मांकड'''
श्री डोलरराय मांकड रासनी जुदी जुदी व्याख्याओ आपी तेनी विगतवार चर्चा कर्या पछी एवो अभिप्राय आपे छे के :-
श्री डोलरराय मांकड रासनी जुदी जुदी व्याख्याओ आपी तेनी विगतवार चर्चा कर्या पछी एवो अभिप्राय आपे छे के :-
These different definitions of both the forms prove beyond doubt that they have evolved from mere dance to an organised "नृत्य" form and thence to an elementary form of drama.
These different definitions of both the forms prove beyond doubt that they have evolved from mere dance to an organised "नृत्य" form and thence to an elementary form of drama.
But side by side with these (Nrtya Types) Rupaka types were also developing and as a reflection of the Rupakas these Nrtya Types borrowed speech and transformed themselves into some sort of half-developed Rupakas, which in Vishwanath's age, came to be regarded as Upa-Rupakas.१
But side by side with these (Nrtya Types) Rupaka types were also developing and as a reflection of the Rupakas these Nrtya Types borrowed speech and transformed themselves into some sort of half-developed Rupakas, which in Vishwanath's age, came to be regarded as Upa-Rupakas.१<ref>१ Types of Sanskrit Drama पृष्ठ ४०८, छठ्ठुं प्रकरण</ref>
__________________
१ Types of Sanskrit Drama पृष्ठ ४०८, छठ्ठुं प्रकरण


आम तेमना मते रासनो उपरूपक प्रकार नृत्यमांथी ज आव्यो छे. आ उपरांत तेओ कहे छे के रासना नृत्यप्रकार साथे रूपकप्रकार पण विकसतो हतो. अने रूपकमांथी नृत्यप्रकारे संवादनुं तत्त्व अपनाव्यं. तेना परिणामे रास-नृत्यप्रकार अर्धविकसित रूपकनी अवस्थाने पाम्यो. आ ज अर्धविकसित रूपक विश्वनाथना समयमा उपरूपक तरीके ओळखावा लाग्युं.  
आम तेमना मते रासनो उपरूपक प्रकार नृत्यमांथी ज आव्यो छे. आ उपरांत तेओ कहे छे के रासना नृत्यप्रकार साथे रूपकप्रकार पण विकसतो हतो. अने रूपकमांथी नृत्यप्रकारे संवादनुं तत्त्व अपनाव्यं. तेना परिणामे रास-नृत्यप्रकार अर्धविकसित रूपकनी अवस्थाने पाम्यो. आ ज अर्धविकसित रूपक विश्वनाथना समयमा उपरूपक तरीके ओळखावा लाग्युं.  
"संदेशरासक"ना साहित्यस्वरूपनी विचारणा करतां श्री मांकड कहे छे के, साहित्यस्वरूपनी दृष्टिअे रासक अेक नृत्यकाव्य अथवा गेयरूपक छे, अेमां घणुं संगीत अेटले घणा गेय छंदो जोईअे अने अेनुं आखुं वस्तु गद्यमां नहीं पण गेय पद्यमां लखेलुं होवुं जोईअे. उपरांत, आ बधां गेय पद्यो पूरां अभिनेय जोईअे. २
"संदेशरासक"ना साहित्यस्वरूपनी विचारणा करतां श्री मांकड कहे छे के, साहित्यस्वरूपनी दृष्टिअे रासक अेक नृत्यकाव्य अथवा गेयरूपक छे, अेमां घणुं संगीत अेटले घणा गेय छंदो जोईअे अने अेनुं आखुं वस्तु गद्यमां नहीं पण गेय पद्यमां लखेलुं होवुं जोईअे. उपरांत, आ बधां गेय पद्यो पूरां अभिनेय जोईअे. २<ref>२ साहित्यस्वरूपनी दृष्टि संदेशरासक - डॉलरराय मांकड : वाणी - चैत्र अंक १९४८ - पृष्ठ १६</ref>
__________________________
२ साहित्यस्वरूपनी दृष्टि संदेशरासक - डॉलरराय मांकड : वाणी - चैत्र अंक १९४८ - पृष्ठ १६


रासकना उल्लेखोनुं समग्रपणे अवलोकन   
'''रासकना उल्लेखोनुं समग्रपणे अवलोकन'''  
पुराणो अने नाट्यशास्त्रना ग्रन्थोमांथी मळी आवेला रासक विशेना बधा उल्लेखोनुं समग्रपणे अवलोकन करतां लागे छे के, आ रासनुं मूळ स्वरूप "हरिवंश"मां आपेला वर्णन प्रमाणेनुं वाद्य, गीत, ताल अने लय साथेना व्यवस्थित नृत्यप्रकारनुं हशे. इतर वर्णनो जोतां जणाय छे, के अत्यारना दांडिया रास अने गरबाना नर्तनप्रकार जेवुं अे नृत्य हतुं. आ नर्तनमां भाग लेनाराओनी संख्या निश्चित थयेली हती. त्यार पछी आ नृत्य- प्रकारनो विकास चालु ज रह्यो अने तेमांथी अेक जुदो फांटो पड्यो, नृत्यथी भिन्न अेवुं रासनुं उपरूपक जेवुं स्वरूप पण सिद्ध थवा मांड्युं. आजे आपणे जे प्रकारनां (Dance Ballet) नृत्यरूपको जोईअे छीअे ते प्रकारनुं आ स्वरूप होई शके. जो के आ उपरूपकमां नाट्यतत्त्व केटला अंशे हतुं के तेना प्रयोग कई रीते थता हशे अे जाणी शकातुं नथी. आगळ उपर आपणे जोईशुं के रास कोई उत्सव प्रसंगे रमाता - गवाता. तेना गानारा अने नाचनारानो वर्ग जुदो हतो. अे ज रीते आजे भजवातां- नृत्यरूपकोमां गायकवृन्द जुदुं होय छे अने तेमना गायन प्रमाणे रंगभूमि उपर जुदां जुदां पात्रो आवी अभिनय करी जाय छे. आम रासके आवा उपरूपकनुं स्वरूप प्राप्त कर्युं होय अे संभवित छे.   
पुराणो अने नाट्यशास्त्रना ग्रन्थोमांथी मळी आवेला रासक विशेना बधा उल्लेखोनुं समग्रपणे अवलोकन करतां लागे छे के, आ रासनुं मूळ स्वरूप "हरिवंश"मां आपेला वर्णन प्रमाणेनुं वाद्य, गीत, ताल अने लय साथेना व्यवस्थित नृत्यप्रकारनुं हशे. इतर वर्णनो जोतां जणाय छे, के अत्यारना दांडिया रास अने गरबाना नर्तनप्रकार जेवुं अे नृत्य हतुं. आ नर्तनमां भाग लेनाराओनी संख्या निश्चित थयेली हती. त्यार पछी आ नृत्य- प्रकारनो विकास चालु ज रह्यो अने तेमांथी अेक जुदो फांटो पड्यो, नृत्यथी भिन्न अेवुं रासनुं उपरूपक जेवुं स्वरूप पण सिद्ध थवा मांड्युं. आजे आपणे जे प्रकारनां (Dance Ballet) नृत्यरूपको जोईअे छीअे ते प्रकारनुं आ स्वरूप होई शके. जो के आ उपरूपकमां नाट्यतत्त्व केटला अंशे हतुं के तेना प्रयोग कई रीते थता हशे अे जाणी शकातुं नथी. आगळ उपर आपणे जोईशुं के रास कोई उत्सव प्रसंगे रमाता - गवाता. तेना गानारा अने नाचनारानो वर्ग जुदो हतो. अे ज रीते आजे भजवातां- नृत्यरूपकोमां गायकवृन्द जुदुं होय छे अने तेमना गायन प्रमाणे रंगभूमि उपर जुदां जुदां पात्रो आवी अभिनय करी जाय छे. आम रासके आवा उपरूपकनुं स्वरूप प्राप्त कर्युं होय अे संभवित छे.   
“हरिवंश"मां अप्सराओना रासनृत्यना वर्णनमां आ नृत्य हावभावयुक्त अने सप्रयोजन हतुं अेम कहेवामां आव्युं छे. तेमांनु हावभाव अने प्रयोजननुं अंग रासने संपूर्ण उपरूपक बाबतमां मददरूप थई पड्युं हशे.  
“हरिवंश"मां अप्सराओना रासनृत्यना वर्णनमां आ नृत्य हावभावयुक्त अने सप्रयोजन हतुं अेम कहेवामां आव्युं छे. तेमांनु हावभाव अने प्रयोजननुं अंग रासने संपूर्ण उपरूपक बाबतमां मददरूप थई पड्युं हशे.  
प्राचीन गुजराती रासोने उपरूपक प्रकारनां लक्षणो जोतां तेनी साथे कोई सीधो सम्बन्ध नथी, आ रासाओने तो गीतो के नृत्य साथ सीधो संबंध छे. जो के, आगळ उपर चर्चा करी छे१ तेमां जणाव्या मुजब आ रासो मात्र नर्तन माटे ज हता अने तेमां साहित्यगुण न ज हतो अेम पण कही शकाय अेम नथी. रास - रासक विशेना जुदाजुदा उल्लेखो परथी जणाय छे के अेक रास-प्रकार केवळ नृत्यप्रधान हतो. ज्यारे बीजा प्रकारमां सप्रयोजन अभिनय हतो. आमांना नृत्यरासकमांथी पछीनो दांडियारासनो प्रकार आव्यो अने अभिनयप्रधान रासकमांथी रासलीलानो प्रकार आव्यो.  
प्राचीन गुजराती रासोने उपरूपक प्रकारनां लक्षणो जोतां तेनी साथे कोई सीधो सम्बन्ध नथी, आ रासाओने तो गीतो के नृत्य साथ सीधो संबंध छे. जो के, आगळ उपर चर्चा करी छे१<ref>१ प्रकरण छठ्ठुं - केटलीक प्रतिनिधिरूप रासकृतिओनो अभ्यास.</ref> तेमां जणाव्या मुजब आ रासो मात्र नर्तन माटे ज हता अने तेमां साहित्यगुण न ज हतो अेम पण कही शकाय अेम नथी. रास - रासक विशेना जुदाजुदा उल्लेखो परथी जणाय छे के अेक रास-प्रकार केवळ नृत्यप्रधान हतो. ज्यारे बीजा प्रकारमां सप्रयोजन अभिनय हतो. आमांना नृत्यरासकमांथी पछीनो दांडियारासनो प्रकार आव्यो अने अभिनयप्रधान रासकमांथी रासलीलानो प्रकार आव्यो.  
रासने गीतोनो साथ रहेतो अे प्रमाणे जोयुं, आमांथी साहित्यगुण धरावतो अपभ्रंशनो तथा गुजरातीनो रास-प्रकार ऊतरी आव्यो, अेम अनुमान करी शकाय.
रासने गीतोनो साथ रहेतो अे प्रमाणे जोयुं, आमांथी साहित्यगुण धरावतो अपभ्रंशनो तथा गुजरातीनो रास-प्रकार ऊतरी आव्यो, अेम अनुमान करी शकाय.
आम जूनी गुजरातीना रासने उपरूपक प्रकार साथे सीधो संबंध नथी. पण उपरूपकना एक भेद लेखे रासक गणावायो छे अेटला पूरती ज अहीं तेना विषे विचारणा करी छे.
आम जूनी गुजरातीना रासने उपरूपक प्रकार साथे सीधो संबंध नथी. पण उपरूपकना एक भेद लेखे रासक गणावायो छे अेटला पूरती ज अहीं तेना विषे विचारणा करी छे.
____________________________
१ प्रकरण छठ्ठुं - केटलीक प्रतिनिधिरूप रासकृतिओनो अभ्यास.


રાસસાહિત્ય, પૃ.૨૪થી ૬૪,૧૯૬૬  
 
'''રાસસાહિત્ય, પૃ.૨૪થી ૬૪,૧૯૬૬ '''


{{Poem2Close}}
{{Poem2Close}}
<hr>
'''સંદર્ભનોંધ'''
{{reflist}}
<br>
<br>
{{HeaderNav2
{{HeaderNav2
|previous = નવલરામ
|previous = લોકનાટ્યઃ ભવાઈ
|next = સર્જનાત્મક સાહિત્ય અને કલામાં પુરાકથાકીય વિષયો
|next = કુંપળ ફૂટ્યાની વાત
}}
}}

Latest revision as of 01:11, 13 March 2024


रास-साहित्यनुं स्वरूप अने विकास
भारती वैद्य

संस्कृत साहित्यमां रास

रासप्रकार अपभ्रंशनो वारसो- संस्कृत साहित्यमां रासना उल्लेख : हरिवंश - "हरिवंश"मांनो बीजो नर्तनप्रकार, हल्लीसक- सरस्वतीकण्ठा - भरणम् - अन्य पुराणोमांना रासनां वर्णन - ब्रह्मपुराण अने विष्णुपुराण, भागवत, - हरिवंशना वर्णनने भागवतनुं समर्थन - "रासगोष्ठी"नो अर्थ - हेमचन्द्र : छंदोनुशासन - हल्लीसक अने रासक - नाट्यदर्पण, भावप्रकाशनम्, सरस्वतीकण्ठाभरणन्, अभिधानचिंतामणिकोश अने काव्यानुशासन - पुराणो अने हेमचन्द्र - रासक विषे शारदातनय वेम - भूपाल, शंकर - दांडियारासने मळतो क्रीडाप्रकार - रासना त्रण भेद : कुंभकर्ण, पुण्डरिक विठ्ठल - बिल्वमंगल - रास : अेक उपरूपक - अग्निपुराण - धनिक - हेमचन्द्र अने वाग्भट - शारदातनय - विश्वनाथ- शुभंकर - हल्लीसक : उपरूपकनो प्रकार - शारदातनय - विश्वनाथ - डोलरराय मांकड - रासकना उल्लेखोनुं समग्रपणे अवलोकन.

***

प्राचीन गुजराती भाषा अने साहित्य क्यारथी सिद्ध थयां गणवां अे विषे निर्णय कर्या पछी अने रास-साहित्यना अभ्यासना क्षेत्रमां अन्य विद्वानोओ करेला कार्यनी समीक्षा कर्या पछी हवे आ रास- साहित्यना स्वरूप विषे निर्णय बांधवा माटे "भरतेश्वर बाहुबलि घोर" अने "भरतेश्वर बाहुबलि रास"थी शरू करी त्यार पछीना समयमां मळी आवती रास-कृतिओनो अभ्यास करवानुं प्राप्त थाय छे. आ रास-कृतिओना आधारे प्राचीन गुजराती रासनां स्वरूप छंद, शैली, विषय वमेरे बधी ज दृष्टिअे समग्ररूपे तेनुं अध्ययन करवानुं रहे छे. रास- प्रकार : अपभ्रंशनो वारसो रास-साहित्य अे समग्र प्राचीन गुजराती साहित्यनो अेक प्रकार छे. प्राचीन गुजराती भाषा आपणे जोयुं तेम अपभ्रंशमांथी तेनी असर हेठळ विकसी छे.૧ अपभ्रंश तरफथी प्राचीन गुजरातीने मळेला वारसामां साहित्यनो वारसो पण छे. अने आ रास-प्रकार पण अपभ्रंशना वारसा समो छे. उपलब्ध माहिती परथी जणाय छे के अपभ्रंशमां रास-साहित्य सारी रीते विकसेलुं हतुं. अेटले प्राचीन गुजरातीमां रास-साहित्यनो अभ्यास शरू करतां पहेलां तेनी माता अेवी अपभ्रंश भाषामां ए साहित्यप्रकार केवा स्वरूपे हतो अे जोवुं आवश्यक छे. पण ते पहेलां य अपभ्रंश भाषामां अगाउना समयमां “रास" नामनो के तेने मळतो के तेना मूळ रूपनो कोई प्रकार प्रचारमां हतो के केम अे जोवुं जोईअे. प्राचीन गुजराती पूर्वे अपभ्रंश साहित्य उपरांत संस्कृत साहित्यमां पण “रास" के "रासक” नामक नृत्तप्रधान प्रकार के रूपकप्रकार जाणीतो हतो अने अहीं आगळ उपर केटलीक प्राचीन गुजराती रास-कृतिनो अभ्यास कर्यो छे अे परथी अेक वस्तु फलित थाय छे के आ रास गेय हता, एटलुं ज नहीं रास रमाता-नचाता हता,૧[1] अेटले के, नृत्यना साथ तरीके गवाता हता. तो ओ दृष्टिअे प्राचीन गुजराती रासोने संस्कृतना रास के रासक साथे कशी संबंध हतो खरो अे पण जोवुं जरूरी बने छे.

संस्कृत साहित्यमां रासना उल्लेख संस्कृत साहित्यमां पुराणो, संगीतशास्त्रना तेम ज नाट्यशास्त्रना ग्रंथोमां आ रास के रासकना जुदा जुदा प्रकारना उल्लेखो मळे छे. आमांनो सहुथी पहेलवहेलो "रास" शब्द बीजात्रीजा शतकमां૨[2] रचायेला मनाता “हरिवंश”मां वपरायेलो मळे छे. अने त्यार पछी तो विष्णुपुराण, ब्रह्मपुराण, भागवत वगेरेमां रासनां पुष्कळ वर्णनो मळे छे. आ बधे स्थळे "रास" शब्द कृष्ण-गोपीनी क्रीडा, यादववीरोनी तेम ज अप्सराओनी क्रीडाना अर्थमां वपरायेलो छे.

हरिवंश "हरिवंश"मां आ उपरांत एकली गोपकन्याओना एक विशिष्ट नृत्यनो पण एक उल्लेख आवे छे. “हल्लीशक्रीड वर्णनम्" एम कही तेमां आ प्रमाणेनो उल्लेख आवे छे :- तास्तु पंक्तिकृतास्सर्वा रमयन्ति मनोरमम् गायन्तयः कृष्णचरितं द्वन्द्वशा गोपकन्यकाः।૧[3] "ए सर्वे गोपकन्याओ मंडळाकारमां बे बेनी जोडीमां कृष्णनुं मनोहर चरित गाती गाती रमे छे." "हरिवंश"ना संपादक नीलकण्ठ गोविंदनी टीका प्रमाणे आ श्लोकमांना “पंक्तिकृता"नो अर्थ 'मण्डलाकारं पंक्तिरूपेण स्थिता।’૨[4] एवो लेतां ते मुजब एकली गोपीओ - गोपकन्याओना आ नृत्य साथे कृष्णना चरित्रनुं गीत गवातुं हतुं. अने बे बेनी जोडीमां मंडळाकारमां फरीने आ क्रीडा थती. पाछऴथी आवतां रासवर्णनो जोतां "हरिवंश"नी आ "हल्लीशक्रीडा” पण रासनृत्य जेवी ज होय एम लागे छे. पाछळना उल्लेखोमां पण मंडळाकारे, कृष्णबळरामनां चरित्रनुं संकीर्तन वर्णन करतां गीतो साथे थतुं नर्तन ते रासनृत्य अेम कहेवामां आव्युं छे. पण तेमां वधारामां गोपीओ साथै कृष्ण रहेता ज अथवा स्त्रीओ साथे एक पुरुष होय ते रासनुं आवश्यक अंग मनातुं तेम "हरिवंश"ना आ वर्णनमां नथी मनायुं. ते परथी कही शकाय के एकली गोपकन्याओना नृत्यनो पण एक प्रकार प्रचलित हतो खरो.

"हरिवंश"मांनो बीजो नर्तनप्रकार

"हरिवंश"मां बीजा पण अेक नर्तनप्रकारनो उल्लेख मळी आवे छे. आ उल्लेख बीजा बधा उल्लेख करतां जुदा नृत्यप्रकारनी विगतो आपे छे. कृष्ण, बळराम अने अन्य यादववीरोनुं समूहमां तेमनी भार्याओ साथेनी क्रीडानुं वर्णन अने अप्सराओना नृत्यनुं वर्णन "हरिवंश"मां नीचे प्रमाणे आपवामां आव्युं छे :-

रेमे बलश्चन्दन पंकदिग्धः कादम्बरीपानकलः पृथु श्रीः । रक्तेकाणो रेवतिमाश्रयित्व प्रलम्बबाहुस्खलितः प्रपातः ॥ १ ॥ नीलाम्बुदाये वसने वसानश्चन्दांशुगारो मदिराविलाक्षः । रराज रामोम्बुदमध्यमेत्व सम्पूर्णबिम्बो भगवानिवेन्दुः ॥ २ ॥ रामैककर्णामलकुण्डलश्रीः स्मेरन्मनोज्ञाज्जकृतावतंसः । तिर्यक्कटाक्ष प्रियया मुमोद रामो मुखं चार्वमिविक्ष्यमाणः ॥ ३ ॥ अथाज्ञया कंसनिकुम्यशस्त्रोरुदार रूपोऽप्सरसां गणः सः । द्रष्टुमुद्रा रेवतिमाजगाम वेलालयं स्वर्गसमानमृद्धवया ॥ ४ ॥ तां रेवतीं चोप्यथ वाऽपि रामं सर्वांनमस्कृत्यं वरांगयष्टयः वाद्यानुरूपं ननृतुः सुगात्र्यः समन्तंतोअन्या जगिरे च सम्यक् ॥ ५ ॥ चक्रस्तथैवाभिनयेन लब्धं यथावदेषां यथावदेषां प्रियमर्थयुक्तम् । हृद्यानुकूलं च बलस्य तस्य तथाज्ञया रैवतराजपुत्र्याः ॥ ६ ।। चकृर्हन्त्यश्च तथैव रासं तद्वेशभाषाकृतिवेषयुक्ताः । सहस्ततालं ललित सलीलं वरांगना मंगल संमृतांगयः ॥ ७ ॥ संकर्षाणाधोक्षजनन्दनानि संकीर्तयन्त्योऽव च मंगलानि । कंसप्रलम्बादिवधं च रम्यं चाखूरघातं च तथैव रंगे ॥ ८ ॥ यथोदया च व्रथितं यशोऽथ दामोदत्वं च जनार्दनस्य । वध तथारिष्टकधेनुकाभ्यां व्रजे च वासं शकुनीवधं च ॥ ६ ॥ , तथा च भग्नौ यमलार्जुनौ तौ सृष्टिं वृकाणामपि वत्सयुक्ताम् । स कालियो नागपति हृदे च कृष्णेन दान्तश्च तथा दुरात्मन ॥ १० ॥ शंखहृदादुधरणं च वीर पद्मोत्पलानां मधूसूदनेन । गोवर्धनोऽपि च गवां घृतोऽभूद्यथा च कृष्णेन जनार्दनेन ॥ ११ ॥ कुब्जां यथा गन्धक्वीषिकां च कुब्जत्वहीनां कृतवांश्च कष्ण । अवामनं वामनंक च शक्रे कष्णेण यथात्मानमजोऽप्यनिन्द्यः ॥ १२ ॥ सौभप्रमाथं च हलायुधत्वं वधं मुरस्याप्यथ देवशत्रोः । गन्धारकन्यावहने नृपाणां रथे तथा योजेनमूर्जितानाम् ।। १३ ।। ततः सुभद्राहरणे जयं च युद्धे च बालाहकजम्बुमाले । रत्नप्रवेशं च युधार्जितैर्यत्समादृतं शक्रसमक्षमासीत् ॥ १४ ॥ एतानि चान्यानि च चारुरूपा जगुः स्त्रियः प्रतिकराणि राजन् । संकर्षणाद्योक्षजहर्षाणान चित्राणि चानेककथाश्रयाणि ।। १५ ।। कादम्बरीपानमदोत्कटस्तु बल: पृथुश्री स चुकूद रामः । सहस्ततालं मधुरं समं च स भार्यया रैवेतराजपुत्रया ॥ १६ ॥ तं कूर्दमानं मधुसूदनश्च दृष्टवा महात्मा च मुदान्वितोऽभूत । चुकूर्द सत्या सहितो महात्मा हर्षागमार्थ च बलस्य धीमान् ॥ १७ ॥ समुर्द्र यात्रार्थमथागतश्च चुकूदं पार्कौ नरलोकवीरः । कृष्णेन साधै मुदितश्चुकूर्द सुभद्रया चैव वरांगयष्टया ॥ १८ ॥ गदश्च धीमानथ सारणश्च प्रद्युम्न साम्बौ नृप सात्यकिश्चा । सात्राजितीसुनूरुदारवीर्यः सुचारुदेष्णश्च सुचारुरूपः ॥ १६ ॥ वीरो कुमारो निशठोल्युकौ च रामात्मजो वीरतमौ चुकूर्दतु । अक्रूर सेनापतिशंकरश्च तथावरे भैमकुलप्रधानाः ॥ २० ॥ तद्यानपात्रं ववृधे तवानी कृष्णप्रभावेन जनेन्द्र पुत्रः । आपूर्णमापूर्णमुदारकीत्रै चुकूर्दयद्मिनुष भैममुख्यैः ॥ २१ ॥ तै राससवतैरतिकूर्दमानैर्य दुप्रवीरैरमरप्रकाशेः । हर्षान्वितं वीर जगत्तथामूच्छेमश्च पापानि जनेन्द्र सूनो ॥ २२ ॥ ૧[5]

(१) अंगोअे चंदनना लेप लगाडेला, कदंब पुष्पनी मदिराना पानथी मत्त थयेला, मनोहर, अतिशय शोभाथी युक्त थयेला, लालचोळ आंखवाळा अने लांबा हाथवाळा, मोहथी लथडतो पदसंचार करता बळराम रेवतीना आश्रये तेनी साथे क्रीडा करी रह्या हता. (२) तेणे नीला मेघ जेवां नील रंगनां बे वस्त्र धारण कर्यां हतां. ते चन्द्रनां किरणो समान श्वेत हतां मदिराथी तेमनी आंखो मदभरी थई हती. आवी शोभाथी युक्त थयेला बळराम संपूर्ण बिम्बवाळा चंद्र जेम मेघमंडळमां विराजे तेम विराजता हता. (३) जेना एक मात्र डाबा कान उपर ज निर्मळ कुन्डळनी शोभा खीली रही हती, जेमणे मनोहर प्रफुल्ल कमळनां भूषण पहेर्यां हतां, अेवा बलराम पोतानी प्रियानुं वांका कटाक्ष नाखतुं सुंदर मुख जोतां आनंदमग्न थया. (४) आ समये कंस तथा निकुंभना शत्रु कृष्णनी आज्ञाथी सुंदर रूपवाळी अप्सराओनो गण स्वर्ग जेवी समृद्धिथी संपन्न थई रेवतीने भेटवा समुद्रमां गयो. (५) उत्तम अने सुंदर आंगळीबाळी ए सर्वे अंगनाओअे रेवती अने बळरामने पण प्रणाम कर्या. तेओमांनी केटलीक पोतानां वाद्योने अनुरूप नृत्य करवा मांडी अने अन्य स्त्रीओ सारी रीते ते ज प्रमाणे गावा लागी. (६) बळराम अने रेवतीनी आज्ञाथी शीखीने प्राप्त करेल हावभावयुक्त अने तेमना हृदयने अनुकूळ मनोहर अर्थवाळुं संगीत अने नृत्य तेओअे कर्युं. (७) मंगल वस्तुओथी सुसज्ज थयेलां अंगोवाळी अे सुंदर अप्सराओअे ते देशोनी भाषा, आकृति अने वेशथी युक्त थई, हसतां हसतां हाथथी ताल वगाडतां लीलायुक्त रास कर्यो. (८) तेओ संकर्षण बळरामने आनंद आपे अवां तेमनां कृत्योनां मंगळ वर्णनो तेम ज कंस अने प्रलम्बना वधनो रम्य प्रसंग तथा ते ज प्रमाणे रंगभूमिमां चाणूरनो संहार ए सर्वनुं संकीर्तन करवा लागी. (९) जनार्दनना "दामोदर" तरीकेना यशनी कथा; अरिष्ठ अने धेनुक असुरनो वध; तेम ज गोकुळमां निवास, शकुनिनो वध... (१०) यमल अने अर्जुन वृक्षोनो मूळ सहित भंग, यथाकाले नानां बच्चां साथे वरुओनी करेली उत्पत्ति, यमुनामां दुरात्मा नागपति कालिय नागनुं कृष्णे करेलुं दमन,... (११) कमलो अने पद्मोनुं शंख नामना सरोवरमांथी मधुसूदने करेलुं उद्धरण, गामोना रक्षणने माटे कृष्णे गोवर्धन केवी रीते धारण कये ते प्रसंग,... (१२) चंदन वगेरे सुगंधी पदार्थना लेप करनारी, वांका अंगवाळी कुब्जाने कृष्णे केवी रीते खोडथी मुक्त करी ते प्रसंग, अज अने अनिंद्य कृष्णे पोते वामन न होवा छतां वामन रूप केवी रीते धारण कर्यु हतुं.... (१३) सौभ असुरने केवी रीते मार्यो हतो, अने बलरामे युद्धमां केवी रीते हळ धारण कर्युं हतुं, ते सर्व प्रसंगो, देवशत्रु मुर राक्षसनो वध, गंधार देशनी राजकन्याना हरण समये उर्जस्वी राजाओ सामे रथमां बेठे बेठे युद्ध करवानी योजना,... (१४) सुभद्राना हरणमां जय, बालाहक अने जंबुमाली साथेनां युद्धो, इन्द्र साथे युद्धमां जय मेळवी तेना देखतां रत्नोनुं करेलुं हरण,... (१५) आ अने बीजी अनेक कृष्ण पर प्रीति उत्पन्न करावनारी, संकर्षण अने अधोक्षजने हर्ष पमाडनारी चित्रविचित्र कथाओनुं संकीर्तन से सुंदर अप्सराओ करवा लागी. (आम अप्सराओनुं संकीर्तन चाली रह्युं हतुं ते वखते) (१६) मदिराना पानथी मदोन्मत्त थयेला, अतिशय शोभायुक्त बळराम, भार्या रेवती साथे हाथथी ताल वगाडता, मधुर संगीत करता नाचवा कूदवा लाग्या, (१७) बुद्धिमान बळरामने आम कूदता जोई, महात्मा मधुसूदन कृष्ण पण आनंद पाम्या. अने तेमने हर्ष पमाडवा खातर पोते पण सत्यभामा साथे कूदवा मंड्या. (१८) समुद्रयात्रानो उत्सव माणवा आवेला नरलोकना वीर पार्थे पण कृष्णनी साथे आनंदित थई उत्तम अंगोवाळी सुभद्रा साथे कूदवा मांड्युं. (१९) ते प्रमाणे हे नृप ! बुद्धिमान गद, सारण, प्रद्युम्न, साब, सात्यकी, सत्राजितनी कन्या सत्यभामानो पुत्र उदारवीर्य, अतिस्वरूपवान चारुदेष्ण, बळरामना बे वीर कुमारो निशठ अने उल्मुक आदि गावा तथा कूदवा लाग्या. (२०) सेनापति अक्रूर, शंकर अने भैमकुलना बीजा आगेवान यादवो पण तेमां साथे साथे गावा कूदवा लाग्या. (२१) हे जनेन्दपुत्र ! ते समये कृष्णना प्रभावथी से नौका आपोआप वधी अने कूदी रहेला भैमकुलना मुख्य मुख्य यादवोथी ते सर्वं रीते पूरेपूरुं भराई (२२) हे वीर! रास माटेनी अतिशय आसक्तिवाळा, कूदी रहेला अने देव जेवा तेजस्वी ए यादव वीरोथी (तेमना नाचगानथी) जगत अेटलुं तो हर्षयुक्त थयुं के तेमनां सर्वे पापो शमी गयां. अप्सराओनां नृत्य अने बळराम वगेरेना तेमनी भार्याओ सायेना नृत्यना आ वर्णन परथी जणाय छे के अप्सराओना अे रासनृत्यमां :- १. सुंदरीओ वाद्यने अनुरूप नृत्य करती, २. तेनी साथे आजुबाजु रहेलुं बीजी केटली स्त्रीओनुं वृन्द ते ज प्रमाणेनां गीत गातुं, ३. अे गीतो बळराम-कृष्णनां पराक्रमोनां अनेक कथानकोने वणी लेतां - संकीर्तन करतां गीत हतां, ४. नृत्य करनार सुंदरीओ हाथथी ताल आपती, ५. आ नृत्य हावभावयुक्त मनोहर अर्थवाळुं हतुं, ६. आ नृत्य ललित-नृत्यनो प्रकार हतो. आ अप्सराओना रासनृत्यथी आनंदमां आवी बळराम वगेरे यादव-वीरो पोतानी भार्याओ साथे कूदवा मांड्या अेवुं वर्णन पण साथे छे, ते जोतां मात्र कूदवानी आ क्रियानो पण रासनर्तनमां समावेश थतो हशे के केम ये सवाल सहेजे उपस्थित थाय छे. अलबत्त, आ बाबत निश्चितपणे कंई कही न शकाय, पण अेटलुं तो खरुं के यादव वीरोनी आ क्रीडा अप्सराओना गीत साथेना तालबद्ध नृत्यने अनुकूल हशे ज. कारण के तेमनी क्रीडा नृत्यना तालमां भंग रूप के विक्षेपकारक होय तो नृत्यनो रस जामे नहि अने तो "हरिवंश"मां रास जेटला ज विस्तारथी कूदवानी क्रियानुं वर्णन आपवानुं कोई प्रयोजन न रहे. रासना अनुषंगमां ज आनंदनो अतिरेक व्यक्त करवा तेनो ताल जाळवीने कूदवानी क्रिया थई होय अने ते रासनृत्यना अनिवार्य अंग लेखे नहीं पण तत्कालीन हर्षावेशना आविष्कार तरीके गणी शकाय.

हल्लीसक पुराणोमां रासनां जे जातनां वर्णन मळे छे तेने मळता “हल्लीसक” नामना ज. पण आगळ आपणे जोयेला "हल्लीश क्रीडा१[6]"ना वर्णनथी जरा जुदा पड़ता नृत्य प्रकारनुं वर्णन पण मळे छे. आज्ञापयामास ततः स तस्यां । निशि प्रहृष्टो भगवानुपेन्द्रः ॥ छालिक्यगेयं बहुसन्निधानं यदेव गांधर्वमुदाहरन्ति । जग्राह वीणामय नारदस्तु षड्ग्राम रागादिसमाधियुक्ताम् । हल्लीसकं तु स्वयमेव कृष्णः सबंधोषं नरदेव पाथः । हृ मृदंगवाद्यानवरांश्च वाद्यान् वराप्सरास्ता जगृहुः प्रतीताः । आतारितान्ते च ततः प्रतीता रम्योत्थिता साभिनयार्थज्ज्ञा ॥ २[7]

अेटले अे ज रात्रिअे विशेष हर्ष पामेला भगवान उपेन्द्रे, जेने गांधर्वगान कहेवामां आवे छे अेवुं बहु वाद्यो साथेनुं छालिक्यगान करवानी आज्ञा करी. नारदे षट्ग्रामयुक्त अने रागथी चित्तनी अेकाग्रताने साधनारी वीणा हाथमां लीधी, कृष्णे पोते हल्लीसक नृत्य करवा माटे वांसळी लीधी अने पृथापुत्रे मृदंग हाथमां लीधुं. ते ज प्रमाणे पोतानी शक्तिमां विश्वासवाळी अन्य अप्सराओअे पण अन्य अनेक वाद्य हाथमां लीधां. पछी "आसारित"ना अंते पोतानी शक्तिमां विश्वासवाळी अने अभिनयकलामां निपुण अेवी रंभा ऊभी थई. आ हल्लीसक नृत्यने पण वाद्य अने गीतनो साथ रहेतो अने तेमां पण कृष्ण साथे अप्सराओ भाग लेती अेम आ वर्णन परथी जणाय छे. ज्यारे आपणे आगळ जे हल्लीश क्रीडानुं वर्णन जोयुं तेमां अेकली गोपीओ मंडळाकारमां, बे बेनी जोडीमां कृष्णचरित्र गाती नृत्य करे छे अेम कहेवायुं छे.१ [8]

हल्लीसक नामना नृत्यप्रकारने आपणे आगळ उपर जोईशुं तेम पाछळना समयमा कां तो रास साथे एकरूप गणवामां आव्यो छे. अथवा तो तेने रासकनो अेक भेद गणवामां आव्यो छे. २ [9]

सरस्वती कण्ठाभरणम्

"सरस्वती कण्ठाभरणम्"मां श्राव्यकाव्य पछी दृश्यकाव्यनां लक्षण आपतां भोजदेव तेना छ भेद दर्शावे छे. आ छ प्रकारनां दृश्य काव्यमां “छलिक” नामना अेक प्रकारनो ते समावेश करे छे. "छलिक"नुं लक्षण आपतां भोजदेव... इदं तु शृंगारवीररसप्रधानत्वाच्छलिकम्[10] अेम कही आ प्रकारमां श्रृंगार अने वीररसनुं प्राधान्य जणावे छे. भोजदेवना कह्या प्रमाणे आम "छलिक" श्रृंगार अने वीररसना प्राधान्यवाळो अेक नृत्यप्रकार छे. ज्यारे "हरिवंश"ना आपणे आ पहेलां जोयेला उल्लेख मुजब कृष्ण भगवाने "छालिक्यगान" करवानी आज्ञा करी हती तो अे मुजब ते अेक गानप्रकार ठरे छे. पण नर्तन साथे जे गीत होय ते स्वाभाविक रीते ज तेना रसना मेळनुं होय. अेटले तो आ दृष्टि "छलिक" दृश्यकाव्यनुं गीत पण श्रृंगारवीरना प्राधान्यवाळुं होय. "हरिवंश"ना उल्लेख मुजब आवा छलिकगीतनी आज्ञा करी भगवान हल्लीसक नृत्यनी तैयारी करे छे.३[11] हवे "हरिवंश"ना रासना वर्णनमां जोयुं तेम अप्सराओ रासनृत्य साथे कंस - प्रलम्बना वध जेवा कृष्ण-बलरामनां पराक्रमना प्रसंगो के गांधार देशनी राजकन्याना हरण जेवा प्रसंगोनां गीत गाती. १ [12] आम रास तेम ज हल्लीसक बंने साथे वीररसनां, श्रृंगाररसनां, कृष्ण - बलरामनां पराक्रमनां गीत गवातां अेम "हरिवंश" कहे छे.

अन्य पुराणोमां रास त्यार पछी तो विष्णुपुराण, ब्रह्मपुराण अने भागवतमां रासनां अनेक वर्णनो मळी आवे छे जेनाथी आ नृत्यप्रकारनुं स्वरूप वधु स्पष्ट थतुं आवे छे. अने रास भेटले कृष्णगोपीना रास, तेमनी क्रीडा अेम चोख्खुं जणाय छे. जो के, आ वर्णनो अनुसार रास शृंगारप्रधान के श्रृंगारानुप्रणित होय अेम ज लागे छे. अने मूळमां वीररस पण रासमां प्रधान गणातो ते परिस्थिति बदलाई होय ओम लागे छे.

ब्रह्मपुराण अने विष्णुपुराण ब्रह्मपुराण अने विष्णुमहापुराणमां रासना प्रकारनो आ प्रमाणे उल्लेख मळे छे :-

गोपीपरिवृत्तो रात्रिं शरच्चन्द्रमनोरमाम् । मानयामास गोविंदो रासारम्भरसोत्सुकः ॥ २[13] गोपीओथी वींटळायेला अने रासनो आरंभ करवाना रसने माटे उत्सुक कृष्णे शरदनी मनोरम चांदनी रात माणी. शरदनी चांदनी रात्रे कृष्ण-गोपीनी रास-लीला रमाती अेम आ वर्णन स्पष्टपणे जणावे छे. विष्णुमहापुराणना आ ज अध्यायमां रासनुं बीजुं वर्णन पण मळे छे. ताभिः प्रसन्नचिताभिगोपीभिस्सह सादरम् । ररास रासगोष्ठीभिःरुदारचरितां हरिः रासमंडल बंधोऽपि कृष्णपार्श्वमनुज्कता । गोपीजनेन नैवाभूदेकस्थानस्थिरात्मना || हस्तेन गृह्य चैकेकां गोपीना रासमंडले । चकार तत्करस्पर्शनिमीलतदृशं हरिः ॥ ततः प्रववृते रासश्छलद्वलयनिस्वनः । अनुयात शरत्काव्यगेयगीतिरनुक्रमात् ॥१[14] अे प्रसन्न चित्तवाळी गोपीओ साथे उदारचरित अेवा कृष्ण आदरपूर्वक रासगोष्ठिमां रास रम्या. कृष्णनुं पडखुं नहीं छोडती अने अेक स्थाने स्थिर थयेली गोपीओ वडे रासमंडळनो बंध पण न रचायो. रासमंडळनी दरेके दरेक गोपीने हस्त वडे ग्रहण करीने कृष्णे पोताना करस्पर्शना आनंदथी आंख बंध करावी त्यारे जेमां हालतां कंकणोना अवाज पछी शरदनुं गेय काव्य गवाय छे अेवा रासनो प्रारंभ थयो.

आम आ वर्णन अनुसार एक कृष्ण अने अनेक गोपीओ वडे मंडळाकारमा आ रास रमातो. वळी तेमां शरदनुं गेय काव्य गवातुं. आ पहेलां जोयेला "हरिवंश"ना वर्णन अनुसार रासनृत्य साथै कृष्ण-बलरामनां पराक्रमोनुं संकीर्तन करतां गीत गवातां.१[15] अहीं शरदनुं गेय काव्य गवावानो उल्लेख छे. शरदनुं काव्य अेटले शरद ऋतुमां जे काव्यनुं गान उचित होय ते. तेमां शरदवर्णन होय अे स्वाभाविक छे. “विष्णुमहापुराण"ना रासनृत्यना उल्लेखमां जे “रासगोष्ठि” शब्द वपरायो छे तेना अर्थ विषे पण विचार करवानो रहे छे. आगळ उपर जोईशुं तेम "भागवत"मां आ शब्द घणी वार जोवा मळे छे. “रासगोष्ठि" अेटले रासनृत्य करवा माटे मळेल नर्तकोनुं वृन्द, के पछी रीतसरनी नृत्यनी क्रिया, अे अहीं नक्की नथी थतुं. आ वर्णनना अनुसंधानमां ब्रह्मपुराणनां अने विष्णुमहापुराणनां बीजां वर्णन पण जोवां रहे छे. स तथा सह गोपीभिः ररास मधुसूदनः । यथावदकोटिप्रतिमः क्षणस्तेन विनाऽभवत् ॥ ता वार्यमालाः पतिभिः पितृभिर्भ्रातृभिस्तथा । कृष्णं गोपांगना रात्रौ रमयंति रतिप्रियाः ॥ २[16] “ते मधुसूदन गोपीओ साथ रास रम्या, जेना विना अेक क्षण पण करोड वर्ष जेवी बनी. रति जेमने प्रिय छे अेवी अने पति, पिता, भाईओ बडे वारवामां आवेली ते गोप-स्त्रीओ साथे कृष्ण रात्रे आनंद करे छे."

आ वर्णन जोतां बधुमां जणाय छे के कृष्ण-गोपीना रास रात्रे रमाता. शरदनी चांदनी रात्रे रासनो प्रारंभ करवा उत्सुक अेवा कृष्णे अे चांदनी रात माणी अेवो ब्रह्मपुराण अने विष्णुमहापुराणनो उल्लेख आपणे अगाउ जोयो छे.१ [17]“भागवत" तरफथी पण आनुं समर्थन थाय छे. भगवानपि ता रात्री शरदोत्फुल्लमल्लिकाः । वीक्ष्य रन्तुं मनश्चक्रे योगमायामुपाश्रितः ॥२[18] शरदऋतुने लईने जेमां मल्लिकाओ खीली हती ते रात्रिओ जोई भगवाने पण योगमायानो आश्रय लई रमवाने मन कर्यु. भागवत अेक कृष्ण अने अनेक गोपीओनी आ रासक्रीडानां आ वर्णनो पछी भागवतमां अेक स्त्री अने अेक पुरुष अेवो जे मिश्र रासप्रकार आजे रमाय छे ते प्रमाणे अेक अेक गोपी अने वच्चे अेक अेक कृष्ण अेवी रचनाथी रास रमाता अेवुं वर्णन मळे छे. भागवतना दशमस्कन्धमां तो रासनां पुष्कळ वर्णन मळे छे :- तत्रारमत गोविन्दो रासक्रीडामनुव्रतै: । स्त्रीरत्नैरन्वित प्रीतैरन्योन्याबद्धबाहुभिः ॥ रासोत्सवः संप्रवृत्तो गोपीमण्डलमण्डितः । योगेश्वरेण कृष्णेन तासां मध्ये द्वयोर्द्वयोः ॥ प्रविष्टेन गृहितानां कण्ठे स्वनिकटं स्त्रियः ॥३[19] त्यां पछी पोताने अनुसरनारी, प्रसन्न अने परस्पर भरावेला बाहुओवाळी ते स्त्रीरत्न- गोपीओ साथे भगवाने रासक्रीडा शरू करी. गोपीओमां बब्बेनी वच्चे योगेश्वर कृष्णे दाखल थई स्त्रीओने कण्ठथी ग्रहण करी पासे लीधी. पादन्यासैर्भुजविधुतिभिः सस्मितैविलासैर्भज्यन्मध्येश्चलकुचपटैः कुण्डलैमंण्डलोलै: । स्विद्यन्मुख्य: कवररशनाग्रन्थयः कृष्णबध्वो गायन्त्वस्तं तडिते इव ता मेघचक्रे विरेजुः ॥ २[20] श्री कृष्णप्रिय गोपिकाओ पण छटाथी पग मूकवा, हाथ चलाववा, मंद हास्य साथे भ्रूकुटिओना विलासो, लचकती केड, स्तन परनां खसी जतां वस्त्रो अने गाल पर डोलतां कुंडळोथी शोभती हती. तेमनां मुख पर बहु परसेवो वळी रह्यो हतो. अंबोडाना तथा कंदोराना बंध छूटी पड्या हता, अने श्री कृष्णनां गीत गाती तेओ मेघमंडलमां वीजळीओ शोभे तेम शोभती हती. उच्चैर्वगुर्नत्यमाना रक्तकण्ठयो रतिप्रियाः । कृष्णाभिमर्शमुदिता यद्गीतेनेदमावृत्तम् ।। १[21] वळी नाचती, जातजातना रागोथी रंजित कंठवाळी, रति पर प्रीतिवाळी, अने श्री कृष्णना स्पर्शथी प्रसन्न थयेली गोपीओ उच्च स्वरे गाती हती, जेथी तेओना गीतथी आ जगत भराई गयुं हतुं. नृत्यती गायती काचित्कूजन्नूपुरमेखला । पार्श्वस्थाच्युतहस्ताम्बू श्रान्तावात्स्तनयोः शिवम् ॥ गोप्या लब्ध्वाच्युतं कान्तं श्रिय एकान्तवल्लभम् । गृहीतकण्ठयस्तदार्भ्यां गायन्त्यस्तं विजतल्हिरे ॥ ३[22]

कोई गोपी नाचती, गाती अने झमकतां झांझरो तथा कंदोराने धारण करती थाकी गई त्यारे पासे उभेला श्री कृष्णना कल्याणकारी हस्तकमलने स्तन पर मूकवा लागी. अे रीते जेओना कंठमां भगवाने हाथ नाख्या हता ओवी ते गोपीओ केवल अेक लक्ष्मीना ज पति कृष्णने पति तरीके पामीने तेमनां गीत गाती रासक्रीडा करवा लागी.

“हरिवंश"ना वर्णनने "भागवत"नुं समर्थन आवां अनेक वर्णनो “भागवत"मां मळे छे. तदनुसार अेक पुरुष अने अेक स्त्री अेवी रचनाना मंडळाकारमां आजे थता रास जेम अेक गोपी अेक कृष्ण अेवी रचनाथी रास रमाता, तेम बीजी बाजु, मेघमंडलमां वीजळी शोभे तेम गोपीओ शोभती हती अेवी उपमाथी अेक कृष्ण अने अनेक गोपीओना रास रमाता अेम जणाय छे. आ रास साथे श्री कृष्णने लगतां गीत गवातां अेम पण “भागवत”नां वर्णन कहे छे. रास साथेनां गीत कृष्ण के बलरामना पराक्रमनां वर्णननां हतां अेवा “हरिवंश"ना वर्णनने आम "भागवत"नुं सथर्थन मळे छे. “हरिवंश" रासने ललित नृत्यनो प्रकार कहे छे तेम “भागवत"मां पण हाथवगनुं सस्मित छटायुक्त हलनचलन रासमां थतुं अेम कहेवामां आवे छे। कृष्ण रासमंडळमां दाखल थई गोपीओने कंठेथी ग्रहण करता अेना वर्णन परथी जणाय छे के अे पण रासनो ज भाग हशे. आना समर्थनमां नीचे प्रमाणेनो उल्लेख जोई शकाय :- नायं श्रियोर्अङ्ग उचितान्तरतें प्रसादः स्वर्योषिता नलिनगन्धरुचां कुतोडन्याः रासोत्सवेडस्य भुजदण्डग्रहितकण्ठलवाशिषां य उद्गाद्व्रजवल्लभीनाम् ॥ १ [23] रासक्रीडाना उत्सवमां श्रीकृष्णनी भुजाअे ग्रहण करेला कंठवाळी अने तेथी ज सर्व मनोरथ पामी चुकेली आ व्रजनी गोपीओ उपर भगवाननी कृपा थई छे तेवी कृपा निरंतर अत्यंत प्रेम धरावती लक्ष्मी पर के कमळ जेवी सुगंधी तथा क्रांतिवाळी देवांगनाओं पर पण नथी, तो बीजी स्त्रीओ आवी कृपापात्र शी रीते थाय ?

“रासगोष्ठी"नो अर्थ “विष्णुपुराण"नी जेम "भागवत"मां पण “रासगोष्ठी” शब्द घणो वपरायेलो मळे छे. कर्णोत्पलालकविटंक कपोलधर्मवक्रश्रियावलयनूपुरघोषवाद्यैः गौप्पः समं भगवता ननृतुः स्वकेशस्तस्त्रजो भ्रमरगायक रासगोष्ठयाम् ॥ १[24] भमराओ रूपी गवैयावाळी ते रास-सभामां गोपीओ भगवान साथे नाचती हती त्यारे तेमना मुख पर कानमा पहेरेलां कमळोथी, केश वडे शोभता गालोथी अने परसेवानां बिन्दुओथी शोभा थई हती. तेमनां कडा, झांझर, अने घूघरीओ वाद्य रूपे थयां हतां. अने तेमना वाळमांथी पुष्पनी माळा सरकी रही हती. यस्यानुरागललितास्मितवल्गुमन्त्रलीलावलोक परिरम्मेण रासगोष्ठयाम् । नीताः स्म नः क्षणमिव क्षणदा विना तं गोप्यः कथं न्वतितरेम तमोदुरन्तम् ॥२[25] जेनुं स्नेहयुक्त सुंदर हास्य, मनोहर गुप्त वातो, विलासपूर्वक जोवुं तथा बालिंगन - आ बधुं जेमां हतुं अवी रास-सभामां आपणे अनेक रात अेक क्षणनी जेम गाळी छे. तेना विना आपणे आ लांबा विरहदुःखने ( अबाराने) शी रीते तरीशुं ? ताः किं निशाः स्मरति यासु तदा प्रियामिर्वृन्दावने कुमुदकुन्दशशांकरम्ये । रेमे कव्णच्चरणनूपुररासगोष्ठ्यामस्माभिरीडितमनोज्ञकथः कदाचित् । ३[26]

कुमुद, मोगरा, अने चंद्रथी सुंदर बनेला अेवा वृन्दावनमां पगनां झांझरोनां झणकारवाळी रासमंडळीमां जेमनी सुंदर कथाओ गवाती ते (श्रीकृष्ण) ते वेळा तेमनी प्रिया अेवी अमारी साथे जे रात्रिओमां रमता हता ते क्यारेय याद करे छे ?

या वै श्रियाऽर्चितमजादिभिराप्तकामैर्योगेश्वर्रेरपि यदार्त्मान रासगोष्ठयाम् । कृष्णस्य तद्भगवतश्चरणारविन्दं न्यस्तं स्तनेषु विजहुः परिरम्य तापम् ॥ १[27] जे अे लक्ष्मीजीअे पूजेलुं अने पूर्ण कामनावाळा ब्रह्मा वगेरे योगेश्वरोअे पण मनमां चिंतवेलुं श्रीकृष्णनुं चरणकमळ, रासमंडळीमां स्तनो पर मूकी, तेने भेटी (हृदयनो) ताप दूर कर्यो. आम "रासगोष्ठी"ना अनेक उल्लेखो मळे छे. पण तेनो चोक्कसपणे कयो अर्थ घटाववो अे नक्की समजातुं नथी. "भागवत"ना ज उल्लेखो जोईअे तो "रासगोष्ठी" अेटले रास माटे अेकत्र थयेल नर्तकवृन्द अने रीतसरनुं रास-नृत्य अेम बन्ने अर्थ थाय छे. "भमराओरूपी गवैयावाळी ते राससभामां... २[28]" “रासमंडळीमां जेमनी सुंदर कथा गवाती३[29]” अेवा उल्लेखो उपरथी "रासगोष्ठी" अेटले रीतसरनुं नृत्य अेवो अर्थ समजाय छे. ज्यारे "जेनुं स्नेहयुक्त हास्य, मनोहर गुप्त वातो"४[30] अेमां जमा थयेल नर्तकवृन्द अवो अर्थ समजाय छे. छेल्लो उल्लेख रासमंडळीमां श्रीकृष्णनुं चरणकमळ स्तन पर मूकी गोपीओ हृदयनो ताप दूर करती अेवो छे. रासमां कृष्ण गोपीओने कंठेथी ग्रहण करता अेवो उल्लेख आगळ अनेक वार मळ्यो छे. पण अहीं उल्लेखायेल प्रकार रासनो भाग हतो वो उल्लेख नथी मळतो.

"पार्श्वस्थाच्युतहरतावजं श्रान्ताधत्स्तनयोःशिवम्"१[31] अेवो जे उल्लेख छे तेमां पण गोपीओ थाकती त्यारे पासे ऊभेला कृष्णना कल्याणकारी हस्तकमलने स्तन पर मूकवा लागी ओम कह्युं छे. “पासे ऊभेला कृष्ण” अेवा शब्दप्रयोग परथी लागे छे के रासक्रीडामां तेनो समावेश नहीं थतो होय. ते ज प्रमाणे "भागवत"ना पण आपणे जोयेला छेल्ला उल्लेखमां “रासगोष्टी" अेटले रास माटे जमा थयेल नर्तकवृन्द अेवो अर्थ लेवो जोईअे. आम “रासगोष्ठी” शब्द नर्तकवृन्द अने नृत्यप्रकार अेवा बन्ने अर्थमां वपरायो छे, अेम कही शकाय. नर्तकवृन्द अेटले के, रास माटे विशिष्ट रीते गोठवाईने ऊभेला रासकारो, तेमनो विशिष्ट बन्ध अेवो अर्थ करवो जोईअे.

हेमचन्द्रनुं छंदोनुशासन “छंदोनुशासन"मां हेमचन्द्र “रास” छंदनी व्याख्या आप्या बाद उदाहरणमां नीचे प्रमाणेनुं पद्य आपे छे :- सुणिवि वसंति पुरपोंढपुरंधिहं रासु, सुमरिवि लडह हूओ तकखणि पाहिउ निरासु२[32] अेम वसंत ऋतुमां रास रमाता ऐम कहे छे. पुराणोमां शरदनी चांदनी रात्रे रास रमाता अेवा उल्लेख मळे छे तेना अनुसंधानमां आ उल्लेख नोंधपात्र छे.

हल्लीसक अने रासक “हरिवंश"मां जेम “हल्लीसक" ने "रासक" लगभग अेकसरखा नृत्यप्रकार हता अेम अनुमान तारवी शकाय अेवां वर्णनो मळे छे तेम बीजा पण अेवा ज केटलाक उल्लेख नाट्यशास्त्रना ग्रंथोमांथी मळी आवे छे. आ संबंधमां १२मा सेकामां थई गयेला रामचन्द्र-गुणचंद्रनी "नाट्यदर्पण"मांनी व्याख्या अने अे ज सैकाना शारदातनयनी "भावप्रकाशन"मांनी व्याख्या सरखावी जोवा जेवी छे. नाट्यदर्पण “नाट्यदर्पण"मां हल्लीसकनी व्याख्या आ प्रमाणे छे :- ( यन्मण्डलेन ) यन्मण्डलेन१[33] नृतं स्त्रीणां हल्लीसकं तु तत्प्राहुः । तत्रैको नेता स्याद्गोपस्त्रीणामिव मुरारिः ॥२[34] स्त्रीओ वडे ऊरू, जंघा अने बन्ने पादना चलन वडे नर्तन करवामां आवे छे ते हल्लीसक कहेवाय छे. गोपस्त्रीओमां ज़ेम कृष्ण तेम तेमां अेक नेता होय छे. ज्यारे शारदातनयनी रासकनी व्याख्या आ प्रमाणेनी छे :- मण्डलेनतु यन्नृतं यद्रासकमिति स्मृतम् । एककस्तस्य नेता स्याद्गोपस्त्रीणां यथा हरि ॥३[35] ऊरू, जंघा अने बन्ने पादना चलन वडे नर्तन थाय ते रासक कहेवाय छे. गोपीओमां हरि तेम तेमां अेक नेता होय छे.

आम हल्लीसक अने रासकनी आ बने व्याख्याओ बंने प्रकारनां लक्षण तद्दन अेकसरखां आपे छे. अेटले १२मा सैकामां रास अने हल्लीसक वच्चेनो भेद लगभग नहिवत् बन्यो हशे अेवुं अनुमान करी शकाय. आ पहेलां ११मा सैकामां थई गयेल भोजदेव तेना "सरस्वतीकण्ठाभरम्"मां कहे छे के :- तदिदं हल्लीसकमेव तालबंधविशेषयुक्तं रास अेवेत्युच्यते ॥१[36] विशेष तालबंधयुक्त हल्लीसक ते रासक अेम भोजदेवनुं कहेवुं छे. भोजदेवे हल्लीसकनी व्याख्यामां कह्युं छे के :- मण्डलेन तु यत्स्त्रीणां नृत्यं हल्लीसकं तु तत् । तत्र नेता भवेदेको गोपस्त्रीणां हरियथा ॥२[37]

ऊरू, जंघा अने बंने पादना चलन वडे स्त्रीओ द्वारा नर्तन थाय ते हल्लीसक - गोपस्त्रीओमां जेम हरि तेम तेमां अेक नेता होय. आम ११मा सैकाना भोजदेव अने १२मा सैकाना रामचंद्र - गुणचंद्रनी हल्लीसकनी व्याख्याओमां अने १२मा सैकाना शारदातनयनी रासकनी व्याख्यामां बने नृत्यप्रकारनां लक्षण तद्दन सरखां आपवामां आव्यां छे. भोजदेव हल्लीसकनी सरखामणीमां रास विशेष तालबंधयुक्त प्रकार हतो अेम कहे छे. अेटले तेना समयमां हल्लीसक तथा रासक वच्चे आटलो तालनो फेर हतो, अे सिवाय बंने प्रकार वच्चे खास फरक न हतो अेम लागे छे. पण त्यार पछी शारदातनय अने रामचंद्र - गुणचंद्रनी अनुक्रमे रासक अने हल्लीसकनी व्याख्या तद्दन सरखी ज छे. अेटले भोजदेवना समयमां बंने प्रकार वच्चेनो जे थोडो भेद हतो ते तेमना समयमां तद्दन घसाई गयो हशे अने बंने सरखा ज प्रकारनां नृत्यो तरीके स्वीकारातां हशे ओम जणाय छे.

अभिधानचितामणिकोश अने काव्यानुशासन हेमचंद्र “अभिधानचिंतामणिकोश"मां "मण्डलेन तु यन्नृतं स्त्रीणां हल्लीसकं हि तत्"१[38] अेम कहे छे. ज्यारे "काव्यानुशासन"मां कहे छे के :- मण्डलेन तु यन्नृतं हल्लीसकमिति स्मृतं । एकस्तत्र तु नेता स्याद्गोपस्त्रीणां यथा हरिः ॥ अनेक नर्तकीयोज्यं चित्रताललयान्वितम् । आचतुः षष्टियुगलाद्रासकं मसृणोद्धतम् ||२[39] ऊरू, जंघा अने बंने पादना चलन वडे जे नर्तन करवामां आवे ते हल्लीसक कहेवाय छे. गोप-स्त्रीओमां हरि तेम तेमां अेक नेता होय छे. अनेक नर्तकीओ वडे, ६४ सुधीनां युगलोथी योजातुं अनेक ताल अने लययुक्त कोमळ तथा उद्धत नृत्य ते रासक.

पुराणो अने हेमचन्द्र आम आ बंने प्रकारनां नृत्य ऊरू, जंघा अने बने पगना चलन वडे करवामां आवे छे, अनेक स्त्रीओ अने अेक पुरुष तेमां भाग ले छे. अेटला मुद्दा बाबत शारदातनय, भोजदेव, रामचंद्र, गुणचंद्र अने हेमचंद्र सहमत छे. हेमचंद्रनी रासकनी व्याख्या मुजब रासकमां अनेक ताल अने लय होय छे तथा ते नृत्य कोमळ तथा उध्धत बंने प्रकारनुं होय छे. पुराणोना उल्लेखमां रासकने ललित नृत्यनो प्रकार ज गणवामां आव्यो छे अे आपणे आगळ जोयुं छे. हेमचंद्रनी व्याख्या मुजब रासकमां ६४ सुधीनां युगलोमां गोपी भाग लई शके छे. पुराणनां वर्णनो अनुसार गोपीओ साथे कृष्ण भाग लेता होय अेवा रासनृत्य उपरांत अेकली गोपीओ रास रमती अेवो पण रासनृत्य प्रकार हतो. तेम हेमचंद्र हल्लीसकनी जेम रासकमां पुरुष भाग ले अे आवश्यक गणता नथी.

रासक विषे शारदातनय शारदातनय रासकनी जुदी जुदी व्याख्याओ आपे छे. अनेक नर्तकीओ वडे योजायेल ६४ सुधीनां युगलोथी रमातुं कोमळ - उद्धत प्रकारनुं अने अनेक ताल - लयथी युक्त अने ऊरू, जंधा तथा बंने पादना चलन वडे थतुं नर्तन ते रासक कहेवाय छे, ओवी हेमचन्द्र१[40] जेवी व्याख्या शारदातनय पण आपे छे. तेमां पण गोपीओना जेम हरि तेम अेक नेता होय छे. मण्डलेन तु यन्नृतं तद्रासकमिति स्मृतम् । क्षेत्रकस्तस्य नेता स्याद्गोपस्त्रीणां यथा हरिः ॥ अनेक नर्तकीयोज्यं चित्रताललयान्वितं । आचतुरष्ठीयुगलाद्रासकं मसृणोद्धतम् ॥ २[41] अहीं शारदातनय पण रासकने कोमल अने उद्धत बंने प्रकारनुं नृत्य गणावे छे. पण आ पहेलांना उल्लेखोमां रासकने ललित नृत्य गणाववामां आव्युं छे. तेमां पराक्रमगाथा, वीररसनां गीतो गवातां अेम “हरिवंश" कहे छे. पण अ साथेनुं नृत्य “उद्धत" प्रकारनुं पण होई शकतुं अेवो उल्लेख नथी. आम, शारदातनयना समय सुधीमां “उद्धत" प्रकारनो पण रासनृत्यमां उमेरो थयो होवो जोईअे. युगल अेटले स्त्री-परुष के अेकली नर्तकीओनी बब्बेनी जोडी ते क्यांय स्पष्ट नथी.

शारदातनय रासनी बीजी बे व्याख्या पण आपे छे : लब्ध्वा दुग्धमहोदधौ सुरगणैः पीत्वामृतं यस्तदा । पिण्डीशृङ्खलिकाविशेषविहितो युक्तो लताभेद्यकैः ।। चित्रातांद्यविचित्रितैर्लययुतो भेदद्वयालंकृतः । चारीखण्डसुमण्डलैरनुगतः सोऽयं मतो रासकः ॥૧[42] क्षीरसमुद्रमाथी अमृत मेळवी ते पीने देवोअे लता - भेद्यक जेवा नृतप्रकारो तेम ज पिंडी - शृंखलिकाथी युक्त अने जुदां जुदां वाद्य तथा लय - अेवा बे भेदथी अलंकृत, चारी खंड तथा मंडल जेमां आवतां होय अेवुं ( नृत्य ) कर्युं ते रासक कहेवाय. आम आ व्याख्या रासनृत्यने वाद्यनो साथ रहेतो, ते नृत्य लय-बद्ध हतुं, तेमां भाग लेनाराना जुदा जुदा प्रकारना हलनचलनने अवकाश हतो अेवा रासना बीजा उल्लेखोमां आवश्यक गणवामां आवेलां अंगोनुं समर्थन करे छे.

शारदातनयनी त्रीजी व्याख्या आ प्रमाणे छे : षोडश द्वादशाष्टौ वा यस्मिन् नृत्यन्ति नायिका: पिण्डी बन्धादिविन्यासे रासकं तदुदाहृतम् ॥ १[43] १६, १२, के ८ नायिकाओ पिण्डीबंध आदि विन्यासथी नृत्य करे ते रासक कहेवामां आवे छे देवी व्याख्या शारदातनेय आपे छे. रामचंद्र गुणचंद्र पण आ ज व्याख्या आपे छे. २ [44] आ उपरांत शारदातनय रासक अेक उपरूपक छे अेम गणावती व्याख्या पण आपे छे. पण आ व्याख्या आपणे पाछळथी जोईशुं. ३[45]

बेमभूपाल शारदातनय अने रामचंद्र अने गुणचंद्रनी आ छेवटनी रासकनी व्याख्या जेवी ज व्याख्या वेमभूपाल (इ.स. १४००)४[46] आपे छे. पिण्डयादिवन्वलीलाभि: षोडश द्वादशाष्ट वा । यत्र नृत्यन्ति नर्तक्यः तद्रासकमुदाहृतम् ॥५[47] पिण्डीबंध वगेरे क्रीडाथी १६, १२ के ८ नर्तकीओ नृत्य करे ते रासक कहेवाय छे. रासमां भाग लेनार नर्तकीओनी संख्या विषे आ बधी व्याख्याओ अेकमत छे. हेमचंद्रनी जेम शारदातनय, रामचंद्र - गुणचंद्र अने बेमभूपालनी आ व्याख्यामां नर्तकीओनी साथे पुरुष नर्तक होवो जरूरी गणावायुं नथी. "हरिवंश"मां पण अेकली गोपीओना नर्तननुं वर्णन आवे छे अे आपणे आगळ जोयुं. आगळ हेमचंद्र૧[48] अने शारदातनय२ अेक व्याख्यामां “आचतुः षष्टीयुगलाद्” अेम ६४ सुधीनां युगलोथी रासक रमाय ओम कहे छे. ज्यारे अहीं १६, १२ के ८ अेम कही वधुमां वधु १६ अने ओछामां ओछी ८ नर्तकी रासमां भाग लई शके अेम भाग लेनारनी संख्यानी चोक्कस मर्यादा बांधी छे.

हर्षचरित अने शंकर

"हर्षचरित"मां "रासरसरत्नासारब्धनर्तनारंभारभटी नटाः" अेवुं वर्णन आवे छे ते समजावतां तेना टीकाकार शंकर रासनी व्याख्या आपे छे.

अष्टौ षोडशद्वात्रिशद्यत्र नृत्यन्ति नायिका: । पिण्डीबंधानुसारेण यन्नृतं रासकं स्मृतम् ॥ ३[49] ८, १६ के ३२ नायिकाओ पिंडीबंध प्रमाणे नृत्य करे ते रासक कहेवाय. आम शंकरना मते वधुमां वधु ३२ नर्तकीओ रासमां भाग लई शके. 'अस्येव तु हल्लीशकाया विशेषा:' अेम रासनुं आ लक्षण आप्या बाद शंकर कहे छे.

दांडियारासने मळतो क्रीडाप्रकार त्यार पछी तो रासना आवा अनेक उल्लेखो मळे छे. अने अत्यारे आपणे दांडियारास तरीके ओळखीअे छीअे अेवा क्रीडाप्रकारनो उल्लेख अने तेनी विगतो पण मळवा मांडे छे. इस्वीना ९मा सैकानो राजशेखर "कर्पूरमंजरी" नामना तेना प्राकृत नाटकमां दंडरासोनुं वर्णन करे छे :-

मुताहलिल्लाहरणोच्चआओ लासावसाणे तलिंणसुआओ सिंचन्ति अण्णाण्णमिभीओ पच्छ जन्त जलेणं मणिभाईणहिं इदो अ परिब्लमन्तीओ विचित्तबंधं ईमार्ओ दोसोलह णच्चणीओ खेलन्ति तालाणु दप्पगाओ तुहंगणे दीसदि दण्डरासो समंससीसा समबाहुत्था रेहाविसुध्धा अवरार्ओ देन्ति पंतिहि दोहिं लअतालबंधं परोप्परं साहिमुही चलन्ति मोत्तूण अण्ण मणिवारआईं जन्तेहि धारासलिलं खिवन्ति पडन्ति ताओ सहिआणमंगे मणेभूयो वारूणबाणचंग ईमा मसीकज्जलकाकाआ तिकण्डचावार्ओ विलासिणीओ पुलिन्दरुवेण जणस्स हासं समोरपिच्छाहरणा कुणन्ति हत्थे महामंसबली धराओ हुंकारकेक्कारखा रउदा णिसाअरिणं पडिसीसअेहिं अण्णा मसाणामणिअं कुणन्ति का - वि वाईदकराल हुडक्का मन्दमठ्ललअेणभिअच्छि दोल्लदार्हि परिचाडिचलाहिं चल्लिकम्मकरणरिम पअट्टां किंकिणिकदरणंझणसदं कण्ठगी दिलअजन्तिदतालं जोईणीवलअणच्चणकेलिं तालणेउरखा विरखन्ति कोदुहल्लजंगमवेसा वेणुवादणपरा अवराओ कालवेसवसभामिअलोआ ओसरन्ति पणमन्ति हसन्ति १[50]

(अनुवाद) विदुषक :- जुओ नृत्यने अंते आछां पातळां वस्त्राभरणमां अने मौक्तिकनां उत्तम आभूषणो धारण करीने आ कुमारिकाओ अेकबीजा उपर पाणीनी छोळो उडाडे छे, अने आ पाणीनी सेरोने-फुवारामां ऊडती जळधाराओने रत्नजडित पात्रोमा तेओ झीली ले छे. हाथपगना वैविध्यभर्या हावभावथी अने आकर्षक ढबथी आ बत्रीसे नृत्यांगनाओ अेक वर्तुलाकारमां घूमी रही छे. अने तेमां तेओ संगीतने ताले ताले अनेक वार फुदडीओ फरे छे. पटांगणमां ध्वजनृत्य देखाय छे. खभा अने मस्तक तेम ज हाथ अने मस्तकने पण समांतरे राखी इतर नृत्यांगनाओ बब्बे बब्बेनी हारमां पण अकबीजानी सामसामे हारबंध ऊभी रहीने स्पष्ट सुरेख नृत्यदर्शन करावे छे. अने अे रीते चल्लीनृत्यनो ताल पखवाजना ताल अने लयने आधारे रजू करे छे. अने बीजी नृत्यांगनाओ रत्नजडित जळपात्रोने बाजु मूकी दईने जळधारामांथी हाथ वडे ज पाणी उडाडे छे. जे मात्र जळधारा ज होवा छतांये पुष्पधन्वाना बाण जेवी मित्रोने सोंसरवी नीकळी जाय छे. वळी अहीं आज जेमने अंगे अंगे काळा घोर काजळनो लेप कर्यो छे तेमज जेमणे त्रिविध धनुष्य धारण कर्या छे अने जेओ मयूरपिच्छोथी सुशोभित छे अेवी आ चंचळ ललनाओ जंगली पर्वतारोहकनी जेम हरे फरे छे (अेटले) तेओ आ रीते प्रेक्षकोने मनोरंजन पूरुं पाडे छे. अने केटलीक तो वळी हाथमां मनुष्यना मांसनु अर्ध्य राखी अने अनेकविध भयंकर चिचियारीओ ने निःश्वासो नाखती तेम ज ध्रूजती निशाचरी डाकिणीओनो स्वांग सजीने श्मशानभूमिनां दृश्यो रजू करे छे. ज्यारे मृदंगना थापाना धुजारी वछुटावता अवाज करतां अने बीजी ज पळे तंबुरना शांत अने रोचक अवाज साथे पण पोतानी हस्तलतिकाने वाराफरती फेरवती अेक मृगनयनीअे तो चल्लीनृत्यनो आरंभ कर्यो. बीजी ललनाओ सौष्ठवभर्युं तालबद्ध नृत्य करी रही छे. तेमना पगनां घूंघरूनो निनाद कंठ्यसंगीतना लय अने ताल साथै मेळ लेतां झांझरना रणकार साथै सुमेळ साधे छे. अकचित्ते बंसीवादन करती इतर नृत्यांगनाओ जेमनां वस्त्रो आतुरता (चपळता) अंगे फफडे छे अने जेओ पोताना श्याम वस्त्रपरिधानथी लोकोने हसावे छे तेओ व्यासपीठ परथी पाछळ हठती सस्मित नमन करे छे.


रासना त्रण भेद शारदातनय ज रासनी जुदी जुदी व्याख्याओ आपवा सामे तेना त्रण भेद देखाडे छे :- लता रासकनाम स्यात्तत्रेयां रासकं भवेत् । दण्डरासकमेकन्तु तथा मण्डलरासकम् ॥ १[51] आम तेना मते लतारास, दण्डरास अने मंडळरास अेवा त्रण प्रकारना रास छे. दण्डरासक के दांडियारासनो आ पहेलवहेलो उल्लेख छे.

कुंभकर्ण त्यार पछी १५मा संकाना "संगीतमीमांसा"कार कुंभकर्ण पासेथी दंडरासकनी घणी विगतो आपणने मळे छे. दंडरासकमां उपयोगमां लेवाता दांडियानुं माप कुंभकर्ण आपे छे अने ८, १६, ३२ के ६४ सुंदरीओ आ नर्तन राजा समक्ष करे अेम कहे छे. यत्र राज्ञः पुरो नार्यः स त्रिस्त्रोऽष्ठाथ षोडश । द्वात्रिंशद्वा चतुष्वष्टिराधायं करपंकजेः ॥ दण्डो सुवृत्तौ मसृणौ सुवर्णादिविनिर्मितौ । अरत्नसंमितौ देर्ध्यै स्थौल्येन्तंगुष्ठसंमितौ ॥ अय देशानुरागेण गृहीत्वा दण्डचामरौ | दण्डक्षोमांचितौ यद्धाच्छूरिकादण्डकावथ ।। चतुर्भि: पंचभिर्घातैर्यदा खण्डगुहारजैः । सशब्दं घातमेर्दैश्च युग्मी भूय वियुज्य च ॥ अग्रतः पृष्ठतो वापि पार्श्वसंगतयापि च । घातभैदान्वितन्यन्त्यश्चारीभमरिकादिभिः ॥ चित्रैस्तस्योपसत्येव मुहुर्मण्डलसंस्थया । लयतालानुगं यत्र प्रनृत्यन्ति वरांगनाः ॥ तदुक्तं नृततत्वज्ञैर्दण्डरासकनर्तनम् ॥१ [52]

जेमां राजा समक्ष ८, १६, ३२ के ६४ सुंदरी स्त्रीओ करकमळमां सारी रीते गोळ, सुंवाळा सुवर्ण वगेरेना वनावेला; लंबाईमां अेक हाथ, स्थूळतामां अंगूठाना प्रमाणना दांडिया राखीने तथा देशानुसार दंडचामर, मलमलयुक्त दंड के छूरिकादंड ग्रहण करीने ४ के ५ खडगप्रहार जेवा घाथी सशब्द बीजा प्रकारना घाथी पण जोडबंध थईने अने छूटा पडीने आगळ, पाछळ के पडखे संगीत साथे चारी, भ्रमरी वगेरे साथे घातभेद रचती, पगना विविध प्रकारना चलनथी "मंडल" रचीने वारंवार लय तथा तालयुक्त नर्तन करे छे, तेने नृत्यविशारदो दंडरासक नर्तन कहे छे. आम कुंभकर्णना कहेवा प्रमाणे आ दंडरासकमां :- १. ८, १६, ३२ के ६४ सुंदरीओ भाग लई शकती. २. तेमना हाथमां गोळ, सुंवाळा सोनाना के अेवा लंबाईमां अेक हाथ, अंगूठा जेटला जाडा दांडिया रहेता ३. देशानुसार दंडचामर, मलमलयुक्त दंड के छूरिकादंड पण रहेता . ४. तेमां जोडबंध थवानी अने छूटा पडी पाछुं आगळ, पाछळ के पडखे थवानी तेम ज साथे दांडियाना प्रहार करता जवानी क्रिया थती. ५. आ रास साथे पार्श्वसंगीत रहेतुं. ६. आ नृत्य लय तथा तालयुक्त हतुं. ७. चारी, भ्रमरी वगेरे साथे घातभेद रचतां ऊरू, जंघा अने बंने पगनां विविध प्रकारनां हलनचलन वडे मंडल रचवामां आवतां. ८. राजानी समक्ष आ नृत्य थतुं. नृत्यमां भाग लेनारनी संख्या बाबतमां अने चारी वगेरेथी युक्त आ नृत्य हतुं, तथा शरीरनां अमुक अंगोना हलनचलनथी तेमां जातजातनी रचनाओ करवामां आवती अे बाबतोमां आ वर्णन शारदातनयना वर्णनने मळतुं आवे छे. जो के, शारदातनय ८, १२ के १६ नर्तकीओ नृत्यमां भाग लई शके अने ६४ सुधीनां युगलो भाग लई शके अेम बे वात कहे छे. तो वेमभूपाल ८, १६, ३२ नर्तकी भाग लई शके अेम कहे छे तेने बदले कुंभकर्णना कहेवा मुजब ८, १६, ३२ के ६४ नर्तकीओ आमां भाग लई शकती. वळी, रासमां अेक पुरुष नर्तक होवो जोईअे अेम कुंभ पण नथी कहेतो. पार्श्वसंगीत कंठ्य हतुं के वाद्य हतुं ते स्पष्ट नथी. पुराणना उल्लेख प्रमाणे बंनेना साथथी रासनृत्य थतुं. कुंभनुं आ वर्णन आपणा अत्यारना दांडिया रासने घणुं मळतुं आवे छे. अत्यारनी जेम तेमां वखतोवखत अभिनयमां फेरफार करवामां आवता अेम पण जाणी शकाय छे.

पुण्डरिक विठ्ठल कुंभ पछी १६मा सैकाना अंत सुधीमां थई गयेला पुण्डरिक विठ्ठल पण दंडरासकनुं वर्णन आपे छे. "नृत्यनिर्णय" नामना तेमना अप्रकट ग्रंथमां तेमणे दंडरास अने रासनृत्यनी आ प्रमाणेनी व्याख्या आपी छे : असकृन्मंडलीभूय गीतताललयानुगम् । तदोदितं बुधैर्दण्ड - रासं जनमनोहरम् ॥ दण्डेर्विना कृतं नृत्यं रासनृत्यं तदेवहि ॥ ૧[53] लोकोने आनन्द आपे तेवुं वारंवार मंडळाकारमां गोठवाई गीत-ताल-लयथी युक्त नृत्य तेने विद्वानो दण्डरास कहे छे. दण्ड विनानुं आवुं नृत्य ते रास-नृत्य. कुंभकर्ण तेना वर्णनमां दंडरास साथ पार्श्वसंगीत रहेतुं अेम कहे छे तेथी आगळ वधी आ रास साथे गीत गवातुं अेम अहीं स्पष्ट जाणवा मळे छे.

“राससर्वस्व" "राससर्वस्व"मां मळतुं रासनुं वर्णन आ बधाथी जरा जुदा प्रकारनुं छे:- स्त्रीभिश्च पुरुषैश्चैव धृतहस्तैः क्रमस्थितैः । मंडले क्रियते नृत्यं स रासः प्रोच्यते बुधैः ||१[54] क्रममां अने हाथ पकडीने ऊभेलां स्त्री अने पुरूषो वडे मंडलाकारमां नृत्य करवामां आवे तेने विद्वानो रास कहे छे.

बिल्वमंगल आ वर्णन बारमा-तेरमा सैकामां थई गयेला मनाता परमहंस परिव्राजकाचार्य बिल्वमंगल स्वामीअे "रासाष्टक"मां करेला वर्णनने मळतुं आवे छे अेम श्री मंजुलाल मजमुदार कहे छे. २[55]

अंगनामंगनामन्तरे माधवो । माधवं माधवं चान्तरेणांगना । इत्थमाकल्पिते मण्डले मध्यगः । संजगी वेणुना देवकीनन्दनः । स्त्रीओनी वच्चे माधव अने माधवनी बच्चे स्त्री अेम रचायेल मंडळाकारमां वच्चे रहेला देवकीनन्दन कृष्णे वेणु वगाडी. आ बंने लतारासनां वर्णनो छे. शारदातनय रासकना लतारास, दंडरास अने मंडलरास अेवा त्रण भेद बतावे छे तेम “भरतकोष"मां वेशभूपालना मते रासकना रासक, नाट्यरासक अने चर्चरी अेवा त्रण भेद बताववामां आव्या छे.१[56] आ बधा उल्लेखो परथी जणाय छे के प्राचीन गुजरातीना साहित्यमां राससाहित्य रचातुं थयुं ते पहेलां अनेक वर्षो अगाउथी "रास” नामनो अेक प्रकार प्राकृत, संस्कृत, पौराणिक वगेरे साहित्यमां जाणीतो हतो. परंतु ते साहित्यप्रकार तरीके नहीं - अक नृत्यप्रकार तरीके. अमुक संख्यामां स्त्रीओ अेकली अथवा स्त्रीओ अने पुरुषो साथे मळीने मंडळाकारे गोठवाई अने शरीरनां अंगोना हलनचलन वडे ताळी लई अथवा दांडियाना घात साथे ताल अने लय प्रमाणे जे नृत्य करे ते रास, अने आ रासने घणुंखरुं गायन अने वादननो साथ रहेतो अेम आ बधां वर्णनो परथी जणाय छे.

रासकस्य प्रभेदास्तु रासकं नाट्यरासकं । चर्चरीति त्रयः प्रोक्ताः...

रास : एक उपरूपक पण संस्कृत ग्रन्थोमांना रासना आ प्रकारना उल्लेखो साथे बीजा उल्लेखो पण मळी आवे छे जे रासने उपरूपक तरीके ओळखावे छे.

अग्निपुराण अग्निपुराणना ३३८मा अध्यायमां आ प्रकारनो उल्लेख आवे छे. जो के, विद्वानोना मते आ पुराण पाछळनी रचना छे. तेमां "ध्वन्यालोक"मांनां अवतरणो छे. अने भोजना शृङ्गाररसना निरूपण साथे आ पुराणनुं मळतापणुं छे अेम विद्वानो कहे छे. आम "अग्निपुराण"ना आ उल्लेखने केटलुं वजन आपवुं ते जोवानुं रहे. "अग्निपुराण"नो आ उल्लेख नीचे प्रमाणे छे :- अथ नाटकनिरूपणम् ।। अग्निरुवाच ॥ नाटकसप्रकरणं डिम इहामृगोऽपि वा । ज्ञेयः समवकारश्च भवेत्प्रहसनं तथा । व्यायोग भाणवीक्षयंकत्रोटकान्यथनाटिका ॥ सदुकं शिल्पकःकर्णा अेको दुर्मल्लिका तथा ।। प्रस्थानं भाणिका भाणीगोष्टी हल्लीशकानि च ॥ काव्यं श्रीदितं नाट्यरासकं रासकं तथा । उल्लाप्यकं प्रेअणंच सप्ताविंशतिरेव तत् ॥१[57] धनिक "आम अग्निपुराण नाटकनिरूपणमां आ २७ प्रकार गणावे छे. धनंजयना “दशरूपकम्” परनी धनिकनी टीका "दशरूपकावलोक"मां सहु पहेलो उपरूपकनो उल्लेख मळे छे. तेमां तेणे सात उपरूपक आप्यां छे. धनिके तेनी पहेलांना कोई ग्रंथकारनुं अवतरण आप्युं छे : डोम्बी श्रीगदितं भाणो भाणी प्रस्थानशसका: । काव्यं च सप्तनृत्यस्य भेदाः स्युस्तेऽपि भाणवत् ॥ २[58]

हेमचन्द्र अने वाग्भट उपरूपकोनो उद्देश अनुकूळ अभिनय द्वारा अमुक भाव जगाववानो होय छे तेथी तेमने नृत्य तरीके ओळखाववामां आवे छे. आम धनिक पहेलांनो उपरूपकोनो आ उल्लेख छे अने आपणने मळतो ते पहेलवहेलो उल्लेख छे. "अभिनवभारती"मां अभिनवगुप्त ९ प्रकार गणावे छे. पण अेकेने उपरूपक तरीके ओळखावतो नथी. ते पछी "शृङ्गारप्रकाश"मां भोजदेव १४ उपरूपक गणावे छे. हेमचन्द्र अने वाग्भट बन्ने रासकने अनुक्रमे रागकाव्य अने गेयरूपक तरीके ओळखावे छे. काव्यना श्राव्य अने प्रेक्ष्य अवा बे प्रकार जणावी, तेमांथी पाछा प्रेक्ष्य काव्यना पाठ्य अने गेय अेवा बे भेद दर्शावीने हेमचन्द्र गेय प्रेक्ष्य काव्यना ११ प्रकार गणावे छे. गेय डोमिक्का भाग प्रस्थान शिंगक भाणिका प्रेरण रामाक्रीडहल्लीसक रासक गोष्ठी श्रीगदित रागकाव्यादि || पदार्थाभिनय स्वभावानि डोम्बिकादीनि गेयानि रूपकाणि चिरंतनैरुक्तानि ॥१[59] अेम कही हेमचन्द्र “काव्यानुशासन"मां आ ११ प्रकारो गेय छे, रागकाव्यो छे अने अभिनेय छे ओम कहे छे. ज्यारे वाग्भट आ ज प्रकारोने गेयरूपक कहे छे. वाग्भट “काव्यानुशासन"मां आ प्रकारो आ प्रमाणे गणावे छे. डोम्बिका भाण प्रस्थान माणिका प्रेरण शिंगकु रामाक्रीड हल्लीसक श्रीगदित | रासक गोष्टी प्रभृतीनि गेयानि - पदार्थाभिनय स्वभावानि डोम्बिकादिनि गेयानि रूपकाणि चिरंतनैरुक्तानि ॥ २[60]

आम आ प्रकारोनी गेयता अने अभिनेयता विषे हेमचन्द्र अने वाग्भट सहमत छे. १४मा सैकानो विश्वनाथ पण नाटिका त्रोटकं गोष्टीसटट्कं नाट्यरासकं । प्रस्थानोल्लाप्यकाव्यानि प्रेक्षणं रासकं तथा ।। संलापकं श्रीगदितं शिल्पकंच विलासिका । दुर्म्मल्लिका प्रकरणी हल्लीशो भाणिकेति च ॥ अष्टादश प्राहुरणकाणिमनीषिणः । विना विशेषं सर्व्वेषां लक्ष्य नाटकवन्मतं ।। २[61] अेम अढार रूपक गणावे छे. शारदातनय "नाट्यदर्पण"मां १४ उपरूपक गणाववामां आव्यां छे. आम रूपकोनी संख्या बाबत भिन्नता छे. रूपकोने लगती वधु विगत तो शारदातनय शुभंकर अने विश्वनाथ आपे छे. शारदातनय रासक नामना रूपकनी व्याख्या आ प्रमाणे आपे छे :- अथ रासकमेकांक सूत्रधारेण वर्जितम् । सुश्लिष्ट नान्दीयुक्तंच पंचपात्रं त्रिसन्धिकम् ॥ पूर्ण भाषाविभाषाभिः कैशिकीभारतीयुतम् । वीथ्यंगमण्डितं मुख्यनायकं ख्यातनायिकम् ॥ गर्भावमर्शशून्यं च कलापोदेशभूषितम् । उदात्तभावविन्यासभूषितं सोत्तरोत्तरम् ॥ एवं लक्षणमुदिष्टं रासकस्यात्र कैश्चन । इति नानामतेनोक्ता नृत्यभेदाः प्रदर्शिताः ॥ १[62] रासकनी आ व्याख्या तेने संपूर्ण उपरूपकनुं स्वरूप आपे छे. आ उपरूपक अेक अंकनुं होवुं जोईअे, तेमां सूत्रधार न होय, सरस नान्दी, पांच पात्रो, त्रण संधि, जुदी जुदी भाषाओ, कैशिकी तथा भारती वृत्ति, वीथी, अंग, मुख्य नायक, विख्यात नायिका, उदात्त भाव तेमां जोईअे.


विश्वनाथ विश्वनाथ पण "साहित्यदर्पण"मां आ ज प्रमाणेनी व्याख्या आपे छे. रासकं पंचपात्रं स्यान्मुखनिर्व्वहणान्वितं । भाषाविभाषाभूयिष्ठं मारतीकैशिकीयुतं । असूत्रधारमेकांकं सवीथ्यंगं कलान्वितं । श्लिष्टनान्दीयुतं ख्यातनायिकं मुख्यनायकं । (मूर्ख) उदात्तभावविन्याससंश्रितं चोत्तरोत्तरं । इह प्रतिमुखं सन्धिमपि केचित्प्रचक्षते ॥ २[63] शारदातनय "त्रिसन्धिकम्" अेटलुं ज कहे छे. तेने बदले विश्वनाथ अे अथवा त्रण संधि होय अेम कहे छे. अने साथे संधिनां नाम पण आपे छे.

शुभङ्कर आ साथे “संगीतदामोदरजी” तथा "हस्तमुक्तावलि"ना कर्ता शुभङ्करनी व्याख्या पण जोवा जेवी छे :- सूत्रधारविहीनं तु स्यादेकांक तु रासकम् । उत्कृष्ठनान्दीसंयुक्तं कैशिकीभारतीयुतम् ॥ त्रिसन्धिकं पंचपात्रं युक्तं भाषाविभाषयोः । वीध्यन्तमण्डितं मुख्यनायिकं ख्यातनायकं ॥ मूर्खोपदेशसंरभं गर्भामर्शविवर्जितम् । उदात्तभावविन्यासमुत्तरोत्तर संश्रितम् । केचिद्वदन्ति गोपानां क्रीडारासकमित्यपि ॥ (भरतकोष)

शारदातनय हल्लीसक : उपरूपकनो प्रकार हल्लीसकनी बाबतमां पण शारदातनय अने विश्वनाथना समयमां आवी ज परिस्थिति प्रवर्तती लागे छे. कारण के, रासकने उपरूपकनुं स्वरूप आपती व्याख्यानी जेम हल्लीसकने पण आवुं ज स्वरूप आपती व्याख्या पण तेओ आपे छे. अथ हल्लीसकं सप्तनवाष्टदशनायिकम् । सानुदात्तोवित चेकांकं कैशिकीवृत्तिभूषितम् ॥ एकांकं वा भवेद्वयंक विमर्शमुखसंधिमत् । सगेयलास्यं यतिमत्रवण्डताललयान्वितम् । एक विश्रामसहितं यथा स्यात्केलिरैवतम् । ललितादक्षिणाः ख्याता नायकाः पंचषाऽपि ॥ विप्रक्षत्रवणिक्पुत्रास्सचिवायत्तसिद्धयः । द्वयंके मुरवावमर्शे स्त एकांके गर्मनिर्गमः ॥१[64] हल्लीसकमां आ व्याख्या प्रमाणे ७, ८, ९ के १० नायिका, अेक बे अंक, कैशिकी वृत्ति, विमर्श अने मुखसंधि, विप्र, शत्र, अमात्य के वणिक एवा ललित, दक्षिण के ख्यात पांच के छ नायक जोईअे. बे अंक होय त्यारे मुख अने अवमर्श अने एक अंक होय त्यारे गर्मनिर्गम जोईअे. आ उपरांत, यति, खंड, ताल, लय, अने विश्राम सहितनुं गेय लास्य तेमां जोईअे.

विश्वनाथ

ज्यारे विश्वनाथनी व्याख्या आ प्रमाणे छे :- हल्लीश एवं एकांकः सप्ताष्टादश वा स्त्रियः । वागुदात्तैकपुरुषः कैशिकीवृत्तसंकुलः ॥ मुखान्तिमौ तथा सन्धी बहुताललयस्थितिः । २[65]

आम बन्नेनी व्याख्या प्रमाणे हल्लीसकमां ताल, लय, पण जरूरी छे. आम १२मा सैकानो शारदातनय जेम एक बाजु रासकना नृत्यप्रकारना स्वरूपनी माहिती आपती व्याख्या आपे छे तेम बीजी बाजु तेने संपूर्ण उपरूपकनुं स्वरूप आपती व्याख्या पण आपे छे. जो के, तेमां पण रासकने नृत्यभेद तरीके ओळखावे छे. पण त्यार पछी १४मा सैकामां आवतो विश्वनाथ तेना "साहित्यदर्पण"मां रासकने उपरूपक तरीके ओळखावती ज व्याख्या आपे छे. आ जोतां कही शकाय के शारदातनयना समय पहेलां रासके उपरूपकनुं स्वरूप प्राप्त करवा मांड्युं हशे अने विश्वनाथना समय सुघीमां तेनुं उपरूपक तरीकेनुं स्वरूप संपूर्णपणे सिद्ध थई गयुं हशे.

डोलरराय मांकड श्री डोलरराय मांकड रासनी जुदी जुदी व्याख्याओ आपी तेनी विगतवार चर्चा कर्या पछी एवो अभिप्राय आपे छे के :- These different definitions of both the forms prove beyond doubt that they have evolved from mere dance to an organised "नृत्य" form and thence to an elementary form of drama. But side by side with these (Nrtya Types) Rupaka types were also developing and as a reflection of the Rupakas these Nrtya Types borrowed speech and transformed themselves into some sort of half-developed Rupakas, which in Vishwanath's age, came to be regarded as Upa-Rupakas.१[66]

आम तेमना मते रासनो उपरूपक प्रकार नृत्यमांथी ज आव्यो छे. आ उपरांत तेओ कहे छे के रासना नृत्यप्रकार साथे रूपकप्रकार पण विकसतो हतो. अने रूपकमांथी नृत्यप्रकारे संवादनुं तत्त्व अपनाव्यं. तेना परिणामे रास-नृत्यप्रकार अर्धविकसित रूपकनी अवस्थाने पाम्यो. आ ज अर्धविकसित रूपक विश्वनाथना समयमा उपरूपक तरीके ओळखावा लाग्युं. "संदेशरासक"ना साहित्यस्वरूपनी विचारणा करतां श्री मांकड कहे छे के, साहित्यस्वरूपनी दृष्टिअे रासक अेक नृत्यकाव्य अथवा गेयरूपक छे, अेमां घणुं संगीत अेटले घणा गेय छंदो जोईअे अने अेनुं आखुं वस्तु गद्यमां नहीं पण गेय पद्यमां लखेलुं होवुं जोईअे. उपरांत, आ बधां गेय पद्यो पूरां अभिनेय जोईअे. २[67]

रासकना उल्लेखोनुं समग्रपणे अवलोकन पुराणो अने नाट्यशास्त्रना ग्रन्थोमांथी मळी आवेला रासक विशेना बधा उल्लेखोनुं समग्रपणे अवलोकन करतां लागे छे के, आ रासनुं मूळ स्वरूप "हरिवंश"मां आपेला वर्णन प्रमाणेनुं वाद्य, गीत, ताल अने लय साथेना व्यवस्थित नृत्यप्रकारनुं हशे. इतर वर्णनो जोतां जणाय छे, के अत्यारना दांडिया रास अने गरबाना नर्तनप्रकार जेवुं अे नृत्य हतुं. आ नर्तनमां भाग लेनाराओनी संख्या निश्चित थयेली हती. त्यार पछी आ नृत्य- प्रकारनो विकास चालु ज रह्यो अने तेमांथी अेक जुदो फांटो पड्यो, नृत्यथी भिन्न अेवुं रासनुं उपरूपक जेवुं स्वरूप पण सिद्ध थवा मांड्युं. आजे आपणे जे प्रकारनां (Dance Ballet) नृत्यरूपको जोईअे छीअे ते प्रकारनुं आ स्वरूप होई शके. जो के आ उपरूपकमां नाट्यतत्त्व केटला अंशे हतुं के तेना प्रयोग कई रीते थता हशे अे जाणी शकातुं नथी. आगळ उपर आपणे जोईशुं के रास कोई उत्सव प्रसंगे रमाता - गवाता. तेना गानारा अने नाचनारानो वर्ग जुदो हतो. अे ज रीते आजे भजवातां- नृत्यरूपकोमां गायकवृन्द जुदुं होय छे अने तेमना गायन प्रमाणे रंगभूमि उपर जुदां जुदां पात्रो आवी अभिनय करी जाय छे. आम रासके आवा उपरूपकनुं स्वरूप प्राप्त कर्युं होय अे संभवित छे. “हरिवंश"मां अप्सराओना रासनृत्यना वर्णनमां आ नृत्य हावभावयुक्त अने सप्रयोजन हतुं अेम कहेवामां आव्युं छे. तेमांनु हावभाव अने प्रयोजननुं अंग रासने संपूर्ण उपरूपक बाबतमां मददरूप थई पड्युं हशे. प्राचीन गुजराती रासोने उपरूपक प्रकारनां लक्षणो जोतां तेनी साथे कोई सीधो सम्बन्ध नथी, आ रासाओने तो गीतो के नृत्य साथ सीधो संबंध छे. जो के, आगळ उपर चर्चा करी छे१[68] तेमां जणाव्या मुजब आ रासो मात्र नर्तन माटे ज हता अने तेमां साहित्यगुण न ज हतो अेम पण कही शकाय अेम नथी. रास - रासक विशेना जुदाजुदा उल्लेखो परथी जणाय छे के अेक रास-प्रकार केवळ नृत्यप्रधान हतो. ज्यारे बीजा प्रकारमां सप्रयोजन अभिनय हतो. आमांना नृत्यरासकमांथी पछीनो दांडियारासनो प्रकार आव्यो अने अभिनयप्रधान रासकमांथी रासलीलानो प्रकार आव्यो. रासने गीतोनो साथ रहेतो अे प्रमाणे जोयुं, आमांथी साहित्यगुण धरावतो अपभ्रंशनो तथा गुजरातीनो रास-प्रकार ऊतरी आव्यो, अेम अनुमान करी शकाय. आम जूनी गुजरातीना रासने उपरूपक प्रकार साथे सीधो संबंध नथी. पण उपरूपकना एक भेद लेखे रासक गणावायो छे अेटला पूरती ज अहीं तेना विषे विचारणा करी छे.


રાસસાહિત્ય, પૃ.૨૪થી ૬૪,૧૯૬૬


સંદર્ભનોંધ

  1. ૧ प्रकरण पहेलुं : प्राचीन गुजराती भाषा अने साहित्यनो उद्भव
    ૧ प्रकरण चोथुं : जूनी गुजरातीमां रासनुं स्वरूप :
    प्रकरण छठुं : केटलीक प्रतिनिधिरूप रासकृतिओनो अभ्यास
  2. ૨ पुराणविवेचन - दुर्गाशंकर शास्त्री - पृष्ठ १०५.
  3. ૧ हरिवंश विष्णुपर्व - २०मो अध्याय- २५मो श्लोक
  4. ૨ हरिवंश-श्लोक २५नी टीका
  5. ૧ हरिवंश उत्तरार्ध - अध्याय ८६
  6. १ पृ. २६ थी ३३
  7. २ हरिवंश-पर्व २, उत्तरार्ध - अध्याय ८९- श्लोक ६७-६८-६९
  8. १ पृष्ट २६ थी ३३
  9. २ पृष्ठ ४६ थी ४९२
  10. २ सरस्वती कण्ठाभरणम् - पृष्ठ २६३
  11. ३ पृष्ठ ३३-३४
  12. १ पृष्ठ २६ थी ३३
  13. २ ब्रह्मपुराण - ८१ अध्याय - २१मो श्लोक अने विष्णुमहापुराण - ५मा अंशनो १३मो अध्याय - २३मो श्लोक
  14. १ विष्णु महापुराण - ५मो अंश - १३ अध्याय - श्लोक ४८, ४६, ५०, ५१
  15. १ पृष्ठ २६ थी ३३
  16. २ ब्रह्मपुराण - ८१ अध्याय- ४०-४१ श्लोक : अने विश्णुमहापुराण ५मो अंश - १३मो अध्याय : ५८, ५९ श्लोक.
  17. १ पृष्ठ ३६-३७
  18. २ भागवत - दशमस्कन्ध- २६मो अध्याय - श्लोक १
  19. ३ भागवत - दशमस्कंध - ३३मो अध्याय - श्लोक २, ३, ४
  20. २ भागवत - दशमस्कंध - ३३मो अध्याय ८ श्लोक
  21. १ भागवत - दशमप्रकंध - ३३मो अध्याय ८ श्लोक
  22. ३ भागवत - दशमस्कंध - ३३मो अध्याय - श्लोक १४-१५
  23. १ भागवत - दशमस्कंध - ४७मो अध्याय - ६० मो श्लोक
  24. १ भागवत - दशमस्कंध - ३३मो अध्याय - १६मो श्लोक
  25. २ भागवत - दशमस्कंध - ३६मो अध्याय - २९मो श्लोक
  26. ३ भागवत - ४७मो अध्याय - ४३मो श्लोक
  27. १ भागवत - ४७मो अध्याय - ६२मो श्लोक
  28. २ पृ. ५३ (१)
  29. ३ पृ. ४३ (३)
  30. ४ पृ. ४३ (२)
  31. १ पृ. ४१ (२)
  32. २ छंदोनुशासन - पृ. ३५ - ५० पद्य १५मुं
  33. १ ऊरू, जंघा अने पादनुं संचालन ते चारी, बीजी व्याख्या प्रमाणे ऊरू, जंघा, पाद अने कटिनुं चालन ते चारी. आ चारीसंचालन डाबा अथवा जमणा कोई पण अेक पादथी थाय छे. अेवा बे पादथी थता चलनने करण कहे छे. करणसमूह ते खंड अने त्रण अथवा चार खंडनो संयोग ते मंडल, (रास अने गरबा-४७मुं पृष्ठ )
  34. २ नाट्यदर्पण - भाग १-६ श्लोक-२१४मुं पृष्ठ.
  35. ३ भावप्रकाशनम् - ११-१२ पंक्ति - २६६मुं पृष्ठ.
  36. १ सरस्वतीकण्ठाभरणम् - १५६मा श्लोक पछीनी टीका- पृष्ठ २६३
  37. २ सरस्वतीकण्ठाभरणम् श्लोक १५६ पृष्ठ २६३
  38. १ अभिधानचितामणिकोश - देवकाण्ड - २८१मो श्लोक - पृष्ठ ४०
  39. २ काव्यानुशासन - हेमचंद्र - ८मो अध्याय- पृष्ठ ४४६
  40. १ पृ. ४६
  41. २ भावप्रकाशनम् - ६मो अधिकार - २६६- ११ थी १४ पंक्ति
  42. ૧ भावप्रकाशनम् - ९मो अधिकार, पृ. २६५ - १० थी १४ पंक्ति
  43. १ भावप्रकाशनम् - ९मो अधिकार- पृ. २६३-२६४-१-२ पंक्ति
  44. २ नाट्यदर्पण - श्लोक ९- पृ. २१४-१५
  45. ३ पृ. ६५-६६
  46. ४ भरतकोष-पृ. २० ( प्रस्तावना )
  47. ५. भरतकोष - पृ. ५५२
  48. ૧ पृ. ४६ २ पृ. ५०
  49. ३ हर्षचरित - Fuhrerनी आवृत्तिनुं ७८मुं पृष्ठ
  50. १ कर्पूरमंजरी - ४थो अंक - १थी १७ श्लोकसंख्या
  51. १ भावप्रकाशनम् - १०मो अधिकार पृ. २६७-७ थी ८ पंक्ति
  52. १ भरतकोष - पृ. ८५०
  53. ૧ (क) लास्यनृत्यनी बे सोरठी परंपरा श्री मंजुलाल र. मजमुदार, नवचेतन-दिवाळी अंक - १९५३ नवेम्बर पृष्ठ १६५-१६६
    (ख) रास अने गरबा- रामनारायण पाठक अने गोवर्धन पांचाल पृष्ठ ५४
  54. १ हिंदी नाटक : उद्भव और विकास - डॉ. दशरथ ओझा पु. ७३
  55. २ लास्यनृत्यनी बे सोरठी परंपरा-श्री मंजुलाल र. मजुमदार, नवचेतन दीपोत्सवी अंक - नवेंबर १६५३ पृ. १६६
  56. १ भरतकोष - पृष्ठ ५५२ :
  57. १ अग्निपुराण - ३३८मो अध्याय- १, २, ३, ४ श्लोक - पृष्ठ ४२२
  58. २ दशरूपकम् (नाट्यशास्त्रम् ) धनंजय- प्रथम प्रकाशना ८मा श्लोकनी टीका. रा. सा. ५
  59. १ काव्यानुशासन - हेमचन्द्र - आठमो अध्याय १६६मुं सूत्र श्लोक ४ पृष्ठ ४४५
  60. २ काव्यानुशासन- वाग्भट - पहेलो अध्याय- पृष्ठ १८
  61. २ साहित्यदर्पण - छठ्ठो परिच्छेद ४, ५ अने ६ श्लोक - पृष्ठ २५८
  62. १ भावप्रकाशनम् - ९मो अधिकार- पृष्ठ २६९-१३ थी २० पंक्ति
  63. २ साहित्यदर्पण – छठ्ठो परिच्छेद- २८८, २८६ अने २९० श्लोक- पृष्ठ ३४८
  64. १ भावप्रकाशनम् - ९मो अधिकार - २६६ - ६७ पृष्ठ - १थी ७ पंक्ति
  65. २ साहित्यदर्पण - छठ्ठो परिच्छेद- ३०७ श्लोक - पृष्ठ ३५१
  66. १ Types of Sanskrit Drama पृष्ठ ४०८, छठ्ठुं प्रकरण
  67. २ साहित्यस्वरूपनी दृष्टि संदेशरासक - डॉलरराय मांकड : वाणी - चैत्र अंक १९४८ - पृष्ठ १६
  68. १ प्रकरण छठ्ठुं - केटलीक प्रतिनिधिरूप रासकृतिओनो अभ्यास.